ऐ सखी एल्बम का एक मात्र फेमिनाइन गाना है। पर अपने वक्त से थोड़ी पीछे। यही गाना कुछ दस एक साल पहले आया होता तो ज़्यादा प्रसिद्ध होता, बनिस्पत कि जितना आज होगा। क्यूंकि दिल्ली या किसी और मेट्रो सिटी की लडकियां इस गाने से रिलेट नहीं कर पाएंगी। वो इन गानों से आगे बढ़ गयी हैं।
या तो समहाउ इंटीरियर या समहाउ कन्जर्वेटिव फैमली की लडकियाँ इससे ज़यादा रिलेट कर पाएंगी।
या वो लडकियां जिनकी ज़िन्दगी का हर पन्ना रोमांटिक है। इन्फेक्ट, गाना सुनकर आप भी इन लडकियों से गाने को ज्यादा रिलेट कर पाएंगे। सहेलियों की चुहल बाजियां, एक दूसरे को चुंटी काटना वगैरह की इमेज बनेंगी। जैसे 'सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए','मार उडारी' और रहमान के ही कुछ गाने 'एली रे एली' या 'ताल से ताल मिला'.
बोल का कॉन्सेप्ट पहेलियों वाला है। जैसे इच्चक दाना बिच्च्क दाना।
ये गाना कतिया करूं गाने से इस तरह अलहदा है कि उसमें एक अकेली लड़की थी इसमें बंच ऑव देम। लास्ट स्टेंज़ा लिरिटिकल मास्टर पीस है।
पास न हो बड़ा सताए
पास जो हो बड़ा सताए
पास बुलाये बिना बतलाये
पास वो आये बिना बतलाये
पास रहे नज़र न आये
पास रहे नज़र लगाये
पास उसके रहे ख्वाहिशें
पास उसी की कहें ख्वाहिशें
गाना क्लासिकल बेस है। किसी विशेष राग पर आधरित।
केवल भारत में ही आप शाश्त्रीय संगीत की दो विधाएं पाएंगे क्रमशः कारनेटिक(दक्षिण भारतीय) और इंडियन(उत्तर भारतीय) दोनों ही अपने आप में सम्पूर्ण और अलहदा।
रहमान दोनों के बीच ही टॉगल ही नहीं करते बल्कि जैज़, रॉक, कंट्री जैसे वेस्टर्न में भी प्रयोग करते हैं (इस गाने में नहीं अन्यथा)। गाने के बीच में (इंटरटोन में) लडकियों का 'टयऊँ-टयऊँ-टयऊँ' और 'पें पें पें' करना गाने को कुछ चीप बना देता है। पर हाँ गाने को एक फेमिनाइन ऑरा भी देता है। गाने बार बार सुनने के बाद अच्छा लगने लगता है। मुझे गायकी में मधुश्री, चिन्मय, वैशाली, आँचल सेठी के करतब और इनोसेंस भा गयी।
चार अंक।
PS: कुछ पुराने लोग गाना सुनकर गाने में लता मंगेशकर को मिस कर सकते हैं। या महसूस कर सकते हैं।
TBC...
या तो समहाउ इंटीरियर या समहाउ कन्जर्वेटिव फैमली की लडकियाँ इससे ज़यादा रिलेट कर पाएंगी।
या वो लडकियां जिनकी ज़िन्दगी का हर पन्ना रोमांटिक है। इन्फेक्ट, गाना सुनकर आप भी इन लडकियों से गाने को ज्यादा रिलेट कर पाएंगे। सहेलियों की चुहल बाजियां, एक दूसरे को चुंटी काटना वगैरह की इमेज बनेंगी। जैसे 'सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए','मार उडारी' और रहमान के ही कुछ गाने 'एली रे एली' या 'ताल से ताल मिला'.
बोल का कॉन्सेप्ट पहेलियों वाला है। जैसे इच्चक दाना बिच्च्क दाना।
ये गाना कतिया करूं गाने से इस तरह अलहदा है कि उसमें एक अकेली लड़की थी इसमें बंच ऑव देम। लास्ट स्टेंज़ा लिरिटिकल मास्टर पीस है।
पास न हो बड़ा सताए
पास जो हो बड़ा सताए
पास बुलाये बिना बतलाये
पास वो आये बिना बतलाये
पास रहे नज़र न आये
पास रहे नज़र लगाये
पास उसके रहे ख्वाहिशें
पास उसी की कहें ख्वाहिशें
गाना क्लासिकल बेस है। किसी विशेष राग पर आधरित।
केवल भारत में ही आप शाश्त्रीय संगीत की दो विधाएं पाएंगे क्रमशः कारनेटिक(दक्षिण भारतीय) और इंडियन(उत्तर भारतीय) दोनों ही अपने आप में सम्पूर्ण और अलहदा।
रहमान दोनों के बीच ही टॉगल ही नहीं करते बल्कि जैज़, रॉक, कंट्री जैसे वेस्टर्न में भी प्रयोग करते हैं (इस गाने में नहीं अन्यथा)। गाने के बीच में (इंटरटोन में) लडकियों का 'टयऊँ-टयऊँ-टयऊँ' और 'पें पें पें' करना गाने को कुछ चीप बना देता है। पर हाँ गाने को एक फेमिनाइन ऑरा भी देता है। गाने बार बार सुनने के बाद अच्छा लगने लगता है। मुझे गायकी में मधुश्री, चिन्मय, वैशाली, आँचल सेठी के करतब और इनोसेंस भा गयी।
चार अंक।
PS: कुछ पुराने लोग गाना सुनकर गाने में लता मंगेशकर को मिस कर सकते हैं। या महसूस कर सकते हैं।
TBC...
ऐ सखी साजन, ना सखी शादी
ReplyDeleteइरशाद कामिल ने भी आमिर खुसरो के मुकरियों तर्ज़ को इस गाने में इन्सर्ट किया है... सालो बाद ये प्रयोग अच्छा है.
पडी थी मैं अचानक चढ आयो।
जब उतरयो पसीनो आयो।।
सहम गई नहिं सकी पुकार।
ऐ सखि साजन ना सखि बुखार।।
राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा
---- khusro
पिया मिलेंगे: कबीर।
ReplyDeleteऐ सखी, तू मन शुदी : खुसरो।
पर कोई नहीं मुझे लगता है ये भी उनका अपना एक ज्योंरे है।
और पुराने कलाम भी रिवाईव हो रहे हैं।
;-)
'टयऊँ-टयऊँ-टयऊँ' का प्रयोग मुझे भी समझ नहीं आया जबकि अभी कुछ वक़्त पहले ही स्नेहा ने इसे "गैंग्स ऑफ़ वासीपुर" में इस्तेमाल किया था।
ReplyDelete