डाकिए की ओर से: गलती हुई यह सोचालय पर पोस्ट हो गई। ग़लती का एहसास घंटे भर बाद हुआ। यह हमारी अनामत कब थी? कविता का ट्रीटमेंट अच्छा लगा था, ज्यादा तामझाम भी नहीं। बीच की धुन एक लय को पकड़ती हुई। शुक्रिया हमारे दफ्तर के स्क्रिट रायटर कपिल शर्मा का जिन्होंने यह उपलब्ध करवाई। कवि वीरेन डंगवाल हैं। प्रतिक्रिया कुछ नहीं कि कोरस में गाना अब अच्छा लगता है। गुलाल का शहर याद आता है। और झूम कर वो सीन याद आता है जब पीयूष मिश्रा हमारे दिल की बात बताते हुए सरफरोशी की तमन्ना को रीडिफाइंड करते हैं तो एक एक्सट्रा मग्न होकर ताली बजाता है। अपने कालखण्ड के दुख की जब लत आम जनता को लग जाए तो जश्न मनाना भी क्या अनुकूलन है !