tag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post1545542400770824168..comments2024-01-24T11:55:51.357+05:30Comments on बैरंग: पसमंज़रसागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-22613165737615384562011-02-14T00:36:29.920+05:302011-02-14T00:36:29.920+05:30Post bhi achchi hai... aur reader ke comments beht...Post bhi achchi hai... aur reader ke comments behtareen.... yun Manto ko thoda sa janna achcha lagaप्रियाhttps://www.blogger.com/profile/04663779807108466146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-18993159537353250582011-02-03T17:44:17.003+05:302011-02-03T17:44:17.003+05:30हमारे खुद के वजूद ही कहाँ बरामद होते है..
भाषा के...हमारे खुद के वजूद ही कहाँ बरामद होते है..<br /><br />भाषा के तलख होने पे भी ज़ुबां मीठी सी लगती है.एक कशिश सी है....किसी पात्र का कोई नाम नहीं फिर भी अजीब सी शैली असर रखती है.. .<br /><br />कुछ लोग पागलखानो में रहे,अलग थलग बस्तिओं में रहे पर इस दुनिया में नहीं..डिम्पल मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07224725278715403648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-5255770130527688152011-02-02T14:12:37.473+05:302011-02-02T14:12:37.473+05:30फ़्रॉड
मैं इसके पूर्व कह चुका हूँ कि मंटो अव्वल द...फ़्रॉड<br /><br />मैं इसके पूर्व कह चुका हूँ कि मंटो अव्वल दर्जे का फ्रॉड है.<br /><br /> <br /><br />इसका अन्य प्रमाण यह है कि वह, कहा जाता है कि कहानी नहीं सोचता, स्वयं कहानी उसे सोचती है- यह भी एक फ्रॉड है.<br /><br />वह अनपढ़ है- इस दृष्टि से कि उसने कभी मार्क्स का अध्ययन नहीं किया. फ्रायड की कोई पुस्तक आज तक उसकी दृष्टि से नहीं गुजरी. हीगल का वह केवल नाम ही जानता है. हैबल व एमिस को वह नाम सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-72768841785704712782011-02-02T13:55:22.657+05:302011-02-02T13:55:22.657+05:30यह रहा वो लिंक...
http://aarambha.blogspot.com/20...यह रहा वो लिंक... <br />http://aarambha.blogspot.com/2008/05/blog-post_11.हटमल<br /><br />लेकिन मेरी जानकारी में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई... क्योंकि इसमें से ज़्यादातर बातों को खुद मंटो ने अपने मजामीन में लिखा है, यह बातें वहीँ से ली हुई हैं.. उसके पांच कारनामे पर मुक़दमा चला... और खोल दो के लिए नुकूश पर छह महीने का प्रतिबन्ध लगा. <br /><br />यौन प्रसंगों के ज़रिये वे मानव मनोविज्ञान की पड़ताल सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-73094055081662772292011-02-02T12:18:01.619+05:302011-02-02T12:18:01.619+05:301 मई 1912 को अमृतसर में जन्में, पढाई में फिसडडी, त...1 मई 1912 को अमृतसर में जन्में, पढाई में फिसडडी, तीसरे दर्जे में इंटरमीडियट पास ‘मंटों’ की आवारगी व मुफलिसी नें अलीगढ यूनिर्वसिटी फिर वहां से निकाल दिये जाने पर मुम्बई तक का सफर तय किया । मुम्बई में उन्होंने साप्ताहिक ‘मुसव्विर’ से पत्रकारिता के द्वारा कलम की पैनी धार को मांजना आरंभ किया फिर भारत की पहली रंगीन बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ में बतौर संवाद लेखक काम किया, फिल्मी दुनिया का सफर इन्हें रास डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-91538233320027413382011-02-02T12:15:51.462+05:302011-02-02T12:15:51.462+05:30अश्लीलता के लिये उनकी बहुचर्चित कहानी ‘उपर, नीचे औ...अश्लीलता के लिये उनकी बहुचर्चित कहानी ‘उपर, नीचे और दरमिंयॉ’ जब मैं पढा तो एकबारगी मुझे कहानी समझ में ही नहीं आई पर हर कथोपकथन के बाद शील और अश्लील को तौलता रहा । ‘उपर, नीचे और दरमिंयॉ’ कथानक में गैर पुरूष व गैर स्त्री के बीच अंतरंग अवैध संबंधों में डूबते उतराते दिल दिमाग के बीच नौकर नौकरानी के ‘खाट की मजबूती’ चर्चा पर खत्म होती कहानी सचमुच झकझोरने वाली है । मंटों की कहानियों में यौन संबंधों व डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-37476527445188486672011-02-02T12:13:08.523+05:302011-02-02T12:13:08.523+05:30आरंभ ब्लॉग में मंटो पर एक दिलचस्प लेख है ....जो कु...आरंभ ब्लॉग में मंटो पर एक दिलचस्प लेख है ....जो कुछ यूँ है .....<br /><br />उर्दू के बहुचर्चित कथाकार शहादत हसन ‘मंटो’ से मैं 1985-86 में परिचित हुआ तब सारिका, हंस व अन्य साहित्तिक पत्र – पत्रिकाओं में गाहे बगाहे देवेन्द्र इस्सर के मंटोनामें एवं मंटो की कहानियों पर चर्चा होती थी । मंटो की कहानी ‘टोबा टेकसिंह’ मैंनें 1985 में पढी थी । उस समय मेरे समकालीन साहित्यानुरागी (?) मित्रों के द्वारा शहादतडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-72125308955129113242011-02-02T00:49:25.208+05:302011-02-02T00:49:25.208+05:30सागर साहब ...आपने उस अफसाना निगार की बातें लिख डाल...सागर साहब ...आपने उस अफसाना निगार की बातें लिख डाली हैं अफसानानिगारी में जिसके मुकाबले मुझे कोई नज़र ही नहीं आता.... कमाल की बात ये है कि इन दिनों मंटो और इस्मत दोनों को ही पढ़ रहा हूँ ... मंटो को तो खैर कई साल से पढ़ रहा हूँ .. कई बार से पढ़ रहा हूँ ... लेकिन आज जो आपे पोस्ट किया वह अछूता था ..बहुत बहुत शुक्रिया...स्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-13620040071435978482011-02-01T20:58:59.669+05:302011-02-01T20:58:59.669+05:30और यूँ,
पागल हो जाना वास्तव में कलाकार हो जाना है ...और यूँ,<br />पागल हो जाना वास्तव में कलाकार हो जाना है !<br />(हट ! पागल !!)दर्पण साहhttps://www.blogger.com/profile/14814812908956777870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-10199788839710673802011-02-01T20:52:46.479+05:302011-02-01T20:52:46.479+05:30कुछ कलात्मक स्थापत्यो के बीच,
वर्जना एक कला है.
क...कुछ कलात्मक स्थापत्यो के बीच,<br />वर्जना एक कला है.<br /><br />कला है,<br />...किसी की डबडबाई-भर आँख देख कर,<br />फफक फफक कर रो पड़ना.<br />कला है रोते हुए सहवास करना,<br /> <br />सुनो,दोस्तों...<br />...विरोधाभास एक कला है.<br />मैं दिखा सकता हूँ तुम्हें 'कोटला मुबारकपुर'<br />जो ठीक 'साउथ एक्स' के पीछे है.<br />और <b>'दिखा'</b> सकता हूँ एक वियतनाम,<br />जो बस नक्शे दर्पण साहhttps://www.blogger.com/profile/14814812908956777870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-91156360518266442992011-02-01T17:04:36.917+05:302011-02-01T17:04:36.917+05:30सागर भाई ये तो पता नहीं कि मंटो से मोहब्बत कब हुई ...सागर भाई ये तो पता नहीं कि मंटो से मोहब्बत कब हुई थी। पर जब से मोहब्बत हुई तब से उस मोहब्बत को जी रहे है। मंटो था ही ऐसा...यूं तो पहले भी पढा था ये हिस्सा पर आज फिर से पढा तो वही आग महसूस हुई...कभी कभी सोचता हूँ कि वे ना लिखते तो शायद पहले ही इस दुनिया से चले गए होते। कब तक इस आग को छिपाकर रख पाते सीने में...शुक्रिया सागर भाई,और हाँ किसी से ज्यादा उम्मीदें मत लगाया करें क्योंकि उम्मीदें कई दफा सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-74763002105088558282011-02-01T14:49:13.178+05:302011-02-01T14:49:13.178+05:30मंटो को पढ़ने का मौका नहीं मिला कभी... या यूँ कहिये...मंटो को पढ़ने का मौका नहीं मिला कभी... या यूँ कहिये की दिलचस्पी ही नहीं रही... अब सोच रही हूँ पढ़ ही लूँ एक बार... शुक्रिया डाकिया बाबू !! मंटो से यूँ रु-ब-रु करवाने का...richahttps://www.blogger.com/profile/17341853830091317236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-47316999793317093932011-02-01T14:06:30.974+05:302011-02-01T14:06:30.974+05:30@ डॉ. अनुराग
किसी अंक का मतलब मई २००९ के अंक में, ...@ डॉ. अनुराग<br />किसी अंक का मतलब मई २००९ के अंक में, मंटो का जन्म ११ मई को हुआ था तो उनको समर्पित ये विशेषांक निकाला गया था जिसमें कृष्ण चंदर ने दो संस्मरण लिखे थे... दोनों गज़ब के हैं. लिंक हाज़िर है <br /><br />http://69.73.171.114/~jnanpith/sites/default/files/May-2009.pdfसागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-57645916089980128572011-02-01T13:35:02.656+05:302011-02-01T13:35:02.656+05:30love u bro!!!!!
नया ज्ञानोदय के किसी अंक में एक कब...love u bro!!!!!<br />नया ज्ञानोदय के किसी अंक में एक कबूलनामा ओर है ....खुदा कसम ...ऐसा ही जलजला सा मालूम पड़ता हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-4009455360730563572011-02-01T11:04:11.503+05:302011-02-01T11:04:11.503+05:30मंटो यार तुम कैसे आदमीं थे जो मरने के बाद भी तुम्ह...मंटो यार तुम कैसे आदमीं थे जो मरने के बाद भी तुम्हें चैन नहीं....<br />बार बार सोचता हूँ तेरे बारे में न सोचूं लेकिन क्या करूँ तुन हर बार मेरे ख्यालों के परदे पकड़ के लटक जाता है....<br />मंटो तुझे श्रधान्जली या जो कुछ भी तुम समझो...<br />तुझसे जला भुना एक शख्सanjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-55195689013970760552011-02-01T10:38:56.696+05:302011-02-01T10:38:56.696+05:30क्या कहूँ , बस डाकिये को शुक्रिया ही कह सकते हैं ,...क्या कहूँ , बस डाकिये को शुक्रिया ही कह सकते हैं , इस नायाब चीज़ के लिए |Neerajhttps://www.blogger.com/profile/11989753569572980410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-52322680895519595052011-01-31T23:14:41.445+05:302011-01-31T23:14:41.445+05:30ज्ञानवर्धक पोस्ट।ज्ञानवर्धक पोस्ट।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-50675039550546256812011-01-31T21:27:06.382+05:302011-01-31T21:27:06.382+05:30जियो सागर..अभी सही फ़ार्म मे आये लगते हैं..सुंदर बा...जियो सागर..अभी सही फ़ार्म मे आये लगते हैं..सुंदर बाते समझने को मिलीं पोस्ट के बहाने..और कुछ बातों को बार-बार समझने की कोशिश कर रहा हूँ..खासकर यह..<br />-उसका वुजूद बज़ाते-खुद (अपने आप में) नाजाइज़ है। [जो वज़ूद दुनिया के फ़्रेम मे ठीक नही बैठते नाजाइज ही होते हैं क्या?]<br />-वह रिहर्सल कर रहा था ताकि सचमुच पागल हो जाए तो पागलखाने में आराम से रहे। [ऐसे लोगों का मरना भी दूसरों को मरने का रिहर्सल ही अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-61092787896600507952011-01-31T19:55:09.546+05:302011-01-31T19:55:09.546+05:30शुक्रिया सागर...मंटो की कब्र का पत्थर उठा लाने के ...शुक्रिया सागर...मंटो की कब्र का पत्थर उठा लाने के लिए.<br />---------<br />मंटो का लिखा 'मैं अफसाना क्योंकर लिखता हूँ' का एक हिस्सा-<br /><br />मैं अफसाना अव्वल तो इसलिए लिखता हूँ कि मुझे अफसाना लिखने की शराब की तरह लत पड़ी हुयी है. <br />मैं अफसाना न लिखूं तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैंने कपड़े नहीं पहने हैं या मैंने गुसल नहीं किया या मैंने शराब नहीं पी. <br />मैं अफसाना नहीं लिखता, Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.com