Monday, June 17, 2013

ऑपरेशन थ्री स्टार


एक बार गधी ने पूछा कि ओ गधे इश्क करता है
मैं जानू पक्का तू मुझको घूरे मुझपे मरता है
तो गधे की तो भई खुली लाॅटरी
बोला मेरी जानम, तू एक हुक्म दे, कदमों में तेरे मर जाऊं हरदम
तो गधी ये बोली, मैं तेरा बायोडाटा लूंगी
मैं  thought करूंगी उस पर तभी लाइन क्लियर मैं दूंगी
तो गधा ये बोला बायोडाटा तो मेरा है ऐसा कि
फट जाए बड़े बड़ों की एटम बम के जैसा
मैं पाया जाता चरता हूं
हां मैदानों के अंदर
और साथ पार्लियामेंट की हर एक सीट के बैठा ऊपर
IAS भी मैं हूं आज का
IPS भी मैं हूं
और
देश चलाते उन मदारियों का
सर्कस भी मैं हूं
मिली जुली सरकार बनाता और गधों को लेकर
फिर झाड़ दुलत्ती झगड़ा करता आप में रो रोकर
तो गधी ने दी एक broad smile 
और बोली यूं बल खाकर,
कि हनीमून मनाएंगे इंडिया गेट पर जाकर
उन मरे जवानों को देंगे सेल्यूट कि जो बस कट गए,
जो आंख मूंद कर 100 करोड़ की आबादी से घट गए

मुल्क की ले ली भईया
बात अलबेली भईया
के देखो Nationality 
चीखती मर गई दैया।

बजते डफली और मंच पर तीस से चालीस कलाकारों द्वारा कोरस में गाए जाने वाले इस गीत को लिखा - पीयूष मिश्रा ने।

इंडिया हैबिटैट सेंटर में दिनांक 15 और 16 जून को डारियो फो द्वारा लिखित प्ले 'The Accidental Death of an Anarchist' का मंचन किया गया। मूल इतावली से अंग्रेजी में अडेप्टेशन के बाद इसका हिन्दी रूपांतरण अमिताभ श्रीवास्तव ने ऑपरेशन थ्री स्टार के शीर्षक से किया है।

कहानी पुलिस कस्टडी में होने वाले मौत को लेकर है कि कैसे निर्दोष लोगों को आतंकवादी बता कर पुलिस कभी इनकाउंटर तो कभी आत्महत्या बता कर मामले को रफा दफा करती है। यही वजह है कि बकौल निर्देशक अरविंद गौर - जब हमने यह नाटक गुज़रात में करने की कोशिश की तो इसे बैन कर दिया गया।




Our task as intellectuals, as persons, who mount the pulpit or the stage, and who, most importantly, address to young people, our task is not just to teach them method….. a technique or a style: we have to show them what is happening around us. They have to be able to tell their own story. A theatre, a literature, an artistic expression that does not speak for its own time has no relevance -----– Dario Fo



इसी आधार पर चलते हुए अस्मिता थियेटर गु्रप सही मायने में सीधे जनता से इटरेक्शन करती वाली गु्रप है। जिनके प्ले के मूल में जनसरोकार, करंट अफेयर्स और जन जागरूकता के मुद्दे होते हैं। नाटक के बीच में यह वैसे संवादों को इंसर्ट करती है जिससे पब्लिक की शार्ट टर्म मेमोरी की जंग छुड़ाती है। कम सुविधा और महज पचास रूपए के टिकट में यह बहुत प्रतिबद्ध नज़र आती है। और यही वजह है कि अरविंद कहते हैं - हमने ऐसे ही बीस साल चला लिए।

पीयूष अस्मिता से चार साल जुड़े रहे हैं। और इस नाटक में सनकी जोकि मुख्य पात्र है उसका किरदार वही करते थे। मूल नाटक में गीत नहीं है लेकिन हिंदीकरण में उत्तेजना और जागरूकता जगाने वाला गीत उनसे लिखवाया गया। नाटक के बीच बीच में पीयूष के गीत का प्रयोग किया गया है।

कल सुबह से हो रही बारिश में सारे कलाकारों के पैर सूजे हुए थे, बावजूद इसके उन्होंने बढि़या प्रदर्शन किया। हां लंबे लंबे, जटिल संवाद के कारण सनकी का फमबल मारना अखरा। तीनों पुलिस ने बहुत अच्छा काम किया। पत्रकार बनी शिल्पी के चेहरे पर थकावट साफ ज़ाहिर थी।

एक प्रयोग के तहत यह दिखाया गया किरदार मूल नाटक से हटकर 16 दिसंबर और भागलपुर पुलिस कस्टडी में मौत के बारे में दर्शकों को याद कराना नहीं भूलते। यह जुझारू छवि को दर्शाता। परिणाम का वर्जन - टू जिस तेज़ी से दिखाया गया वो भी प्रभावित करने वाला रहा।

अभी फाइन साॅल्यूशन, लोगबाग, रामकली और चुकाएंगे नहीं (फिर से) वगैरह बाकी हैं।

No comments:

Post a Comment

जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...