Saturday, September 24, 2011

फादर फोरगेट्स


डाकिए की ओर से: पिता पुत्र का रिश्ता बड़ा गर्वीला होता है। पुरूषत्व की गंध उसी में से आती है। एक गीत है - प्यार के लिए चार पल कम नहीं थे, कभी हम नहीं थे कभी तुम नहीं थे। उपस्थित रहिए। हमेशा। क्योंकि मैं नहीं रहता, और जब जो नहीं रहता वो रहने का महत्व जानता है बस। ज़मीन की अहमियत और अर्थ फलस्तीन सऔर शरणार्थीयों से पूछिए। रोटी का मतलब भूखों से। और बेछत वालों से पूछिए छत का मतलब? यकीनन उसका जवाब ज्यादा मौलिक, सच और अनुभूतियों में डूबा मिलेगा।

*****

फादर फोरगेट्स उन छोटे लेखों में से एक है -- जो गहन अनुभूति के किसी क्षण में लिखे जाते हैं -- जो पाठकों के दिल को छू जाते हैं। यह लेख लगातार पुनर्प्रकाशित हो रहा है। यह लेख हज़ारों पत्रिकाओं और अखबारों में छप चुका है। इसे कई विदेशी भाषाओं में भी उतनी ही लोकप्रियता मिली है और उनमें भी यह लेख बहुत ज्यादा बार छपा है। हैरानी की बात है कि काॅलेज की पत्रिकाओं और हाई स्कूल की पत्रिकाओं में भी यह लेख छपा। कई बार एक छोटा सा लेख रहस्यमयी कारणों से क्लिक हो जाता है।

फादर फोरगेट्स

सुनो बेटे ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। तुम गहरी नींद में सो रहे हो। तुम्हारा नन्हा सा हाथ तुम्हारे नाजुक गाल के नीचे दबा है। और तुम्हारे पसीना-पसीना ललाट पर घुंघराले बाल बिखरे हुए हैं। मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूं, अकेला। अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लायब्रेरी में अखबार पढ़ रहा था, तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ। इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूं, किसी अपराधी की तरह।

जिन बातों के बारे में मैं सोच रहा था, वह ये हैं बेटे। मैं आज तुम पर बहुत नाराज़ हुआ। जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तब मैंने तुम्हें खूब डांटा... तुमने टाॅवेल के बज़ाय पर्दे से हाथ पोंछ लिए थे। तुम्हारे जूते गंदे थे, इस बात पर भी मैंने तुम्हें कोसा। तुमने फर्श पर इधर उधर चीजें फेंक रखी थी... इस पर मैंने तुम्हें भला बुरा कहा। 

नाश्ता करते वकत भी मैं तुम्हारी एक के बाद एक गलतियां निकालता रहा। तुमने डाइनिंग टेबल पर खाना बिखरा दिया था। खाते समय तुम्हारे मुंह से चपड़-चपड़ की आवाज़ आ रही थी। मेज़ पर तुमने कोहनियां भी टिका रखी थीं। तुमने ब्रेड पर बहुत सारा मख्खन भी चुपड़ लिया था। यही नहीं जब मैं आॅफिस जा रहा था और तुम खेलने जा रहे थे और तुमने मुड़कर हाथ हिलाकर बाय बाय, डैडी कहा था, तब भी मैंने भृकुटी तानकर टोका था, अपनी काॅलर ठीक करो।

शाम को भी मैंने यही सब किया। आॅफिस से लौटकर मैंने देखा कि तुम दोस्तों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे। तुम्हारे कपड़े गंदे थे, तुम्हारे मोजों में छेद हो गए थे। मैं तुम्हें पकड़कर ले गया और तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हें अपमानित किया । मोज़े महंगे हैं जब तुम्हें खरीदने पड़ेगे तब तुम्हें इनकी कीमत समझ में आएगी। ज़रा सोचो तो सही, एक पिता अपने बेटे का इससे ज्यादा दिल किस तरह दुखा सकता है ?

क्या तुम्हें याद है जब मैं लाइबे्ररी में पढ़ रहा था तब तुम रात को मेरे कमरे में आए थे, किसी सहमें हुए मृगछौने की तरह। तुम्हारी आंखें बता रही थीं कि तुम्हें कितनी चोट पहुंची है। और मैंने अखबार के ऊपर से देखते हुए पढ़ने में बाधा डालने के लिए तुम्हें झिड़क दिया था कभी तो चैन से रहने दिया करो। अब क्या बात है ? और तुम दरवाज़े पर ही ठिठक गए थे। 

तुमने कुछ नहीं कहा। तुम बस भागकर आए, मेरे गले में बांहें डालकर मुझे चूमा और गुडनाइट करके चले गए। तुम्हारी नन्ही बांहों की जकड़न बता रही थी कि तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया था जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया। और फिर तुम सीढि़यों पर खट खट करके चढ़ गए। 

तो बेटे, इस घटना के कुछ ही देर बाद मेरे हाथों से अखबार छूट गया और मुझे बहुत ग्लानि हुई। यह क्या होता जा रहा है मुझे ? गलतियां ढूंढ़ने की, डांटने-डपटने की आदत सी पड़ती जा रही है मुझे। अपने बच्चे के बचपने का मैं यह पुरस्कार दे रहा हूं। ऐसा नहीं है बेटे, कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता, पर मैं एक बच्चे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा बैठा था। मैं तुम्हारे व्यवहार को अपनी उम्र के तराजू पर तौल रहा था। 

तुम इतने प्यारे हो, इतने अच्छे और सच्चे। तुम्हारा नन्हा सा दिल इतना बड़ा है जैसे चैड़ी पहाडि़यों के पीछे से उगती सुबह। तुम्हारा बड़प्पन इसी बात से साबित होता है कि दिन भर डांटते रहने वाले पापा को भी तुम रात को गुडनाइट किस देने आए। आज की रात और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, बेटे। मैं अंधेरे में तुम्हारे सिरहाने आया हूं और मैं यहां घुटने टिकाए बैठा हूं, शर्मिंदा। 

यह एक कमज़ोर पश्चाताप हैं। मैं जानता हूं कि अगर मैं तुम्हें जगाकर यह सब कहूंगा, तो शायद तुम नहीं समझोगे। पर कल से मैं सचमुच तुम्हारा प्यारा पापा बनकर दिखाऊंगा। मैं तुम्हारे साथ खेलूंगा, तुम्हारी मज़ेदार बातें मन लगाकर सुनूंगा, तुम्हारे साथ खुलकर हंसूंगा और तुम्हारी तकलीफों को बाॅंटूंगा। आगे से जब भी मैं तुम्हें डांटने के लिए मुंह खोलूंगा, तो इसके पहले अपनी जीभ को अपने दांतों में दबा लूंगा। मैं बार बार किसी मंत्र की तरह यह कहना सीखूंगा , वह तो अभी छोटा बच्चा है.... छोटा बच्चा।

मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें बच्चा नहीं, बड़ा मान लिया था। परंतु आज जब मैं तुम्हें गुड़ी-मुड़ी और थका-थका पलंग पर सोया देख रहा हूं, बेटे, तो मुझे एहसास होता है कि तुम अभी बच्चे ही तो हो। कल तक तुम अपनी मां की बांहों में थे, उसके कांधे पर सिर रखे। मैंने तुमसे कितनी ज्यादा उम्मीदें की थीं, कितनी ज्यादा!

----- डब्ल्यू. लिविंग्स्टन लारनेड

साभार: लोक व्यवहार, डेल कारनेगी


डाकिए की ओर से: नज़र के तीर बड़े चुभते हैं। आप आगे बढ़ जाते हैं और वो कातरता पीठ पर खंज़र मानिंद गड़ी हुई मालूम होती है। कुछ ऐसा ही होता हुआ यहां

6 comments:

  1. सचमुच बहुत गहन अनूभूति के क्षणों में ही लिखी जाती हैं ऐसे लेख। बहुत बहुत आभार इसे पढ़वाने हेतु।

    ReplyDelete
  2. हाँ शायद हम सभी इस पश्चाताप मे जलते है कि हमने किसी अपने का दिल क्यो दुखाया। पढवाने के लिये आभार्।

    ReplyDelete
  3. बच्चों की मासूमियत हम बड़े अपनी गलती से ही शायद खो रहे है ...जब वो छोटे होते है तब हम उनके बड़े होने की प्रार्थना करते है जब वो बड़े होते है तो उनमें बचपन की मासूमियत खोजते है

    ReplyDelete
  4. While a man was polishing his new car, his 4 yr old son picked stone & scratched lines on the side of the car. In anger, the man took the child's hand & hit it many times, not realizing he was using an iron wrench.At the hospital, the child lost all his fingers due to multiple fractures. When the child saw his father.... with painful eyes he asked 'Dad when will my fingers grow back?' Man was so hurt and speechless. He went back to car and kicked it a lot of times.Devastated by his own actions...... sitting in front of that car he looked at the scratches, child had written 'LOVE YOU DAD"

    (PS: I receiveed this mail long time back sharing it here consedring that not all non-literature stuff is bad.)

    ReplyDelete
  5. meri sabse badi samasya ye hai ki bhavuk nahi hu atibhavuk hu.samajh nahi aata aapko dhanyawad du ki aapne itni acchi post padhwai ya aap par naraj ho jau ki asi post padhwakar aapne mujhe rone par majboor kar diya.aur baki kasar darpan ji ne poori kar di apna comment daalkar...m going to call my papa just want to say i love you papa

    ReplyDelete

जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...