Friday, September 3, 2010

उजाले उनकी यादों के - 2

मौलाना हसरत मुआनी
{Part-2}

... तो मैं ये कह रहा था कि जब हम गिरफ्तार हो गए, हमारे लीडर लोग- और हमारे स्टूडेंट यूनियन के लोग भी गिरफ्तार हो गए। कांग्रेस के लोग गिरफ्तार हो गए, अब क्या करें। तो मैं पहुंचा मौलाना क्या परेड, एक महल्ला है हमारे कानपुर में। उसे कई गलियां गई हैं। एक गली में गए नीचे, चलते चलते मालूम है एक बहुत छोटा सा मामूली सा घर था। वहां जाके कुण्डी खटखटाई, गर्मी का ज़माना था, कुण्डी खोली गई, अन्दर से आए मौलाना बाहर आए। नंगे बदन, बहुत मैला सा एक पाजामा। और हाथ में पखिया झालते हुए निकले, पसीने में । मतलब ये था कि बिजली घर में नहीं थी। जी फरमाईये, मैंने अर्ज किया मौलाना ऐसा ऐसा है अच्छा ठहरिए, फिर अन्दर गए, कुर्ता पहना जो बहुत ही पुराना किस्म का मैला, सर पर टोपी रखी, वही मशहूर और महरूफ टोपी जिसमें इतना इतना मैल लग गया था और चलिए आईये मेरे साथ चलिए। चले साहब, रास्ते भर समझाते रहे मौलाना साहब, ऐसा है, वैसा है, जी बेहतर है मैं तैयार हूं लेकिन डायरेक्टर मुझे बनाना पड़ेगा, उस जमाने में कांग्रेस का एक कल्चर  निकला था कि जो शख्स इंचार्ज होता था उसे डायरेक्टर कहते थे, फिर वो उसकी बात मानी जाएगी क्योंकि सब जेल चले जाते थे तो एक आदमी कोई इचार्ज होता था फिर वो जेल चला जाता था फिर दूसरा आदमी इंचार्ज हो जाता था। तो इंचार्ज को डायरेक्टर कहते थे। कहने लगे जी बेहतर है लेकिन मुझे डायरेक्टर बनाएंगे तभी मैं काम करूंगा, वरना नहीं। एक तरकारी वाली जमींन पर फेलाए बैठा था तरकारी वाली सब्जी बेच रहा था, उसको इकन्नी दी, इकन्नी में चार पैसे होते थे। एक पैसे का ये दे दीजिए, एक पैसा का वो, एक पैसे का वो, तीन पैसे तो हो गए। चौथे पैसे में धेले कहिए, धेले का वो सब चीजें हुयीं। लीजिए, उसने तराजू में रखा लीजिए, इन्होंने कुर्ते का दामन आगे फैलाया, उसने कुर्ते के इनके दामन में तरकारी डाली, अरे रूंगन तो डाला ही नहीं तुमने, उसने थोड़ा धनिया लेकर और डाल दी। मौलाना उनका नीचे से पेट उनका नज़र आ रहा है वो इकमिनान से, उनको मालूम ही नहीं कोई नयी चीज़ हो रही है। वापस आ रहे हैं घर। 


     बेइन्तहा सादा मिजाज पसन्द इंसान, बेइन्तहा सादगी पसन्द इंसान- इस हद तक कि एक बार लखनऊ के स्टूडेंट यूनियन फेडरेशन वालों ने कहा कि भई हमारे यहं तकरीर करने के लिए procite करने के लिए, inaugurate करने के लिए मौलाना का भेज दो। मौलाना के दरखवास्त की मौलाना कहने लगे कि ठीक है मैं चला जाता हूं मुझे किराया दे दीजिए। एक रूपया दे दीजिए, एक रूपया दे दिया मौलाना को। वापस आए, तो एक आना मुझे वापस कर दिया। मैनें कहा मौलाना ये एक आना काहे का। कहने लगे हिसाब पूरा देख लीजिए जरा। यहां जब मैं घर गया तो स्टेशन तक एक आना। इसलिए इक्के पर आप जाएं तो इधर उधर बैठें तो दो आने पड़ते थे अगर आगे बैठें कोचवान के पास तो एक आना पड़ता था, तो मौलाना हमेशा आगे बैठते थे 13 आने का टिकट कानपुर से लखनऊ का- जी, वहां ख़लीक मिल गए मुझे, ख़लीक उल्ज़ामा जा रहे थे अपनी कार से तो उन्होंने कहा कि मैं आपको drop किए देता हूं। तो उन्होंने मुझे वहां उतार दिया कान्फ्रेंस जहां हो रही थी। कान्फ्रेंस में तकरीर की मैंने आपके एक दोस्त मुनीश सक्सेना साहब थे उन्होंने मुझे साईकिल के करियर पर बैठाया स्टेशन ले आए। वहां टिकट खरीद के मुझे दिया, लखनऊ कानपुर का वापस आ गया- घर पहुंचा एक आना और 15 आने हो गए। ये 16 आने एक आना, आपकी इकन्नी वापस। आदमी बहुत ही वो थे popular थे- आनी साथी की वजह से अपनी determination की वजह से constitution assembly  जो बनी हिन्दुस्तान की आजादी से पहले constitution बनाने के लिए उसके मैम्बर भी हो गए मौलाना select हुए। लेकिन वहां problem पैदा हो गई। इसीलिए कि एक तो ये कि cigar-ate areate  वालों ने उनसे कहा कि मौलाना ये किराया आपका और ये दस्तखत कर दीजिए तो उन्होंने देखा कि फर्स्ट क्लास के आने जाने का किराया रहने का डी.ए., कहने लगे कि मैं तो थर्ड क्लास में चलता हूं आपने फर्स्ट क्लास का किराया क्यों दिया ? दूसरी बात ये कि आपने डी.ए. क्या कर दिया मेरा, मैं तो यहां मिस्जद-ए-अब्दुनबी में ठहरता हूं। मैं कहीं ठहरता ही नहीं हूं, आपने मेरा मेरे नाम डी.ए. कैसे कर दिया ? अरे उन्होंने कहा, मौलाना, कहने लगे हमारे यहां एक उसूल है कि हम फर्स्ट क्लास का किराया देते हैं, मौलाना कहने लगे आपका उसूल गलत है। जिस क्लास में लोग चलते हैं उसी क्लास का किराया देना चाहिए मैं फर्स्ट क्लास क्या कभी सेकेण्ड क्लास में भी नहीं चलता। मैं तो थर्ड क्लास में चलता हूं। और ठहरता हूं मिस्जद में। गरज के झगड़ हुआ, लेकिन मौलाना ने लिया नहीं कहने लगे आप चोरी करना मुझे सिखाते हैं, मैं चोरी नहीं करूंगा। हार के बेचारों ने पता नहीं क्या क्या करके आखिर में थर्ड क्लास का किराया दे के रूख़सत किया। 

Constitution पर मौलाना ने दस्तखत नहीं किए। क्यों, इसलिए कि उसमें मजदूरों और किसानों की Government का कोई वो नहीं था कि हिन्दुस्तान में मजदूरों और किसानों की Government कायम होगी ये उसमें नहीं था तो मैंने उसमें दस्तख़त नहीं कर सकता।


(...ज़ारी)

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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