Tuesday, April 30, 2013

अपनों के बिना कैसा अपना !


रेहन पर रग्घू नाटक का पोस्टर

देह की भाषा क्या होती है? और भंगिमा ? कोई सच्चा कलाकार काठ के खोखले धम धम करते स्टेज पर भी नंगे पैर चले तो नवजात शिशु सा लगता है। चलना वो जो बेआवाज़ हो और देह की भाषा किरदार मुताबिक।

गत शनिवार और रविवार एस आर सी यानि श्रीराम सेंटर में काशीनाथ सिंह द्वारा लिखा गया उपन्यास रेहन पर रघ्घू का मंचन हुआ। वैश्विक उदासीकरण से जूझते इस कहानी का मुख्य पात्र रघुनाथ है जो कि एक कॉलेज में पढ़ाता है. निम्न मध्यमवर्गीय मानसिकता के साथ बढ़ा रघुनाथ अपने बच्चों के फैसलों से बड़ा क्षुब्ध है। वह अंत में इतना दुखी हो जाता है कि खुद को अक्सर निपूता मानने लगता है।

सीन - 1

रघुनाथ अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलने उसके घर पर आता है। और प्रिंसिपल रघुनाथ को बेइज्जती इसलिए करता है कि उसके बड़े बेटे ने जाति से बाहर लाला की बेटी से शादी कर ली। मंच पर रम का रंग है। प्रिंसिपल उसे अपनी बातों की चोट देते हुए रघुनाथ का कुरता खोल कर लुढ़का देता है। समाज का दकियानूस ठेकेदार प्रिंसिपल और उसे मान कर चलने वाला रघुनाथ दोनों के बेजोड़ भाव भंगिमा। सीन इतना टेंस हो जाता है कि दर्शकों में आत्मबोध जागता है और तालियां अपने आप बज उठती हैं।

सीन - 2

उम्रदराज होती बेटी के शादी से इंकार करने के बाद बेहद दुख भरे क्षण में रघुनाथ अपनी पत्नी के करीब आता है और उसे प्यार करने की कोशिश करता है। प्रणय दृश्यों को मंच पर दिखाना ज़रा जटिल है। ऊपर से पड़ती पीली रोशनी में एक दूसरे में गुंथे रघुनाथ और उसकी पत्नी किसी नदी में किनारे खोजते से नज़र आते हैं। एक पल के लिए लगता है वे दोनों एक नाव पर सवार है और दोनों ही पतवार चला रहे हैं। मामला तब गहराता है जब रघुनाथ असफल होता है और अपनी पत्नी के गोद में सर रख कर ज़ार ज़ार रो कर कहता है - मैं बूढ़ा हो गया अब। और पत्नी उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती है - अब ये सब करने की हमारी उमर नहीं रही।
सवाल उठता है - बुढ़ापा क्या है ? ये यूं अचानक तो नहीं आता? परिस्थितिवश अक्षमता !

सीन - 3
या कि, या कि करते कलाकार और जवाब देता रघुनाथ

कि 'शरीफ' इंसान का मतलब है निरर्थक आदमी; भले आदमी का मतलब है 'कायर' आदमी। जब कोई आपको 'विद्वान' कहे तो उसका अर्थ 'मूर्ख' समझिए, और जब कोई 'सम्मानित' कहे तो 'दयनीय' समझिए।

उन्हें हर जगह यही कहा गया और उनका कोई काम नहीं किया गया! उन्हें हर जगह 'हट-हट' और 'दुर-दुर' किया गया। वे उस 'बकरी' या 'गाय' की तरह हैं जो सिर्फ 'में-में' या 'बाँ-बाँ कर सकती है, मार नहीं सकती! यही उनकी छवि है सबके आगे - मिमियाने घिघियानेवाले मास्टर की। यह उनकी छवि नहीं है - यही हैं वे।


सीन - 4

मंच पर गोले में एक रोशनी उतरती है। रघुनाथ अपने दोनों बच्चों से ज़मीन के बारे में फैसला लेने के लिए फोन करता है। एक असरदार प्रयोग के तहत दिखाया जाता है कि रघुनाथ घुटनों के बल बैठा है उसके ठीक पीछे उसका छोटा बेटा खड़ा है, उसके पीछे बड़ा बेटा खड़ा है। ये वे पीढ़ी है जो अपनी ज़मीन के लिए लड़ना नहीं जानती। उसे बेच कर फ्लैट में शिफ्ट हो जाना चाहती है। अनुमान के मुताबिक रघुनाथ को दोनों बेटे ज़मीन बेच डालने की सलाह देते हैं। प्रत्युत्तर में रघुनाथ के आवाज़ में बेबसी साफ झलकती है लेकिन उससे भी ज्यादा झलकता है बड़े बेटे के पीछे मंच के पर्दे पर असामान्य रूप से बेहद काली उन व्यक्तित्वों की काली परछाई जिसके आगे कई रघुनाथें घुटनों के बल आज बैठ गए हैं।

कुछ और भी प्रयोग अच्छे थे मसलन दो आदमी के फोन पर बात करने में एक तीसरे आदमी का स्टेज के बीचों बीच खड़े होकर दोनों ओर बांहें फैलाकर हाथ से फोन का संकेत बनाना।

रघुनाथ के किरदार में मुकेश भाटी ने बेहतरीन काम किया। एक सत्चरित्र मास्टर और विनम्रता और सादगी लिए अपने परिवार को समाज को समर्पित आदमी। कदम कदम पर वक्त और रिश्तों की दुलत्ती खाता जिसे इस भावना को अपने रोम रोम में समाया था कि अपनों के बिना अपना क्या होता है। प्रिंसिपल के रूप में शाहनवाज खान महज एक ही सीन में छा से गए। एक ताबेदार आदमी जब अपने ही घर में किसी को अपमानित करता है तो लोगों के नाम पर अपनी सारी कुंठा अपनी लानतों के रूप में आवाज़ के उतार चढ़ाव से बखूबी उभारा। इसके अलावा अन्य किरदार केंद्र में न होने के कारण साथी कलाकार ही थे जो औसत या उससे कम ही रहे। रोमांस के अंतरंग पलों को सोनल का पात्र निभाने वाली रीना सैनी ने अपने प्रदर्शन से उत्तेजना जगाई। देवेन्द्र राज अंकुर ने उपन्यास का कुशलता से निर्देशन किया है.


आँगन और लान बड़े-बड़े ओलों और बर्फ के पत्थरों से पट गये और बारजे की रेलिंग टूट कर दूर जा गिरी-धड़ाम ! उसके बाद जो मूसलाधार बारिश शुरू हुई तो वह पानी की बूँदें नहीं थीं-जैसे पानी की रस्सियाँ हो जिन्हें पकड़ कोई चाहे तो वहाँ तक चला जाय जहाँ से ये छोड़ी या गिराई जा रही हों। बादल लगातार गड़गड़ा रहे थे- दूर नहीं, सिर के ऊपर जैसे बिजली तड़क रही थी; दूर नही, खिड़कियों से अन्दर आँखों में।

इकहत्तर साल के बूँढे रघुनाथ भौंचक ! यह अचानक क्या हो गया ? क्या हो रहा है ?
उन्होंने चेहरे से बन्दरटोपी हटाई, बदन पर पड़ी रजाई अलग की और खिड़की के पास खड़े हो गए !
खिड़की के दोनों पल्ले गिटक के सहारे खुले थे और वे बाहर देख रहे थे।
घर के बाहर ही कदम्ब का विशाल पेड़ था लेकिन उसका पता नहीं चल रहा था- अँधेरे के कारण, घनघोर बारिश के कारण ! छत के डाउन पाइप से जलधारा गिर रही थी और उसका शोर अलग से सुनाई पड़ रहा था !

ऐसा मौसम और ऐसी बारिश और ऐसी हवा उन्होंने कब देखी थी ? दिमाग पर जोर देने से याद आया-साठ बासठ साल पहले ! वे स्कूल जाने लगे थे- गाँव से दो मील दूर ! मौसम खराब देख कर मास्टर ने समय से पहले ही छुट्टी दे दी थी। वे सभी बच्चों के साथ बगीचे में पहुँचे ही थे कि अंधड़, और बारिश और अंधेरा ! सबने आम के पेड़ों के तनों की आड़ लेनी चाही लेकिन तूफान ने उन्हें तिनके की तरह उड़ाया और बगीचे से बाहर धान के खम्भों में ले जाकर पटका ! किसी के बस्ते और किताब कापी का पता नहीं ! बारिश की बूँदें उनके बदन में गोली के छर्रों की तरह लग रही थीं और वे चीख चिल्ला रहे थे। अंधड़ थम जाने-के बाद-जब बारिश थोड़ी कम हुई तो गाँव से लोग लालटेन और चोरबत्ती लेकर निकले थे ढूँढ़ने !

यह एक हादसा था और हादसा न हो तो जिन्दगी क्या ?
और यह भी एक हादसा ही है कि बाहर ऐसा मौसम है और वे कमरे में हैं।
कितने दिन हो गये बारिश में भीगें ?
कितने दिन हो गए लू के थपेड़े खाए ?
कितने दिन हो गए जेठ के घाम में झुलसे ?
कितने दिन हो गये अंजोरियों रात में मटरगश्ती किए ?
कितने दिन हो गये ठंठ में ठिठुर कर दाँत किटकिटाए ?
क्या ये इस लिये होते है कि हम इनसे बच के रहे ? बच बचा के चले ? या इसलिये कि इन्हें भोगें, इन्हें जिएँ, इनसे दोस्ती करें, बतियाएँ, सिर माथे पर बिठाएँ ?
हम इनसे ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे ये हमारे शत्रु है ! क्यों कर रहे है ऐसा ?
इधर एक अर्से से रघुनाथ को लग रहा था कि वह दिन दूर नहीं जब नहीं रहेंगे और यह धरती रह जाएगी ! वे चले जाएगे और इस धरती का वैभव, उसका ऐश्वर्य, इसका सौन्दर्य- ये बादल, ये धूप, पेड़ पौधे, ये फसलें, ये नदी नाले, कछार जंगल पहाड़ और यह सारा कुछ यहीं छूट जाएगा ! वे यह सारा कुछ अपनी आँखों में बसा लेना चाहते है। जैसे वे भले चल जाएँ आँखें रह जाएगी; त्वचा पर हर चीज की थाप सोख लेना चाहते हैं जैसे त्वचा केचुल की तरह यहीं छूट जाएगी और उसका स्पर्श उन तक पहुँचाती रहेगी !

उन्हें लग रहा था कि बहुत दिन नहीं बचे है उनके जाने में ! मुमकिन है वह दिन कल ही हो, जब उनके लिए सूरज ही न उगे। लगेगा तो जरूर, लेकिन उसे दूसरे देखेंगे-वे नहीं ! क्या यह सम्भव नहीं है कि वे सूरज को बाँध कर अपने साथ ही लिए जाएँ – न रहे, न उगे, न कोई और देखे ! लेकिन एक सूरज समूची धरती तो नहीं, वे किस चीज को बाँधेगे और किस-किस को देखने से रोकेंगे ?
उनकी बाहे इतनी लम्बी क्यों नहीं हो जातीं कि वे उसमें सारी धरती समेट लें और मरें या जिएँ तो सबके साथ !
लेकिन एक मन और था रघुनाथ का जो उन्हें धिक्कारे जा रहा था- कल तक कहाँ था वह प्यार ? धरती से प्यार की ललक ? यह तपड़ ? कल भी यही धरती थी। ये ही बादल, आसमान, तारे, सूरज चाँद थे ! नदी, झरने सागर, जंगल, पहाड़ थे। ये ही गली, मकान, चौबारे थे ! कहाँ थी यह तड़प ? फुर्सत थी इन्हें देखने की ? आज जब मृत्यु बिल्ली की तरह दबे पाँव में आ रही है तो बाहर जिन्दगी बुलाती हुई सुनाई पड़ रही है ?

सच-सच बताओं रघुनाथ, तुम्हें जो मिला है उसके बारे में कभी सोचा था कि एक छोटे से गाँव से लेकर अमेरिका तक फैल जाओगे ? चौके में पीढ़ा पर बैठ कर रोटी प्याज नमक खाने वाले तुम अशोक बिहार में बैठ कर लंच और डिनर करोगे ?


वैश्वीकरण के साइड इफैक्ट्स के तहत इन्हीं सवालों और चिंताओं के साथ यह नाटक खत्म होती है और बस में दस रूपए का टिकट लेकर लौटते हुए लगता है अरे यह तो हमारे घर की कहानी थी!

Monday, April 22, 2013

जलवायु नहीं, व्यवस्था बदलो


डाकिए की ओर से:    दिल की बात और माकूल मौजू। ह्यूगो शावेज फ्रियास के साम्राज्यवाद के खिलाफ संदेश की तरह इसे भी टाइप करके लगाता लेकिन थोड़ी देर हो जाती। संयोग से आज पृथ्वी दिवस के मौके पर यह सन्देश इन्टरनेट पर मिल गया। शावेज के इस संदेश को पढ़ें तो लगता है कि कई बार समस्या वहां नहीं होती जहां दिखती है। यह दोगलापन ही है कि हमारे देश में आतंकवाद लाल आतंकवाद। तुम्हारे देश में आतंकवाद पीला आतंकवाद। और अगर अपने हित में है तो वहीं का पीला आतंकवाद हमारे लिए हरा आतंकवाद। बहरहाल..... बात जलवायु की हो रही है। ज़रा शावेज से जानते हैं दुनिया की हकीकत। तिरछी स्पेलिंग का तहे दिल से धन्यवाद। सुंदर अनुवाद के लिए संदीप सिंह सहित अप्रैल अंक, 13 के समकालीन जनमत का भी धन्यवाद।

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अध्यक्ष महोदय, देवियों और सज्जनों, राष्ट्राध्यक्षों और दोस्तों, मैं वादा करता हूं कि उतना लंबा नहीं बोलूंगा जितना कि आज दोपहर यहां बहुत सारे लोग बोले हैं। ब्राजील, चीन, भारत और बोलीविया के प्रतिनिधियों ने यहां अपना पक्ष रखते हुए जो कहा है, मैं भी अपनी बात की शुरूआत वहीं से करना चाहता हूं। मैं उनके साथ ही बोलना चाहता था, पर शायद तब यह संभव नहीं था। बोलीविया के प्रतिनिधि ने यह बात रखी, इसके लिए मैं बोलीविया के राष्ट्रपति कॉमरेड इवो मोरालेस को सलाम करता हूं। तमाम बातों के बीच उन्होंने कहा कि जो दस्तावेज यहां रखा गया है, वह न तो बराबरी पर आधारित है और न ही लोकतंत्र पर।

इससे पहले के सत्र में जब अध्यक्ष यह कह ही रहे थे कि एक दस्तावेज यहां पेश किया जा चुका है, तब बमुश्किल मैं यहां पहुचा ही था। मैंने उस दस्तावेज की मांग भी की, पर वह अभी भी हमारे पास नहीं है। मुझे लगता है कि यहां उस ‘टॉप सीक्रेट’ दस्तावेज के बारे में कोई भी कुछ नहीं जानता है। यहां बराबरी और लोकतंत्र जैसा कुछ भी नहीं है, जैसा कि बोलीवियन कॉमरेड ने कहा था। पर दोस्तों, क्या यह हमारे समय और समाज की एक सच्चाई नहीं है? क्या हम एक लोकतांत्रिक दुनिया में रह रहे हैं? क्या यह दुनिया सबकी और सबके लिए है? क्या हम दुनिया के वर्तमान तंत्र से बराबरी या लोकतंत्र जैसी किसी भी चीज की उम्मीद कर सकते हैं? सच्चाई यह है कि इस दुनिया में, इस ग्रह में हम एक साम्राज्यवादी तानाशाही के अंदर जी रहे हैं। और इसीलिए हम इसकी निंदा करते हैं। साम्राज्यवादी तानाशाही मुर्दाबाद! लोकतंत्र और समानता जिंदाबाद!

और यह जो भेदभाव हम देख रहे हैं, यह उसी का प्रतिबिंब है। यहां कुछ देश हैं, जो खुद को हम दक्षिण के देशों से, हम तीसरी दुनिया के देशों से, अविकसित देशों से श्रेष्ठ और उच्च मानते हैं। अपने महान दोस्त एडवर्डो गेलियानो के शब्दों में कहूं तो ‘हम कुचले हुए देश हैं, जैसे कि इतिहास में कोई ट्रेन हमारे ऊपर से दौड़ गई हो’। इस आलोक में यह कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि दुनिया में बराबरी और लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। और इसीलिए आज फिर से हम साम्राज्यवादी तानाशाही से दो-चार हैं। अपना विरोध दर्ज कराने के लिए अभी दो नौजवान यहां खड़े हो गए थे, सुरक्षा अधिकारियों की सावधानी से मामला सुलझ गया। पर क्या आपको पता है कि बाहर ऐसे बहुत सारे लोग हैं। सच यह है कि उनकी संख्या इस सभागार की क्षमता से बहुत-बहुत ज्यादा है। मैंने अखबार में पढ़ा है कि कोपेनहेगन की सड़कों पर कुछ गिरफ्तारियां हुईं हैं, और कुछ उग्र प्रतिरोध भी दर्ज कराये गए हैं। मैं उन सारे लोगों को, जिनमें से अधिकांश युवा हैं, सलाम करता हूं।

सच यह है कि ये नौजवान लोग आने वाले कल के लिए, इस दुनिया के भविष्य के लिए हमसे कहीं ज्यादा परेशान और चिंतित हैं, और यह सही भी है। इस सभागार में मौजूद हम में से अधिकांश लोग जिंदगी की ढलान पर हैं, जबकि इन नौजवान लोगों को ही आने वाले कल का मुकाबला करना है। इसलिए उनका परेशान होना लाजिमी है।

अध्यक्ष महोदय, महान कार्ल माक्र्स के शब्दों का सहारा लेकर कहूं तो एक भूत कोपेनहेगन को आतंकित कर रहा है। वह भूत को कोपेनहेगन की गलियों को आतंकित कर रहा है और मुझे लगता है कि वह चुपचाप इस कमरे में हमारे चारों तरफ भी टहल रहा है, इस बड़े से हॉल में, हमारे नीचे और आसपास; यह एक भयानक और डरावना भूत है और लगभग कोई भी इसका जिक्र नहीं करना चाहता। यह भूत, जिसका जिक्र कोई भी नहीं करना चाहता, पूंजीवाद का भूत है।

बाहर लोग चीख रहे हैं कि यह भूत पूंजीवाद ही है, कृपया उन्हें सुनिए। बाहर सड़कों पर नौजवान लड़कों और लड़कियों ने जो नारे लिख रखे हैं, उनमें से कुछ को मैंने पढा है। इन्हीं में से कुछ को मैंने अपनी जवानी में भी सुना था। पर इनमें से दो नारों का जिक्र मुझे जरूरी लग रहा है, आप भी उन्हें सुन सकते हैं- पहला, ‘जलवायु को नहीं, व्यवस्था को बदलो (डोंट चेंज द क्लाइमेट, चेंज द सिस्टम)।

इसलिए मैं इसे हम सबके लिए चुनौती के तौर पर लेता हूं। हम सबको सिर्फ जलवायु बदलने के लिए नहीं, बल्कि इस व्यवस्था को, इस पूंजी के तंत्र को बदलने के लिए प्रतिबद्ध होना है। और इस तरह हम इस दुनिया को, इस ग्रह को बचाने की शुरूआत भी कर सकेंगे। पूंजीवादी एक विनाशकारी विकास का मॉडेल है, जो जीवन के अस्तित्व के लिए ही खतरा है। यह संपूर्ण मानव जाति को ही पूरी तरह खत्म करने पर आमादा है।

दूसरा नारा भी बदलाव की बात करता है। यह नारा बहुत कुछ उस बैंकिंग संकट की ओर संकेत करता है, जिसने हाल ही में पूरी दुनिया को आक्रांत कर रखा था। यह नारा इस बात का भी प्रतिबिंब है कि उत्तर के अमीर देशों ने किस हद तक जाकर बड़े बैंकों और बैंकरों की मदद की थी। बैंकों को बचाने के लिए अकेले अमेरिका ने जो मदद की थी, मैं उसके आंकड़े भूल रहा हूं, पर वह जादुई आंकड़े थे। वहां सड़क पर नौजवान लड़के और लड़कियां कह रहे हैं कि जलवायु एक बैंक होती तो इसे जाने कब का बचा लिया गया होता (इफ द क्लाइमेट वॅर अ बैंक, इट वुड हेव वीन सेव्ड ऑलरेडी)।

और मुझे लगता है कि यह सच है। अगर जलवायु दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में से एक होती तो अमीर सरकारों द्वारा इसे अब तक बचा लिया गया होता।

मुझे लगता है कि ओबामा अभी यहां नहीं पहुचे हैं। जिस दिन उन्होंने अफगानिस्तान में निर्दोष नागरिकों को मारने के लिए 30 हजार सैनिकों को भेजा, लगभग उसी दिन उन्हें शांति के लिए नोबल पुरस्कार भी मिला। और अब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति शांति के नोबल पुरस्कार के साथ यहां शामिल होने आ रहे हैं। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के पास पैसा और डॉलर बनाने की मशीन है और उसे लगता है कि उसने बैंकों और इस पूंजीवादी तंत्र को बचा लिया है।

वास्तव में यही वह टिप्पणी थी जो मैं पहले करना चाहता था। हम ब्राजील, भारत, चीन और बोलीविया के दिलचस्प पक्ष का समर्थन करने के लिए अपना हाथ उठा रहे थे। वेनेजुएला और बोलिवर गठबंधन के देश इस पक्ष का मजबूती से समर्थन करते हैं। पर क्योंकि उन्होंने हमें वहां बोलने नहीं दिया, इसलिए अध्यक्ष महोदय, कृपया इसको मिनट्स में न जोड़ा जाए।

मुझे फ्रेंच लेखक हर्वे कैंफ से मिलने का सौभाग्य मिला है। उनकी एक पुस्तक है- ‘हाउ द रिच आर डेस्ट्राॅइंग न प्लेनेट’, मैं यहां पर उस पुस्तक की अनुशंसा करना चाहता हूं। यह किताब स्पेनी और फ्रेंच भाषा में उपलब्ध है। और निश्चय ही अंग्रेजी में भी उपलब्ध होगी। ईसा मसीह ने कहा है कि एक ऊंट का तो सुई के छेद में से निकल जाना आसान है, पर एक अमीर आदमी का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाना मुश्किल है। यह ईसा मसीह ने कहा है।

ये अमीर लोग इस दुनिया को, इस ग्रह को नष्ट कर रहे हैं। क्या उन्हें लगता है कि वे इसे नष्ट कर कहीं और जा सकते हैं? क्या उनके पास किसी और ग्रह पर जाने और बसने की योजना है? अभी तक तो क्षितिज में दूर-दूर तक इसकी कोई संभावना नजर नहीं आती। यह किताब मुझे हाल ही में इग्नेशियो रेमोनेट से मिली है, जो शायद इस सभागार में ही कहीं मौजूद हैं। ‘प्रस्तावना’ की समाप्ति पर क्रैम्फ एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहते हैं, मैं उसे यहां पढ रहा हूं- ‘‘इस दुनिया में पाये जाने वाले संसाधनों के उपभोग में हम तब तक कमी नहीं ला सकते जब तक हम शक्तिशाली कहे जाने वाले लोगों को कुछ कदम नीचे आने के लिए मजबूर नहीं करते और जब तक हम यहां फैली हुई असमानता का मुकाबला नहीं करते। इसलिए ऐसे समय में, जब हमें सचेत होने की जरूरत है, हमें ‘थिंक ग्लोबली एण्ड ऐक्ट लोकली’ के उपयोगी पर्यावरणीय सिद्धांत में यह जोड़ने की जरूरत है कि ‘कंज्यूम लेस एण्ड शेयर बेटर’।’’

मुझे लगता है कि यह एक बेहतर सलाह है जो फ्रेंच लेखक हर्वे कैंफ हमें देते हैं।

अध्यक्ष महोदय, इसमें कोई संदेह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन इस शताब्दी की सबसे विध्वंसक पर्यावरणीय समस्या है। बाढ, सूखा, भयंकर तूफान, हरीकेन, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्रों के जलस्तर और अम्लीयता में वृद्धि, और गरम हवाएं- ये सभी उस वैश्विक संकट को और तेज कर रहे हैं, जो हमें चारों तरफ से घेरे हुए है। वर्तमान में इंसानों के जो क्रियाकलाप हैं, उन्होंने इस ग्रह में जीवन के लिए और स्वयं इस ग्रह के अस्तित्व के लिए एक खतरा पैदा कर दिया है। लेकिन इस योगदान में भी हम गैर-बराबरी के शिकार हैं।

मैं याद दिलाना चाहता हूं कि पचास करोड़ लोग, जो इस दुनिया की जनसंख्या का 7 प्रतिशत हैं, मात्र 7 प्रतिशत, वे पचास करोड़ लोग -7 प्रतिशत अमीर लोग- 50 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। जबकि इसके विपरीत 50 प्रतिशत गरीब लोग, मात्र और मात्र 7 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जवाबदेह हैं।

इसलिए संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन से एक ही जवाबदेही और जिम्मेदारी की अपेक्षा करना मुझे आश्चर्य में डाल देता है। यूएसए जल्द ही 30 करोड़ की जनसंख्या के आंकड़े पर पहुंच जाएगा, वहीं चीन की जनसंख्या लगभग यूएसए से पांच गुनी है। यूएसए दो करोड़ बैरल रोज के हिसाब से तेल की खपत करता है, जबकि चीन की खपत 50 से 60 लाख बैरल प्रतिदिन की है। इसलिए आप संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन को एक ही तराजू पर नहीं तौल सकते।

यहां पर बात करने के लिए बहुत सारे मुद्दें हैं, और मैं उम्मीद करता हूं कि राज्यों और सरकारों के प्रतिनिधि हम सब लोग इन मुद्दों और इनसे जुड़ी सच्चाइयों पर बात करने के लिए बैठ सकेंगे।

अध्यक्ष महोदय, आज इस ग्रह का 60 प्रतिशत पारिस्थितिकी तंत्र क्षतिग्रस्त हो चुका है, भूमि के ऊपरी धरातल का 20 प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो चुका है। हम जंगलों के खत्म होते जाने, भूमि परिवर्तन, रेगिस्तानों के बढते जाने, शुद्ध पेयजल की उपलब्धता में गिरावट, समुद्री संसाधनों के अत्यधिक उपभोग, जैव विविधता में कमी और प्रदूषण में बढोतरी- इन सबके संवेदनहीन गवाह रहे हैं। हम भूमि की पुनरुत्पादन क्षमता से भी 30 प्रतिशत आगे बढकर उसका उपभोग कर रहे हैं। हमारा ग्रह अपनी वह क्षमता खोता जा रहा है जिसे तकनीकी भाषा में ‘स्वयं के नियमन की क्षमता’ कहा जाता है। रोज हम उतने अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन कर रहे हैं जिन्हें फिर से नवीनीकृत करने की क्षमता हम में नहीं है। पूरी मानवता को एक ही समस्या आक्रांत किये हुए है और वह है मानव जाति के अस्तित्व की समस्या। इतना अपरिहार्य होने के बावजूद ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ के अंतर्गत दूसरी बार प्रतिबद्धता जताने में भी हमें दो साल लग गए। और आज जब हम इस आयोजन में शिरकत कर रहे हैं, तो भी हमारे पास कोई वास्तविक और सार्थक समझौता नहीं है।

सच्चाई यह है कि आश्चर्यजनक रूप से और एकाएक जो दस्तावेज हमारे सामने पेश हुआ है, हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे। यह हम वेनेजुएला, बोलिवर गठबंधन और अल्बा (ए.एल.बी.ए.) देशों की तरफ से कह रहे हैं। हमने पहले भी कहा था कि ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ और कन्वेंशन के वर्किंग ग्रुप से बाहर के किसी भी मसौदे को हम स्वीकार नहीं करेंगे। क्योंकि उनसे जुड़े मसौदे और दस्तावेज ही वैध और जायज हैं, जिन पर हम इतने सालों से इतनी गहराई से बात करते आ रहे हैं।

और अब, जब पिछले कुछ घंटों से न आप सोये हैं और न ही आपने कुछ खाया है, यह ठीक नहीं होगा कि मैं, आपके अनुसार, इन्हीं पुरानी चीजों में से किसी दस्तावेज को आपके सामने पेश करूं। प्रदूषण फैलाने वाली गैसों के उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है, पर आज मुझे ऐसा लग रहा है कि इस लक्ष्य को पाने और दूरगामी सहयोग के महारे प्रयास असफल हो गए हैं। कम से कम हाल फिलहाल तो ऐसा ही है।

इसका कारण क्या है? मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि इसका कारण इस ग्रह के सबसे शक्तिशाली देशों का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार और उनमें राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी का होना है। यहां पर किसी को अपमानित महसूस करने या नाराज होने की जरूरत नहीं है। महान जोस गेर्वासियो आर्तिगास के शब्दों में कहूं तो ‘‘जब मैं सच कहता हूं तो न मैं किसी को आघात पहुंचा रहा होता हूं और न ही किसी से डरता हूं’’। पर वास्तव में यहां अपने पदों को गैर जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल किया गया है, लोग अपनी बातों से पीछे हटे हैं, भेदभाव किया गया है, और समाधान के लिए एक अमीरपरस्त रवैया अपनाया गया है। यह रवैया ऐसी समस्या के साथ है जो हम सबकी साझी है, और जिसका समाधान हम सब मिलकर ही निकाल सकते हैं।

एक तरफ दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता और अमीर देश हैं; दूसरी तरफ हैं भूखे और गरीब लोग, जो बिमारियों और प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होने के लिए अभिशप्त हैं। राजनैतिक दकियानूसीपन और स्वार्थ ने पहले को दूसरे के प्रति असंवेदनशील बना दिया है। जिन दलों के बीच समझौता होना है, वे मौलिक रूप में ही असमान हैं। इसलिए अध्यक्ष महोदय, उत्सर्जन की जिम्मेदारी के आधार पर और आर्थिक, वित्तीय और तकनीकी दक्षता के आधार पर ऐसा नया और एकमात्र समझौता अनिवार्य हो गया है, जो ‘कन्वेंशन’ के सिद्धांतों के प्रति बिना शर्त सम्मान रखता हो।

विकसित देशों को अपने उत्सर्जन में वास्तविक कटौती के संदर्भ में बाध्यकारी, स्पष्ट और ठोस प्रतिबद्धता निर्धारित करनी चाहिए। साथ ही उन्हें गरीब देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने का उत्तरदायित्व भी अपने ऊपर लेना चाहिए ताकि वे गरीब देश जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी खतरों से बच सकें। ऐसे देशों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए जो सबसे कम विकसित हैं और जो द्वीपों के रूप में बसे हुए हैं।
अध्यक्ष महोदय, आज जलवायु परिवर्तन एकमात्र समस्या नहीं है जिसका ये मानवता सामना कर रही है। और भी कई अन्याय और उत्पीड़न हमें घेरे हुए हैं। ‘सहस्राब्दी लक्ष्यों’ और सभी तरह की आर्थिक शिखर बैठकों के बावजूद अमीर और गरीब के बीच की खाई बढती जा रही है। जैसा कि सेनेगल के राष्ट्रपति ने सच ही कहा कि इन सभी समझौतों और बैठकों में सिर्फ वादे किये जाते हैं, कभी न पूरे होने वाले वादे; और यह दुनिया विनाश की तरफ बढती रहती है।

इस दुनिया के 500 सबसे अमीर लोगों की आय सबसे गरीब 41 करोड़ 60 लाख लोगों से ज्यादा है। दुनिया की आबादी का 40 प्रतिशत गरीब भाग यानी 2.8 अरब लोग 2 डॉलर प्रतिदिन से कम में अपनी जिंदगी गुजर-बसर कर रहे हैं। और यह 40 प्रतिशत हिस्सा दुनिया की आया का पांच प्रतिशत ही कमा रहा है। हर साल 92 लाख बच्चे पांच साल की उम्र में पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं और इनमें से 99.9 प्रतिशत मौतें गरीब देशों में होती हैं। नवजात बच्चों की मृत्युदर प्रति एक हजार में 47 है, जबकि अमीर देशों में यह दर प्रति हजार में 5 है। मनुष्यों के जीवन की प्रत्याशा 67 वर्ष है, कुछ अमीर देशों में यह प्रत्याशा 79 वर्ष है, जबकि कुछ गरीब देशों में यह मात्र 40 वर्ष ही है। इन सबके साथ ही साथ 1.1 अरब लोगों को पीने का पानी मयस्सर नहीं है, 2.6 अरब लोगों के पास स्वास्थ्य और स्वच्छता की सुविधाएं नहीं हैं। 80 करोड़ से अधिक लोग निरक्षर हैं और 1 अरब 2 करोड़ लोग भूखे हैं। ये है हमारी दुनिया की तस्वीर।

पर फिर सवाल यही है कि इसका कारण क्या है? आज जरूरत है इस कारण पर बात करने की; यह वक्त अपनी जिम्मेदारियों से भागने या समस्या को नजरंदाज करने का नहीं है। इस भयानक परिदृश्य का कारण निस्संदेह सिर्फ और सिर्फ एक हैः पूंजी का विनाशकारी उपापचयी तंत्र और इसका मूर्त रूप- पूंजीवाद।

यहां मैं मुक्ति के महान मीमांसक लियानार्डो बाॅफ का एक संक्षिप्त उद्धरण देना चाहता हूं। लियानार्डो बाॅफ, एक ब्राजीली, एक अमरीकी, इस विषय पर कहते हैं कि ‘‘इसका कारण क्या है? आह, इसका कारण वह सपना है जिसमें लोग खुशी या प्रसन्नता पाने के लिए अंतहीन उन्नति और भौतिक संसाधनों का संग्रह करना चाहते हैं, विज्ञान और तकनीक के माध्यम से इस पृथ्वी के समस्त संसाधनों का असीम शोषण करना चाहते हैं।’’ और यहीं पर वे चाल्र्स डार्विन और उनके ‘प्राकृतिक वरण’ को उद्धृत करते हैं, ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ को। पर हम जानते हैं कि सबसे शक्तिशाली व्यक्ति सबसे कमजोर की राख पर ही जिंदा रहता है। ज्यां जैक रूसो ने जो कहा था, वह हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि मजबूत और कमजोर के बीच में स्वतंत्रता ही दमित और उत्पीडि़त होती है। इसीलिए ‘साम्राज्य’ हमेशा स्वतंत्रता की बात करते हैं। उनके लिए यह स्वतंत्रता है दमन की, आक्रमण की, दूसरों को मारने की, दूसरों के उन्मूलन और उनके शोषण की। उनके लिए यही स्वतंत्रता है। रूसो बचाव के लिए एक मुहावरे का इस्तेमाल करते हैं- ‘‘मुक्त करता है तो केवल कानून और नियम’’।

यहां कुछ ऐसे देश हैं जो नहीं चाहते कि कोई भी दस्तावेज सामने आए। जाहिर तौर पर इसलिए कि वे कोई नियम या कानून नहीं चाहते, कोई मानक नहीं चाहते। ताकि इन कानूनों और मानकों के अभाव में वे अपना खेल जारी रख सकें- शोषण की स्वतंत्रता का खेल दूसरों को कुचलने की स्वतंत्रता का खेल। इसलिए हम सभी को यहां और सड़कों पर इस बात के लिए प्रयास करना चाहिए, इस बात के लिए दबाव बनाना चाहिए कि हम किसी न किसी प्रतिबद्धता पर एकमत हो सकें, कोई न कोई ऐसा दस्तावेज सामने आए जो धरती के सबसे शक्तिशाली देशों को भी मजबूर कर सके।

अध्यक्ष महोदय, लियानार्डो बाॅफ पूछते हैं कि… क्या आपमें से कोई उनसे मिला है? मैं नहीं जानता कि बाॅफ यहां आ सकते हैं या नहीं? हाल में मैं पेराग्वे में उनसे मिला था। हम हमेशा उनको पढते रहे हैं… क्या सीमित संसाधनों वाली धरती एक असीमित परियोजना को झेल सकती है? असीमित विकासः पूंजीवाद का ब्रह्मवाक्य है, एक विध्वंसक पैटर्न है और आज हम इसे झेल रहे हैं। आइए, इसका सामना करें। तब बाॅफ हमसे पूछते हैं कि हम कोपेनहेगन से क्या उम्मीद कर सकते हैं? कम से कम एक ईमानदार स्वीकारोक्ति कि हम इस व्यवस्था को जारी नहीं रखेंगे और एक सरल प्रस्ताव कि आओ इस ढर्रे को बदल दें। हमें यह करना होगा लेकिन बिना किसी झंझलाहट, बिना झूठ, बिना दोहरे प्रावधानों के। बिना किसी मनमाने दस्तावेजों के हम इस ढर्रे को बदलें। पूरी ईमानदारी से, सबके सामने और सच के साथ।

अध्यक्ष महोदय, हम वेनेजुएला की तरफ से पूछते हैं कि हम कब तक इस अन्याय और असमानता को जारी रखेंगे? कब तक हम मौजूदा वैश्विक अर्थ तंत्र और सर्वग्रासी बाजार व्यवस्था को बर्दाश्त करते जायेंगे? कब तक हम एचआईवी एड्स जैसी भयानक महामारियों के सामने पूरी मनुष्यता को बिलखने के लिए छोड़ देंगे? कब तक हम भूखे लोगों को खाना नहीं मिलने देंगे या उनके बच्चों को भूखों मरने देंगें? कब तक लाखों बच्चों की मौत उन बिमारियों के चलते बर्दाश्त करते रहेंगे, जिनका इलाज संभव है? आखिर कब तक हम दूसरे लोगों के संसाधनों पर ताकतवरों द्वारा कब्जा करने के लिए जारी सशस्त्र हमलों में लाखों लोगों को कत्ल होते हुए देखते रहेंगे?

इसलिए हमलों और युद्धों को बंद किया जाए। साम्राज्यों से, जो पूरी दुनिया को दबाने और शोषण करने में लगे हुए हैं, हम दुनिया के लोग चीखकर कहते हैं कि इन्हें बंद किया जाए। साम्राज्यवादी सैन्य हमले और सैन्य तख्तापलट अब और नहीं! आइए एक ज्यादा न्यायपूर्ण और समानतामूलक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था बनाएं, आइए गरीबी मिटा दें, आइए तुरंत इस विनाशकारी उत्सर्जन को रोक दें, आइए पर्यावरण के इस क्षरण को समाप्त करें और जलवायु परिवर्तन के भीषण दुष्परिणामों से इस धरती को बचावें। आइए, पूरी दुनिया को ज्यादा आजाद और एकताबद्ध करने के महान उद्देश्य के साथ खुद को जोड़ लें।

अध्यक्ष महोदय, लगभग दो शताब्दियों पहले महान सीमोन बोलिवर ने कहा था कि ‘अगर प्रकृति हमारा विरोध करती है तो हमें उससे लड़ना होगा और उसे अपनी सेवा में लाना होगा’। यह राष्ट्रों के मुक्तिदाता, आने वाली नस्लों की चेतना के अग्रदूत महान साइमन बोलिवर का कहना था। बोलिवेरियन वेनेजुएला से, जहां हमने लगभग 10 साल पहले आज जैसे ही एक दिन अपने इतिहास की भीषणतम जलवायु त्रासदी (वर्गास त्रासदी) का सामना किया था, उस वेनेजुएला से जहां क्रांति ने सबको न्याय देने का प्रयास किया है, हम कहना चाहते हैं कि ऐसा करना सिर्फ समाजवाद के रास्ते से संभव है।

समाजवाद, वह दूसरा भूत जिसकी कार्ल माक्र्स ने चर्चा की थी, जो यहां भी चला आया है, दरअसल यह तो उस पहले भूत का विरोधी है। समाजवाद यही दिशा है, इस ग्रह के विनाश को रोकने का यही रास्ता है। मुझे कोई शक नहीं है कि पूंजीवाद नर्क का रास्ता है, दुनिया की बर्बादी का रास्ता है। यह हम वेनेजुएला की तरफ से कह रहे हैं जो समाजवाद के कारण अमेरिकी साम्राज्य के कोप का सामना कर रहा है।

अल्बा के सदस्य देशों की तरफ से बोलिवेरियन गठबंधन की तरफ से हम आह्वान करते हैं, और मैं भी पूरे आदर के साथ अपनी अंतरात्मा से इस ग्रह के सभी लोगों का आह्वान करता हूं, हम सभी सरकारों और पृथ्वी के सभी लोगों से कहना चाहते हैं, साइमन बोलिवर का सहारा लेते हुए कि यदि पूंजीवाद का विनाशक चरित्र हमारा विरोध करता है, हम इसके विरुद्ध लडेंगे और इसे जीतेंगे; हम मनुष्यता के खत्म हो जाने तक इंतजार में नहीं बैठे रह सकते। इतिहास हमें एकताबद्ध होने के लिए और संघर्ष के लिए पुकार रहा है।

यदि पूंजीवाद विरोध करता है, हम इसके खिलाफ युद्ध के लिए प्रतिबद्ध हैं, और यह युद्ध मानव जाति की मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करेगा। यीशु, मुहम्मद, समानता, प्रेम, न्याय, मानवता- सच्ची और सबसे गहरी मानवता का झंडा उठाए हम लोगों को यह करना है। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो इस ब्रह्मण्ड की सबसे विलक्षण रचना, मनुष्य, का अंत हो जाएगा, मानव जाति विलुप्त हो जाएगी।

यह ग्रह करोड़ों वर्ष पुराना है, यह ग्रह करोड़ों वर्ष हमारे वजूद के बिना ही अस्तित्व में रहा है। स्पष्ट है यह अपने अस्तित्वं के लिए हम पर निर्भर नहीं है। सारतः बिना धरती के हमारा अस्तित्व संभव नहीं है और हम इसी ‘धरती मां’ को नष्ट कर रहे हैं, जैसा इवो मोरेल्स कह रहे थे, जैसा दक्षिण अमेरिका से हमारे देशज भाई कहते हैं।

अंत में, अध्यक्ष महोदय, मेरे खत्म करने से पहले कृपया फिदेल कास्त्रो को सुनिए, जब वे कहते हैं: ‘एक प्रजाति खात्मे के कगार पर हैः मनुष्यता’।

रोजा लग्जमबर्ग को सुनिए जब वे कहती हैं: ‘समाजवाद या बर्बरतावाद’।

उद्धारक यीशु को सुनिए जब वे कहते हैं: ‘गरीब सौभाग्यशाली हैं क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है’।

अध्यक्ष महोदय, देवियों और सज्जनों, हम इस धरती को मनुष्यता का मकबरा बनने से रोक सकते हैं। आइए, इस धरती को स्वर्ग बनाएं। एक स्वर्ग जीवन के लिए, शांति के लिए, पूरी मनुष्यता की शांति और भाईचारे के लिए, मानव प्रजाति के लिए।

अध्यक्ष महोदय, देवियों और सज्जनों, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! दोपहर के भोजन का आनंद उठाइए।

----- 22 दिसंबर, 2009  को कोपेनहेगन में ‘जलवायु परिवर्तन’ पर ह्यूगो शावेज का सन्देश

Sunday, April 14, 2013

मैं अमरीकी सरकार पर आतंकवाद की हिफाजत करने और एक पूर्णतः मानवद्रोही भाषण देने का अभियोग लगाता हूं

डाकिए की ओर से: एक घटना है कि एक पादरी बाइबल लेकर एक अनजान जगह आता है। और कई साल बाद वहां के हर ग्रामीण के हाथ में बाइबल होता है और वहां के सारी ज़मीन का मालिक पादरी बन जाता है। ह्यूगो शावेज फ्रियास ने साम्राज्यवाद के विरूद्ध यह संबोधन 20 सितंबर 2006 को काराकास में हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में दिया था। शावेज एक जननेता। वे हमारे साथ हमेशा रहेंगे। शावेज, एक शेर को डाकिए का सलाम।
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अध्यक्ष महोदया, महामहिम राज्याध्यक्ष, सरकारों के प्रमुख और दुनिया की सरकारों के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिगण आप सबको शुभ दिवस!

सबसे पहले आपसे मेरा विनम्र अनुरोध है कि जिसने भी यह किताब नहीं पढ़ी है, इसे जरूर पढ़ ले। अमरीका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के बहुत ही सम्मानित बुद्धिजीवी नोम चोम्सकी की ताज़ा रचना मैंने पढ़ी - ‘वर्चस्व या अस्तिव रक्षा ? दुनिया पर प्रभुत्व कायम करने की अमरीकी कोशिश।’ यह किताब 20वीं सदी के दौरान जो कुछ हुआ और जो आज भी हो रहा है, हमारे भूमण्डल के ऊपर जो गम्भीर खतरे मंडरा रहे हैं, अमरीकी साम्राज्यवाद के जिस वर्चस्ववादी मंसूबे ने मानव जाति के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है, उन सबको समझने में यह काफी मददगार है। डेमोक्लीज की तलवार की तरह हमारे ऊपर लटक रहे इस खतरे के प्रति हम लगातार अमरीका और पूरी दुनिया की जनता को चेतावनी दे रहे है। और उनका आह्वान कर रहे हैं।

मैं इसका एक अध्याय यहां पढ़ना चाहता था, लेकिन समय के अभाव में मैं केवल आपसे पढ़ने का अनुरोध भर कर रहा हूं। यह काफी प्रवाहमय है। अध्यक्ष महोदया, यह वास्तव में बहुत अच्छी किताब है और आप जरूर इससे वाकिफ होंगी। यह अंग्रेजी, जर्मन, रशियन और अरबी में छपी है। देखिए, मेरे ख्याल से संयुक्त राज्य अमरीका के हमारे भाई-बहनों को तो सबसे पहले इसे पढ़ना चाहिए क्येांकि खतरा उनके घर में है। शैतान उनके घर में, खुद उनके घर के भीतर है।

शैतान कल यहां भी आया था। (हंसी और तालियां) कल शैतान यहीं था। ठीक इसी जगह। यह टेबुल जहां से मैं बोल रहा हूं, वहां अभी भी सल्फर की बदबू आ रही है। कल, बहनों-भाइयों ठीक इसी सभागार में संयुक्त राज्य अमरीका का राष्ट्रपति जिसे मैं शैतान कह रहा हूं, आया था और ऐसे बोल रहा था, जैसे वह दुनिया का मालिक हो। कल उसने जो भाषण दिया था, उसे समझने के लिए हमें किसी मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ेगी। 

साम्राज्यवाद के प्रवक्ता के रूप में वह हमें अपने मौजूदा वर्चस्व को बनाए रखने, दुनिया की जनता के शोषण और लूट की योजना को नुस्खा देने आया था। इस पर पर तो अल्फ्रेड हिचकाॅक की एक डरावनी फिल्म तैयार हो सकती है। मैं उस फिल्म का नाम भी सुझा सकता हूं - ‘‘शैतान का नुस्खा।’’ मतलब अमरीकी साम्राज्यवाद, और यहां चोम्सकी इस बात को गहरी और पारदर्शी स्पष्टता के साथ कहते हैं कि अमरीकी साम्राज्यवाद अपीन वर्चस्ववादी प्रभुत्व की व्यवस्था को मजबूत बनने की उन्माद भरी कोशिशें कर रहा है। हम ऐसा होने नहीं देंगे, हम उन्हें विश्वव्यापी तानाशादी लादने नहीं देंगे।

दुनिया के इस जालिम राष्ट्रपति का भाषण मानवद्वेष से भरा हुआ था, पाखण्ड से भरा हुआ था। यही वह साम्राज्ञी पाखण्ड है जिसके सहारे वे हर चीज पर नियंत्रण कायम करना चाहते हैं। वे हम सबके ऊपर अपने द्वारा गढ़े गए लोकतंत्र के नमूने को थोपना चाहते हैं, अभिजात्यों का फर्जी लोकतंत्र और इतना ही नहीं, एक बहुत ही मौलिक लोकतांत्रिक नमूना जो विस्फोटों, बमबारियों, घुसपैठों और तोप के गेलों के सहारे थोपा जा रहा है, क्या ही सुंदर लोकतंत्र है! हमें अरस्तू और प्राचीन यूनानियों के लोतंत्र के सिद्धांतों का पुनरावलोकन करना होगा यह समझने के लिए कि यह किस प्रकार के लोकतंत्र का नमूना है जो समुद्री बड़ों, आक्रमणों, घुसपैठों और बमों के ज़रिए आरोपित किया जा रहा है।

अमरीकी राष्ट्रपति ने इस छोटे से सभागार में कल कहा था कि ‘आप जहां भी जाओ, आपको उग्रवादी यह कहते हुए सुनाई देते हैं कि आप हिंसा और आतंक, मुसीबतों से छुटकारा पा सकते हैं और अपना सम्मान फिर से हासिल कर सकते हैं।’ वह जिधर भी देखता है, उसे उग्रवादी दिखाई देते हैं। मुझे यकीन है कि वह आपकी चमड़ी के रंग को देखता है भाई और सोचता है कि आप एक उग्रवादी हो। अपनी चमड़ी के रंग के चलते ही बोलीविया के माननीय राष्ट्रपति इवो मोरालेस जो कल यहां आए थे, एक उग्रवादी हैं। साम्राज्यवादियों को हर जगह उग्रवादी दिखाई देते हैं। नहीं, ऐसा नहीं कि हमलोग उग्रवादी हैं। हो ये रहा है कि दुनिया जाग रही है और हर जगह जनता उठ खड़ी हो रही है। मुझे ऐसा लगता है कि श्रीमान् साम्राज्यवादी तानाशाह कि आप अपने बाकी के दिन एक दुःस्वप्न में गुजारेंगे, क्योंकि आप चाहे जिधर भी देखेंगे हम अमरीकी साम्राज्यवाद के खिलाफ उठ खड़े हो रहे होंगे। हां, वे हमें उग्रवादी कहते हैं क्योंकि हम दुनिया में सम्पूर्ण आज़ादी की मांग करते हैं जनता के बीच समानता की मांग करते हैं और राष्ट्रीय सम्प्रभुता के सम्मान की मांग करते हैं। हम साम्राज्य के खिलाफ, वर्चस्व के ताने-बाने के खिलाफ उठ खड़े हो रहे हैं। 

आगे राष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘आज हम सारे मध्यपूर्व की समूची जनता से सीधे-सीधे कहना चाहेंगे कि मेरा देश शांति चाहता है।’’ यह पक्की बात है। अगर हम ब्रोंक्स की सड़कों से गुजरें, यदि हम न्यूयार्क, वाशिंगटन, सान दियेगो, कैलीफोर्निया, सन फ्रांसिस्को की गलियों से होकर गुज़रें और उन गलियों के लोगें से पूछें तो यही जवाब मिलेग कि अमरीका की जनता शांति चाहती है। फर्क यह है कि इस देश की, अमरीका की सरकार शांति नहीं चाहती। युद्ध का भय दिखाकर हमारे ऊपर अपने शोषण और लूट और प्रभुत्व का प्रतिमान थोपना चाहती है। यही थोड़ा सा फर्क है।

जनता शांति चाहती है लेकिन इराक में हो क्या रहा है? और लेबनान और फिलिस्तीन में क्या हुआ? और सौ सालों तक लातिन अमरीका और दुनियाभर में क्या हुआ? और वेनेजुएला के खिलाफ धमकी और ईरान के खिलाफ नई धमकी? लेबनान की जनता से उसने कहा, ‘‘आप में से बहुतों ने अपने घर और अपने समुदायों को जवाबी गोलाबारी में फंसते देखा।’’ क्या सनकीपन है? दुनिया के सामने सफेद झूठ बोलने की कैसी महारत है? बेरूत के ऊपर एक एक सेंटीमीटर की नाप-जोख करके गिराए गए बम क्या ‘‘जवाबी गोलाबारी’’ थी! मेरे ख्याल से राष्ट्रपति उन पश्चिमी फिल्मों की बात कर रहा है जिसमें वे कमर की ऊंचाई से दूसरे पर अंधाधंुध गोलियां चलाते हैं और बीच में फंस कर कोई मर जाता है। 
साम्राज्यवादी गोलाबारी, फासीवादी गोलाबारी! हत्यारी गोलाबारी! साम्राज्यवादियों और इजरायल के द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान की निर्दोष जनता के खिलाफ नरसंहारक गोलाबारी, यही सच है। अब वे कहते हैं कि तबाह किए गए घरों को देखकर परेशान हैं।

आज सुबह मैं अपने भाषण की तैयारी के दौरान कुछ भाषणों को देख रहा था। अपने भाषण में अमरीकी राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान की जनता को, लेबनान की जनता को, ईरान की जनता को सम्बोधित किया। कोई भी, अमरीकी राष्ट्रपति को उन लोगों को सम्बोधित करते हुए सुनेगा तो वह अचरज में पड़ जाएगा। वे लोग उससे क्या कहेंगे? यदि वे लोग उससे कुछ कह पाते तो उसे भला क्या कहते? मुझे इसका कुछ अंदाजा है क्योंकि मैं उन लोगों की, दक्षिण के लोगों की आत्मा से परिचित हूं। यदि दुनियाभर के वे लोग अमरीकी साम्राज्यवाद से एक ही आवाज़ में बोलें, तो दबे-कुचले लोग कहेंगे - साम्राज्यवादी वापस जाओ! यही वह चीख होगी जो पूरी दुनिया में गूंज उठेगी। 

अध्यक्ष महोदया, साथियों.... और दोस्तों.... पिछले साल हमलोग ठीक इसी सभागार में आए, पिछले आठ वर्षों से हमलोग यहां जुटते हैं और हम सबने कुछ बातें कही थीं जा आज पूरी तरह सही साबित हुई है। मेरा विश्वास है कि इस जगह बैठे हुए लोगों में से कोई भी नहीं होगा जो संयुक्त राष्ट्र संघ की व्यवस्था के समर्थन में खड़ा होग। हमें इस बात को ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जिस संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्भव हुआ था, वह किसी काम का नहीं रहा। हां, ठीक है कि यहां आना और भाषण देना और एक-दूसरे से साल में एक बार मिलना-जुलना, इतना काम तो होता है। लंबे दस्तावेज़ तैयार करना, अपने विचार व्यक्त करना और अच्छे भाषण सुनना, जैसा कल इवो ने और लूला ने दिया था, हां इसके लिए यह ठीक है और भी कई अच्छे भाषण भी, जैसा अभी-अभी श्रीलंका के राष्ट्रपति और चिली के राष्ट्रपति ने दिया। लेकिन हमने इस मंच को महज एक विचार मंडल में बदल दिया है जिसमें आज पूरी दुनिया जिन भयावह सच्चाइयों से रूबरू है उन्हें रत्ती भर भी प्रभावित करने का कोई दम नहीं है। इसलिए हम यहंा एक बार फिर आज यानि 20 सितंबर, 2006 को संयुक्त राष्ट्र संघ की पुनस्र्थापना का प्रस्ताव रखते हैं। पिछले साल अध्यक्ष महोदया, हमने चार निम्न प्रस्ताव रखे थे, जिन्हें मैं महसूस करता हूं कि राज्याध्यक्षों, सरकार के प्रमुखों, राजदूतों और प्रतिनिधियों द्वारा स्वीकृति दिया जाना अत्यंत जरूरी है। हमने इन प्रस्तावों पर विचार-विमर्श भी किया है। 

पहला - विस्तार। कल लूला ने यही बात कही थी, सुरक्षा परिषद् के स्थाई और साथ ही अस्थाई पदों को भी विकसित, अविकसित और तीसरी दुनिया के देशों के बीच से नए सदस्यों के लिए खुला रखना जरूरी है। यह पहली प्राथमिकता है। 

दूसरा - दुनिया के टकरावों का समाना करने और उन्हें हल करने के लिए प्रभावी तौर-तरीके अपनाना। वाद-विवाद और निर्णय लेने के पारदर्शी तौर-तरीके। 

तीसरा - वीटो की गैरजनवादी प्रणाली तत्काल समाप्त करना। सुरक्षा परिषद् के निर्णयों के ऊपर वीटो के अधिकार का प्रयोग हमारे ख्याल से एक बुनियादी सवाल है और हम सब इसे हटाने की मांग करते हैं। इसका ताजा उदाहरण है अमरीकी संरकार द्वारा अनैतिक वीटो जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के एक प्रस्ताव को बाधित करके इजरायली सेना को लेबनान की तबाही की खुली छूट दे दी और हम विवश देखते रहे। 
चैथा - जैसा कि हम हमेशा कहते रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की भूमिका और उसके अधिकारों को मजबूत बनाना जरूरी है। कल हमने महासचिव का भाषण सुना जिनका कार्यकाल जल्दी ही खत्म होने जा रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले दस वर्षों के दौरान दुनिया पहले से कहीं ज्यादा जटिल हो गई है तथा भूख, गरीबी, हिंसा और मानवाधिकारों के हनन जैसी दुनिया की गंभीर समस्याएं लगातार विकट होती गई हैं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की व्यवस्था के पतन और अमरीकी साम्राज्यवाद के मंसूबों का भयावह परिणाम है।

अध्यक्षा महोदया, इसके सदस्य के रूप में अपनी-अपनी हैसियत को समझते हुए कई साल पहले वेनेजुएला ने फैसला किया था कि हम संयुक्त राष्ट्र संघ के भीतर अपनी आवाज़, अपने विनम्र विचारों के ज़रिए यह लड़ाई लडें़गे। हम एक स्वतंत्र आवाज़ हैं, स्वाभिमान के प्रतिनिधि हैं, शांति की तलाश में हैं और एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के निरूपण की मांग करते हैं जो दुनियाभर की जनता के उत्पीड़न और वर्चस्ववादी आक्रमणों की भत्र्सना करे। इसी को ध्यान में रखते हुए वेनेजुएला ने अपना नाम प्रस्तुत किया है। बोलिवर की धरती ने सुरक्षा परिषद् के अस्थायी पद के उम्मीदवार के रूप में अपना नाम प्रस्तुत किया है। निश्चय ही आप सब जानते हैं अमरीकी सरकार ने एक खुला आक्रमण छेड़ दिया है ताकि वह सुरक्षा परिषद् के खुले पद को स्वतंत्र चुनाव के ज़रिए हासिल करने में वेनेजुएला की राह में बाधा खड़ी करे। वे सच्चाई से डरते हैं। साम्राज्यवादी सच्चाई और स्वतंत्र आवाज़ से भयभीत हैं। वे हम पर उग्रवादी होने की तोहमत लगाते हैं। 

उग्रवादी तो वे खुद हैं। 

मैं उन सभी देशों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने वेनुजुएला को समर्थन देने की घोषणा की है, बावजूद इसके कि मतदान गुप्त है और किसी के लिए अपन मत ज़ाहिर करना जरूरी नहीं। लेकिन मैं सोचता हूं कि अमरीका के खुले आक्रमण ने कई देशों को समर्थन के लिए बाध्य कर दिया ताकि वेनेजुएला को, हमारी जनता और हमारी सरकार को नैतिक रूप से बल प्रदान करे। 

मरकोसुर के हमारे भाइयों एवं बहनों ने, मिसाल के लिए एक समूह के तौर पर वेनेजुएला को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। अब हम ब्राजील, अर्जेंटीना, उरूग्वे, परागुए के साथ मरकोसुर (लातिन अमरीकी साझा बाज़ार) के स्थायी सदस्य हैं। बोलीविया जैसे कई दूसरे लातिन अमरीकी देशों और सभी कैरीकाॅम (कैरीबियाई साझा बाज़ार) के देशों ने भी वेनेजुएला को अपना समर्थन देने का वचन दिया है। सम्पूर्ण अरब लीग ने वेनेजुएला को समर्थन देने की घोषण की है। मैं अरब दुनिया को, अरब दुनिया के अपने भाइयों को धन्यवाद देता हूं। अफ्रीकी संघ के लगभग सभी देशों ने तथा रूस, चीन और दुनियाभर के अन्य कई देशों ने भी वेनेजुएला को अपना समर्थन देने का वचन दिया है। मैं वेनेजुएला की ओर से, अपने देश की जनता की ओर से और सच्चाई के नाम पर आप सबको तहे दिल से धन्यवाद देता हूं क्योंकि सुरक्षा परिषद् में स्थान पाकर हम न केवल वेनेजुएला की आवाज़, बल्कि तीसरी दुनिया की आवाज़, पूरे पृथ्वी ग्रह की आवाज़ को सामने लाएंगे, वहां हम सम्मान और सच्चाई की हिफाजत करेंगे। अध्यक्ष महोदया, सबकुछ के बावजूद मैं सोचता हूं कि आशावादी होने के आधार हैं। 

जैसा कवि लोग कहते हैं, विकट आशावादी क्योंकि बमों, युद्ध, हमलों, निरोधक युद्धों और पूरी जनता की तबाही के खतरे के बावजूद कोई भी यह देख सकता है कि एक नए युग का उदय हो रहा है। जैसा कि सिल्वो रोड्रिग्ज गाता है - ‘‘जमाना एक नए जीवट को जन्म दे रहा है।’’ वैकल्पिक प्रवृत्तियां, वैकल्पिक विचार और स्पष्ट विचारों वाले नौजवान उभर कर सामने आ रहे हैं। बमुश्किल एक दशक बीता और यह बात साफ तौर पर साबित हो गई कि ‘इतिहास के अंत’ का सिद्धांत पूरी तरह फर्जी है। अमरीकी साम्राज्य और अमरीकी शांति की स्थापना, पूंजीवादी नवउदारवादी माॅडल की स्थापना जो दुःख-दैन्य और गरीबों को जन्म देते हैं - पूरी तरह फर्जी है। यह विचार पूरी तरह बकवास है और इसे कूड़े में फेंक दिया गया है। अब दुनिया के भविष्य को परिभाषित करना ही होगा। पूरी पृथ्वी पर एक नया सवेरा हो रहा है जिसे हर जगह देखा जा सकता है - लातिन अमरीका में, एशिया, अफ्रीका, यूरोप और ओसीनिया में। इस आशावादी नज़रिए पर मैं अच्छी तरह रोशनी डाल रहा हूं ताकि हम अपनी अंतरात्मा और दुनिया की हिफाजत करने का, एक बेहतर दुनिया, एक नई दुनिया के निर्माण के लिए लड़ने का, अपना इरादा पक्का कर लें।

वेजेजुएला इस संघर्ष में शामिल हो गया है और इसलिए हमें धमकियां दी जा रही हैं। अमरीका ने पहले ही एक तख्तापलट की योजना बनाई, उसके लिए पैसे दिए और उसे अंजाम दिया। अमरीका आज भी वेनेजुएला में तख्तापलट की साजिश रचने वालों की मदद कर रहा है और वे लगातार वेनेजुएला के खिलाफ आतंकवादियों की मदद कर रहे हैं। 
राष्ट्रपति मिशेल बैचलेट ने कुछ दिनों पहले माफ करें, कुछ ही मिनटों पहले यहां बताया कि चिली के विदेश मंत्री ओरलांदो लेतेलियर की कितनी भयावह तरीके से हत्या की गई। मैं इसमें इतना और जोड़ दूं कि अपराधी दल पूरी तरह आजाद हैं। उस कुकृत्य के लिए, जिसमें एक अमरीकी नागरिक भी मारा गया था, जो लोग जिम्मेदार हैं वे सीआईए के उत्तरी अमरीकी लोग हैं, सीआईए के आतंकवादी हैं। 

इसके साथ मैं इस सभागार में यह भी याद दिला देना जरूरी समझता हूं कि आज से 30 साल पहले एक हृदयविदारक आतंवादी हमले में क्यूबाना दे एविएसियोन के एक हवाई जहाज को बीच आकाश में उड़ा दिया गया था और 73 निर्दोष नागरिकों कोमोत के घाट उतार दिया गया था। इस महाद्वीप का वह सबसे घिनौना आतंकवादी कहां है जिसने स्वीका किया था कि उस क्यूबाई हवाई जहाज को उड़ाने के षडयंत्र का दिमागी खाका उसी ने तैयार किया था ? वह कुछ सालों तक वेनेजुएला की जेल में था, लेकिन सीआईए के अधिकारियों और वेनेजुएला की तत्कालीन सरकार की मदद से वह फरार हो गया। आजकल वह अमरीका में रह रहा है और वहां की सरकार उसका बचाव कर रही है, इसके बावजूद कि उसने जुर्म का इकबाल किया था और उसे सजा हुई थी। अमरीका दोगली नीति अपनाता है और आतंकवादियों का बचाव करता है। 

इन बातों के ज़रिए मैं यह बताना चाहता हूं कि वेनेजुएला आतंकवाद के खिलाफ, हिंसा के खिलाफ संघर्ष के लिए वचनबद्ध है और उन सभी लोगों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है जो शांति के लिए और एक न्यायपूर्ण दुनिया के लिए संघर्षरत हैं।

मैंने क्यूबाई हवाई जहाज की बात की। लुइस पोसादा कैरिलेस नाम है उस आतंकवादी का। अमरीा में उसकी ठीक उसी तरह हिफाजत की जाती है जैसे वेनेजुएला के भ्रष्ट भगोड़ों की, आतंकवादियों के एक गिरोह की जिसने कई देशों के दूतावासों में बम लगाया था, तख्तापलट के दौरान निर्दोष लोगों की हत्या की थी और इस विनम्र सेवक (शावेज) का अपहरण किया था। वे मेरी हत्या करने ही वाले थे कि खुदा की मेहरबानी, अच्छे सैनिकों का एक समूह सामने आया और जिन्होंने जनता को सड़कों पर उतार दिया। यह चमत्कार ही समझिए कि मैं यहां मौजूद हूं। उस तख्तापलट और आतंकवादी कारनामे के नेता यहीं हैं, अमरीकी सरकार की सुरक्षा में (अभी हाल ही में खबर आयी कि अमरीका ने इस आतंकवादी कैरिलेस को रिहा कर दिया है - अनुवादक) मैं अमरीकी सरकार पर आतंकवाद की हिफाजत करने और एक पूर्णतः मानवद्रोही भाषण देने का अभियोग लगाता हूं।

यहां तक क्यूबा की बात है, हम लोग खुशी-खुशी हवाना गए। कई दिनों तक हमलोग वहां रहे। जी-15 और गुट निरपेक्ष आंदोलन के सम्मेलन के दौरान पारित एक ऐतिहासिक प्रस्ताव और दस्तावेज में नए युग के उदय का स्पष्ट प्रमाण मौजूद था। परेशान न हों। मैं यहां उन सबको पढ़ने नहीं जा रहा हूं। लेकिन पूरी पारदर्शिता के साथ खुले विचार-विमर्श के बाद लिए गए प्रस्तावों का एक संग्रह यहां उपलब्ध है। पचास देशों के राज्याध्यक्षों की उपस्थिति में एक हफ्ते एक हवाना दक्षिण की राजधानी बना हुआ था। हमने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को दुबारा शुरू किया और आपने हमारी यही गुज़ारिश है कि मेरे भाईयों और बहनों, मेहरबानी करके आप लोग गुटनिरपेक्ष आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए अपना पूरा सहयोग दें, क्योंकि यह नए युग के उदय और आधिपत्य और साम्राज्यवाद पर लगाम लगाने के लिए बहुत ही जरूरी है। साथ ही आप सब जानते हैं कि हमने फिदेल कास्त्रो को अगले तीन वर्षों के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अध्यक्ष बनाया है और हमें पक्का यकीन है कि साथी अध्यक्ष फिदेल कास्त्रो पूरी दक्षता के साथ अपना पद संभालेंगे। जो लोग फिदेल की मौत चाहते थे, उन्हें निराशा ही हाथ लगी क्योंकि फिदेल अपनी जैतूनी हरे रंग की वर्दी में वापस आ गए हैं और वे अब न केवल क्यूबा के राज्याध्यक्ष हैं बल्कि गुट निरपेक्ष आंदोलन के भी अध्यक्ष हैं। 

अध्यक्ष महोदया, मेरे प्यारे दोस्तों राज्याध्यक्षों, हवाना में दक्षिण का एक बहुत ही मजबूत आंदोलन उठ खड़ा हुआ है। हम दक्षिण के औरत और मर्द हैं। हम इन दस्तावेज़ों, इन धारणाओं और विचारों के वाहक हैं। जिन परचों और पुस्तकों को मैं वहां से अपने साथ लाया हूं - वे आपके लिए रखवा दिए गए हैं। इन्हें भूलिएगा मत। मैं वास्तव में आपसे इन्हें पढ़ने की सिफारिश कर रहा हूं। पूरी विनम्रता के साथ हमलोग इस ग्रह को बचाने, साम्राज्यवाद के खतरे से इसकी हिफाजत करने की दिशा में वैचारिक योगदान करने का प्रयास कर रहे हैं और भगवान ने चाहा तो जल्दी ही यह काम हो जाएगा। इस सदी की शुरूआत में ही यदि खुदा ने चाहा हमलोग खुद भी और अपने बच्चों, अपने पोते-पोतियों के साथ एक शांतिपूर्ण दुनिया का मज़ा ले सकेंगे, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के नवीन और पुनर्निधारित बुनियादी सिद्धांतों के अनुरूप होगी। मेरा विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र संघ किसी अन्य देश में स्थापित होगा, दक्षिण के किसी शहर में। हमने इसके लिए वेनेजुएला की ओर से प्रस्ताव दिया है। आप सबको पता है कि हमारे चिकित्सकों को हवाई जवाज में बंद करके रोक दिया गया है। हमारे सुरक्षा प्रमुख को हवाई जहाज में बंद कर दिया गया। वे उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में नहीं आने देंगे। एक और दुव्र्यवहार, एक और अत्याचार।
अध्यक्ष महोदया, मेरा आग्रह है कि इसके लिए व्यक्तिगत तौर पर उसी सल्फ्यूरिक शैतान को जिम्मेदार माना जाए। 

गर्मजोशी भरा आलिंगन। खुदा हम सब की खैर करे।

शुभ दिवस।

साभार: समकालीन जनमत, अप्रैल 13
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