tag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post5779024675205263446..comments2024-01-24T11:55:51.357+05:30Comments on बैरंग: रानीखेत की शाम. (उमर अंसारी )सागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-27488354836869906542011-03-13T20:52:09.937+05:302011-03-13T20:52:09.937+05:30रानीखेत जाना नही हुअ कभी..मगर इसे पढ़ते हुए जो सूरत...रानीखेत जाना नही हुअ कभी..मगर इसे पढ़ते हुए जो सूरत आँखों मे बनने लगती हैं..यकीनन वो जग्ह उससे बहुत जुदा नही ही होगी..कभी शहर की आत्मा किसी कबिता मे ढ़ल जाती है..तो उसको देख पाना ज्यादा आसान लगता है..बिना देखे ही..<br />यह पंक्ति काफी कुछ बयाँ करती है..<br />यहाँ हयात भी सस्ती, अज़ल भी सस्ती है.अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-90039409292594978372011-03-11T19:31:01.032+05:302011-03-11T19:31:01.032+05:30दिलचस्प.......दिलचस्प.......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2735323913648056853.post-90351587319131475332011-03-11T15:32:27.565+05:302011-03-11T15:32:27.565+05:30है ज़र्रा-ज़र्रा यहाँ आप अपना ताजमहल
कवि से शत प्...<b>है ज़र्रा-ज़र्रा यहाँ आप अपना ताजमहल</b><br /><br />कवि से शत प्रतिशत सहमत हूँ और डाकिये की आभारी इस ख़ूबसूरत रचना को पढ़वाने के लिये...<br /><br />यहाँ आ कर बैरंग चिट्ठियों को खंगालो तो हर बार कोई ना कोई ख़ज़ाना हाथ लगता है :)richahttps://www.blogger.com/profile/17341853830091317236noreply@blogger.com