शिव कुमार बटालवी की एक कविता
वह भी शहर से आ रही थी,
मैं भी शहर से आ रहा था..
इक्का चलता जा रहा था...
दूर पश्चिम की ख़ुश्क शाख पर..
सूरज का फूल मुरझा रहा था..
मेरे और उसके बीच में फासले थे..
फिर भी मुझे सेक उसका आ रहा था..
इक्के वाला धीरे-धीरे गा रहा था..
इक्का चलता आ रहा था..
दोनों किनारे सांवली सी सडक के..
उसके होंटों की तरह थे कांपते..
हवा का चिमटा सा जैसे बज रहा..
पेड़ों के पत्ते भी थे खनकते..
दूर एक एक शाम का फीका सा तारा..
गगन की गाल पर मुस्करा रहा था..
एक नन्हें से गुलाबी मुख पर..
काले तिल के जैसे नजर आ रहा था..
उसके और मेरे बीच फासला..
हमारी मंज़िल सा ही घटता जा रहा था..
इक्के वाला धीरे-धीरे गा रहा था..
इक्का चलता आ रहा था..
दूर उस धुंए के जंगल के पार..
जा रही थी पंछिओं की एक डार..
मेरा जी किया मैं उस डार को..
ऊँचे से ये कहूँ आवाज़ मार..
साथ अपने ले चलो हमे भी यार..
दूर इस दुनिया के किसी और पार..
दे हमे उस ज़जीरे पर उतार..
जहाँ सके रात आज ये गुज़ार..
स्याह अँधेरा स्याह एक नागिन के जैसा..
मेरी और सरकता आ रहा था..
मेरा हाथ उसके हाथ साथ..
जाने कितनी देर से टकरा रहा था..
इक्के वाला धीरे-धीरे गा रहा था..
इक्का चलता आ रहा था..
आ रही थी तेज कदमों की आवाज़..
ताल में थे खनकते इक्के के साज़..
साज़ में से निकलती इक यूँ आवाज़..
बिजली के खम्बों में जिस तरह..
बचपन में टिका के कान सुनते आवाज़..
समझते कि उड़ रहे है लड़ाई में जहाज..
जगत के पापों से चिढ़ कर समझते..
हो गये या सारे देवता नराज़..
आ रही थी तेज कदमों की आवाज़..
ताल में थे खनकते इक्के के साज़..
उसके गाँव की ऊँची मस्जिद का मीनार..
उस अँधेरे में भी नज़र था आ रहा..
वह और उसके साथ उसका हाथ भी..
मेरे हाथों से निकलता जा रहा था..
इक्के वाला जाने क्यों विलाप सा कुछ गा रहा था..
बेरहम घोड़े को एक जल्लाद जैसे..
ऊँची-ऊँची तेज़ चाबुक मारता था..
सारा इक्का अब किसी मर चुके..
जानवर का पिंजर सा नज़र आ रहा था..
दीयों की रोशनी में मेरा घर..
दूर से एक कब्रिस्तान नज़र आ रहा था..
दिल मेरा हर घड़ी पीछे को उड़ता जा रहा था..
इक्के वाला जाने क्यों विलाप सा कुछ गा रहा था..
बेरहम घोड़े को एक जल्लाद जैसे..
ऊँची-ऊँची तेज़ चाबुक मारता था
इक्का चलता आ रहा था..
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 26/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी कविता बहुत प्यारी लगी
ReplyDeleteवाह ... मज़ा ही आ गया ... शिव कुमार बटालवी जी के शब्द दिल में उतर जाते हैं सीधे ...
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteबहुत खूब ..
ReplyDeleteदिल से निकली रचना...
ReplyDeleteपथ पर बढ़ती हुई रचना...