Monday, October 10, 2011

आवाज़ में थियेटर खेला गया लगता था, मेरी कमर पर गर्म बोतल लुढका करता था

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8 comments:

  1. न जाने कितने दिलों के अंधेरो की स्याही बना कर अपनी कलम से यह जज्बातों का सागर भरा है तुमने सागर..अद्भुत..छलकने न देना इसे अब..

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  2. बेहतरीन ढंग से याद किया सागर.तुम्हारे इस पहले ड्राफ्ट के पन्ने अरसे तक फडफडाते रहेंगे.

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  3. कल सुबह से जब से उनके हमेशा के लिए खामोश हो जाने की खबर सुनी है, तब से ले कर अब तक इस खबर पर रिएक्ट नहीं कर पायी हूँ... समझ ही नहीं आ रहा की क्या कहूँ... न्यूज़ चैनल्स से ले कर अख़बार तक और ब्लॉग्स से लेकर फेसबुक तक... हर जगह हर कोई अपनी तरह से श्रद्धांजलि देने में लगा है... कहीं कुछ कहते नहीं बना... पर यहाँ आ कर ठिठक गई हूँ... वो किसी ने कहा है ना "अब भी ना रोया तो मर जायेगा..." तो हम भी अपनी याद की चंद पंक्तियाँ जोड़ देते हैं आपकी चिट्ठी में... शायद उन तक पहुँच जाये...

    "होंठों से छू लो तुम" से उन्होंने पहली बार प्यार नाम के जज़्बात से तार्रुफ़ करवाया था... तब पहली बार उनका नाम जाना था... ग़ालिब साहब से पहली मुलाक़ात भी उनकी आवाज़ के ज़रिये ही हुई... तब जब ग़ालिब समझ भी नहीं आते थे उन्होंने ग़ालिब की ग़ज़लों से प्यार करना सिखाया... ग़ालिब क्या ग़ज़ल सुनना ही उन्होंने सिखाया... हमारे लिये तब ग़ज़ल का मतलब सिर्फ़ जगजीत हुआ करते थे... ये मेहदी हसन साहब, ग़ुलाम अली साहब, फरीदा ख़ानम जी ये सब तो बहुत बाद में आये... ग़ज़ल गायकों में पहला प्यार वो ही थे और वो ही रहेंगे, हमेशा...

    बड़ी ख्वाहिश थी उनका कोई लाइव कंसर्ट सुनने की... पहली और आख़िरी बार ये ख्वाहिश तब पूरी हुई जब वो २ मार्च २०११ को फ़ैज़ जन्मशताब्दी समारोह के अंतर्गत आयोजित एक कंसर्ट में हिस्सा लेने लखनऊ आये थे... यूँ तो कितनी ही बार वो इससे पहले भी आ चुके थे पर क्या पता था कि लखनऊ में ये उनकी आख़िरी शाम थी... उस दिन सिर्फ़ फ़ैज़ की लिखी ग़ज़लें गा कर उन्हें याद किया जा रहा था... जब जगजीत जी स्टेज पर आये तो उन्होंने भी फ़ैज़ की कुछ ग़ज़लें सुनायीं... इसी बीच किसी फैन से रहा नहीं गया और उन्होंने फरमाइश कर दी सर दो लाइने "कल चौदवीं कि रात थी..." की सुना दीजिये... वो हँस कर बोले आज हम सिर्फ़ फ़ैज़ साहब को याद करेंगे... बाक़ी ग़ज़लें सुननी हों तो फिर कभी बुला लीजियेगा... पर जाते जाते जाने उनके दिल में क्या आया कि वो ग़ज़ल भी सुना ही गये... जैसे उन्हें पता हो वो "फिर कभी" अब फिर कभी नहीं आएगा हमारे नसीब में...

    वो भले ही चले गये हों पर उनकी आवाज़ आने वाली जाने कितनी नस्लों को यूँ ही प्यार करना सिखाती रहेगी... हमेशा !

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  4. भावों को क्या खूब समेटा है...!
    वो आवाज़ सदा जीवित रहेगी!

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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