सीन - 1
बाहर/गैराज के सामने/दिन
काका के बेटे उससे मसला सुझलाने आते हैं। गाड़ी में आते हैं। तकरार बढ़ती है और बेटे को निराश होकर लौटना पड़ता है लेकिन गाड़ी स्टार्ट नहीं होती तो काका उसे ठीक करते है। गाड़ी एक झटके से स्टार्ट होती है, स्केलेटर दबता है और आगे बढ़ती है। शीशे के सामने काका का हाथ आता है - फिफ्टी रूपीज़ प्लीज़।
------- (अवतार)
सीन - 2
अंदर/ अमिताभ का कमरा/दिन
काका अमिताभ के कहते हैं - मैं तो तुम्हारी भलाई करने आया था रे। इनको आपस में लड़वाने और तेरे कारखाने का फायदा कराने। मगर इन मज़लूमों के झोपड़े देखो। कई कई शाम खाना नहीं पकता। उनके साथ रहते रहते मुझे उनसे प्यार हो गया है। पता नहीं चला मैं कब उनका हो गया, वो कब मेरे हो गए।
------- (नमकहराम)
सीन - 3
अंदर/ क्लिनीक/ दिन
काका: मैं तो तुझे मेरी उमर लग जाए का आर्शीवाद भी नहीं दे सकता बहन। ------- (आनंद)
सीन - 4
कुछ फौजी लड़ाई पर जा रहे हैं। फटे पुराने कपड़ों में ह्वील चेयर लुढ़कता काका आते हैं। पृष्ठभूमि में गीत बजता है - देखो वीर जवानों अपने खून पे ये इल्ज़ाम न आए, मां न कहे कि वक्त पड़ा तो देश के बेटा काम न आए। (फिल्म - याद नहीं)
इसी तरह सीन 5, 6, 7, 8, 9 और 10।
सभी सीन तेज़ी से एक दूसरे में मर्ज होते हैं।
शोर्ट डिजोल्व होता है। एक तस्वीर उभरती है।
नीचे ग्राफिक उभरता है - राजेश खन्ना
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कैसे कहूं तुम मेरे भीतर कैसे और कितने रूपों में जिंदा हो। ऐसा ही कि ऊपर के सारे सीन स्मृति के आधार पर लिखी है। गलतियां होंगी उनके ब्यौरे में मगर उनमें तुम साबुत बचे हो।
तब हमारे घर में टी वी नहीं था। विविध भारती पर किसी न किसी रूप में तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती। कुछ था उन संवाद अदायगी में जो मुझमें कनेक्ट हो गया। तुम्हारा बाबू मोशाय बोलना ऐसा था कि मुझे ही बुला रहे हो अमिताभ तो किरदार का बहाना था। चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए गाना आता तो मैं कल्पना करता हीरो के चहरे पर क्या भाव आते होंगे !
क्या सुनते थे कहानियां कि तुम्हारी उजली फियेट पर लड़कियों के लिपस्टिक के निशान भरे रहते थे। वो क्या था कि तुम्हारी आवाज़ और उदासी दिल को इतनी छूती थी ? कि तुम अभिनय करके निकल लेते थे और हम आज तक रोना पसंद करते हैं। बड़ा हुआ तो जाना दरअसल तुममें कोई एक्स फैक्टर नहीं था। न तो तुम नाचना जानते थे न ही कोई और गुण। मगर फिर क्या ? सिर्फ सादादिली से आंखों और चेहरे से अभिनय करना ? फिर क्यों छोटे बालों में तुम्हारी आखों की पलकें देख लगता था कि तुम्हें भगवान ने नहीं बल्कि लड़कियों ने ही अपने हाथों से पैदा किया है। हल्की चांदनी रातों में, देर शाम के झुटपुटे में, खिड़की से आती ताज़ी हवा में, खुले बालों में, ढ़ीले कपड़े पहन, रूमानी ख्याल में गुम, प्यार से अपने गोद में किसी बेजान दिल पर पेंसिल से एक तिलनुमा निशान उकेरा होगा जिससे तुम पैदा हुए- दिल के राजकुमार।
तुम्हारे बारे में एक बार पढ़ा था कि तुमने एक बार समंदर किनारे मगरूर होकर लड़कियां छेड़ी थीं। पता चला कि तुम भी आदमी ही थे मेरी तरह। खूब शराब पीने वाले। तुम्हारे जाने के साथ साथ अपनी भी ईच्छा लिख रहा हूं कि मैं भी अपनी कमज़ोरियों के साथ याद किया जाना चाहूंगा।
निंश्चित रहना कि कल जो गुमनाम है उसमें भी बचा रखूंगा तुम्हारे लिए प्यार।
दर्द और नशे का एक आनंदमयी अवतार मेरे अमर प्रेम।
तू अभी बचा है मुझमें ..मैं होकर..और रहेगा मेरे रहने तक..
ReplyDeleteवो शानदार थे !!! आनंद मेरी सबसे पसंदीदा सिनेमा है !!!! आनंद मर ही नहीं सकता !!!!
ReplyDeleteकविता तू एक मौत है...
ReplyDeleteमेरा वादा है मैं बार बार लिखूँगा तुझे ।
साग़र तुम्हारी बात याद आती है,"हमारी बुद्धिजीविता हमें मरने नहीं देगी ।" पर अच्छी बात ये है कि फ़िर भी हम भी अमर नहीं । एस. के. बटालवी का इंटरव्यू पैरलल मांईड में चल रहा है ।
ट्विंकल माँ बनने वाली है । पुनर्जन्म पे विश्वास करने का मन हो आता है ।
ReplyDeleteओशो कहता है आप कभी नहीं मरते हमेशा कोई और मरता है ।
गोविंदा बैकग्राऊँड में करिश्मा के लिए गा रहा है...
...जो तू होती 'डिंपल कपाड़िया' हम भी तो 'काका' होते गोरी तेरे नैनों में हम बस जाते...
...सातों जन्म तुझको पाते गोरी तेरे नैनों में हम बस जाते ।
'डिंपल कपाड़िया'
इंटलैक्चुअल आदमी मरने के कारण और जीने के एक्सक्यूजेज़ एक साथ ढूँढता है ।:-)
सोचने पर मजबूर करने वाला लेख लिखा आपने। धन्यवाद !
ReplyDeleteकाका के जाने के बाद जैसे एक खालीपन सा लग रहा है। जिसे शब्दों में बयां करना बहुत ही मुश्किल है।