Monday, September 13, 2010

एक ‘अपराजेय’ गुमनाम लेखक - विलियम अर्नस्ट हेनली!!

240px-William_Ernest_Henley_young उस गुमनाम लेखक की उम्र बारह साल के आस पास रही होगी जब तपेदिक ने उसकी हड्डियों में नींव बनानी शुरु कर दी थी। कुछेक सालों बाद ही जब तपेदिक ने उसके शरीर में धीरे धीरे बढना शुरु किया तब उसे ज़िंदा रखने के लिये उसका बांया पैर उसके घुटने से अलग करना पडा।

उसके बाद भी तकरीबन आठ सालों तक अस्पताल उसका एक दूसरा घर ही बना रहा जिस वजह से वह कभी ठीक से पढाई से भी जुड नहीं पाया। फिर एक दिन वह भी आया जब उसके दूसरे पैर को काटने की नौबत भी आयी। दोनो पैरों के काटने के बाद और तपेदिक के तीन साल तक चले कुछ इलाजों के बाद उस गुमनाम लेखक विलियम अर्नस्ट हेनली ने अपने अगले तीस साल कुछ आराम से व्यतीत किये। उन्ही दिनों, जब एक अस्पताल में उसकी ज़िंदगी पर नश्तर चलाये जा रहे थे,  उसी अस्पताल के बिस्तर पर उसने अपनी ज़िंदगी की सबसे बेहतरीन कविता लिखी जिसका नाम था – ’इनविक्टस

(’इनविक्टस’ एक लैटिन शब्द है जिसका अंग्रेजी में अर्थ है ’इनविन्सिबल’ और  हिंदी में इसके मानी हैं -’अपराजेय’ )

हेनली की मृत्यु (५३ साल की उम्र में, वर्ष १९०३ में,  हेनली ने चुपचाप अपनी गुमनाम ज़िंदगी को हमेशा के लिये  अलविदा कह दिया ) के तकरीबन सौ साल बाद ओखलामा सिटी में एक सरकारी इमारत के सामने एक बम विस्फ़ोट हुआ जिसमें लगभग २०० लोगों की जानें गयी और उस समय तक अमेरिका के इतिहास में वो आतंकवाद की सबसे बडी घटना थी। एक गुमनाम आतंकवादी पकडा गया जिसपर उन २०० जानों के लिये मुकदमा चलाया गया। उस आतंकवादी टिमोथी मेक्वे ने द ऑबजर्वर को भेजे गये एक पत्र में कहा था कि वो सिर्फ़ इस बर्बर सरकार को किये जा रहे गलत कामों के खिलाफ़ चेताना चाहता था।

सुनवाई का दिन आया। टिमोथी ने अपने ऊपर लगे सारे आरोपों को बिना किसी विरोध के स्वीकार कर लिया और आगे कोई भी अपील करने से मना कर दिया। कोर्ट ने ११ जून,२००१ को उसकी मृत्यु का समय निर्धारित कर दिया। अपनी सुनवाई के उन दिनों में टिमोथी कहता हुआ पाया जाता था कि अगर उसे नर्क की प्राप्ति हुयी तो उसके साथ वहाँ वो ढेर सारे पायलेट्स भी होंगे जिन्हे युद्ध जीतने के लिये सैंकडो निर्दोषों की हत्या करनी पडती है।

उसको मृत्यु का इंजेक्शन देने के पहले जब उसकी अंतिम इच्छा पूछी गयी, तब उसने उस गुमनाम लेखक हेनली की इकलौती बेहतरीन कविता ’अपराजेय’  को अपना आखिरी कथन बनाया।

… और इस तरह एक गुमनाम लेखक की एक गुमनाम कविता एक बदनाम व्यक्ति ने इस दुनिया को सुनायी।

 

Invictus!!

Out of the night that covers me,
Black as the pit from pole to pole,
I thank whatever gods may be
For my unconquerable soul.

In the fell clutch of circumstance
I have not winced nor cried aloud.
Under the bludgeoning of chance
My head is bloody, but unbowed.

Beyond this place of wrath and tears
Looms but the Horror of the shade,
And yet the menace of the years
Finds and shall find me unafraid.

It matters not how strait the gate,
How charged with punishments the scroll,
I am the master of my fate:
I am the captain of my soul.

 

 

समाधि सी काली उस रात्रि के पार
जो मुझे एक 
एक क्षितिज से दूसरे क्षितिज तक
ढके रखती है,
मैं सारे ईश्वरों को
अपनी अविजित आत्मा के
लिये धन्यवाद देता हूँ।
 

परिस्थितियों की कसी मुट्ठी में भी
न मैं डरा और न मैंने चीत्कार किया
भाग्य की लाठियों के तले
मेरा ये सर लहुलुहान हुआ पर नहीं झुका।

इन दु:खों और आँसुओ के परे
जहाँ अंधकार का डरावनापन खिलता है
वर्षों की भयानकता भी
मुझे निडर पायेगी और पाती है।

कोई बात नहीं कि वो द्वार कितना संकरा होगा
मुझपर कितने आरोप लगाये गये होंगे,
मैं ही अपने भाग्य का मालिक हूँ
मैं ही अपनी आत्मा का सेनापति हूँ…।

References:

1 – विलियम अर्नस्ट हेनली विकीपीडिया से
2 – टिमोथी मेक्वे विकीपीडिया से
3 – इनविक्ट्स कविता की व्याख्या

*पहली बार किसी अंग्रेजी कविता का हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की है। मेरी त्रुटियों के लिये पहले से ही क्षमा और मेरी त्रुटियां बताने वाले का बहुत बहुत आभार!!

13 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता और बहुत अच्छा अनुवाद.

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  2. एक लेखक अपनी मृत्यु के बाद इतना मशहूर हुआ जितना शायद अपने जीवनकाल में नहीं....

    हमेशा की तरह एक अच्छी प्रस्तुति..

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  3. bahut hi prabhavi prastuti......
    kafi jankari parak post hai
    thanks for giving the links.

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  4. बैरंग पर आकार बहुत अच्छा लगा. आपने अच्छा अनुवाद किया है. बधाई.

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  5. इससे पहले मैंने कभी इस गुमनाम लेखक के बारे में न ही पढ़ा था न सुना था.जानकारी के लिए शुक्रिया...


    Henley writes in the beginning "Out of the night that covers me".जैसे दुख सा चारो तरफ लिपटा हो..इससे भी ज्यादा अन्धेरा लगता है जब वह "Black as the pit pole to pole" की बात करता है.. समाज और पोल जाने क्या कहना चाहता था वो.. कविता एक बार में उनकी ज़िन्दगी का प्रतिनिधित्व करती है..उनके दर्द और पीड़ा को ब्यान करती है...लेकिन टिमोथी को उसमे खुद का अक्स नज़र आया...उसके लिए कविता वास्तव में प्रेरणादायक रही होगी.

    कविता में एक अच्छी बात ये है कि सभी इसमें अपने अर्थ प्राप्त कर सकते है..कविता पहली पंक्ति में जितनी नकारात्मक लगती है उससे कही ज्यादा अंतिम पंक्तिओं में सकारात्मक लगती है...अंधेरों को चीरती कोई रौशनी...
    Henley नराज़ सा दिखता है गुस्सा सा मगर साथ ही साहस से भरा(परिस्थितियों की कसी मुट्ठी में भी
    न मैं डरा और न मैंने चीत्कार किया
    भाग्य की लाठियों के तले
    मेरा ये सर लहुलुहान हुआ पर नहीं झुका। )
    ...शरीर के दुखों कष्टों के बावजूद भी आत्मा अब भी 'अजेय' है..अजर अमर है...(मैं ही अपने भाग्य का मालिक हूँ
    मैं ही अपनी आत्मा का सेनापति हूँ…।)

    ...कविता में एक गहराई तो है ही मगर बेहतरीन अनुवाद के लिए अनुवादक बधाई का पात्र है.....


    A CLASSIC POEM

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  6. बहुत प्रेरक, मैं ही अपनी आत्मा का सेनापति हूँ।

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  7. झूठ नहीं कहूँगा दोस्त.. अंग्रेजी कि कवितायें मेरी समझ के परे है.. मेरे लिए तो तुमने अजूबे का सा काम किया है..

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  8. बढिय़ा बहुत सारी चीजें मन को उद्वेलित कर गयीं, धन्यवाद एक बहुत ही अच्छी कविता का हिन्दी रुपांतर पढ़वाने के लिये...

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  9. पंकज भाई, जहाँ तक मुझे लगता है आपने अच्छा अनुवाद किया है, मतलब सीधे-सीधे समझ में आ रही है, और बहुत स्पष्ट हैं... हैरत है... आपने वाकई बहुत अच्छा काम किया है.

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  10. @सागर भाई:
    शुक्रिया! मैं भी हैरत में हूँ कि आपको पसंद आयी :-)| आपका कहा हर एक शब्द सर-आँखो पर!

    @All:
    Thank you everyone..

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  11. अद्भुत है पंकज भाई, बहुत सटीक, सरल, सारगर्भित और सामयिक। ऐसे ही हेनले के बारे मे आपसे जानने को मिला...और यदि यह आपका प्रथम प्रयास है अनुवाद का तो मै कहूँगा कि पहली गेंद पर छक्का मारने जैसा है...कविता की स्पिरिट को बहुत कुशलता से निथार दिया है हिंदी मे...आशा है कि आगे भी काफ़ी कुछ खूबसूरत और जरूरी पढ़ने को मिलता रहेगा..आपके माध्यम से..
    मेरी नज़र मे बैरंग पर इससे पहले की कुल सभी पोस्ट्स मे सबसे बेहतरीन!!

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  12. अपूर्व से सहमत हूँ..

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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