Monday, June 10, 2013

नज़र लाये ना (राँझना म्युज़िक रिव्यू - 6)

मैंने हारा मैं, तेरा सारा मैं,
मीठा मीठा तू, ख़ारा ख़ारा मैं
तेरा सारा मैं, सारा मैं।


नज़र लाये एल्बम का सबसे मेलोडियस गाना है। ऐसा लगता है कि महेश भट्ट या करण जौहर की किसी मूवी से सीधे उठा लिया गया हो। नज़र लाये न मतलब कोई नज़र न लगाये। यदा इसी गीत की एक लाइन :

नज़र लाये जो तुमको जल जाए वो।

आजकल सूफ़ी गाने कहकर जैसे गाने प्रमोट किये जाते हैं और हिट भी होते हैं ये उसी विधा का गाना है।
या फिर उस विधा का जो पाकिस्तानी गायकों से कथित तौर पर विशेष तौर पर गवाये जाते हैं।
इसे सामयिक समय का टिपिकल रोमांटिक बॉलीवुड सॉंग भी कहा जा सकता है। जिसे हिरोइन टेडी बियर के साथ डांस करते हुए और हीरो कोई काम करते करते भूलते हुए गाता है। या फिर दोनों किसी आउटर लोकेशन में स्लो मोशन में डांस करते हुए।
मूवी रिलीज़ होने के एक डेढ़ हफ्ते बाद इसे प्रमोट किया जाना चाहिए। रनिंग सक्सेसफूली स्लोगन के साथ। अच्छा लगेगा।
एफ. एम. और म्युज़िक चैनल का लम्बे समय तक प्रिय रहने वाला है ये गाना।
इस तरह के गानों को ताज़गी भरा गाना इसलिए नहीं कहते क्यूंकि ये क्रिएटिवली फर्स्ट अटेम्प होते हैं, बल्कि इसलिए क्यूंकि इन गानों को सुनकर एक विशेष उम्र के लोगों को एक विशेष तरह की ताज़गी का आभास होता है।
उम्र के लिहाज़ से अच्छे/हिट गाने तीन तरह के होते हैं। पहले इंस्टेंट हिट लेकिन...
...कमिंग सून गोइंग सूनर। (राँझना के नायक धनुष से बेहतर इस बात को कौन जानता होगा। जिनका कोलावरी डी इसी ज्योंरे का गीत था।)
दूसरे बड़े ज़िद्दी । बड़ी मुश्किल से हिट होते हैं पर जब होते हैं तो ऑल टाइम फ़ेवरेट बन जाते हैं। इन्हें ही मैं धीमा अमृत कहता हूँ। जैसे दिल से के गीत। तीसरे इन दोनों के बीच के कुछ। धीरे धीरे चढ़ते हैं। और धीरे धीरे धीरे उतरते हैं। इनके प्रसिद्धि के ग्राफ में कहीं शार्प एज़ नहीं होते कर्व होते हैं। नज़र लाये न तीसरी तरह का गाना है। जैसे अभी रिसेंटली 'सुन रहा है न तू' या 'इश्क वाला लव'।
इरशाद ने इस तरह के कई गाने लिखे हैं लव आजकल, मेरे ब्रदर की दुल्हन और कॉकटेल सरीखी एल्बम में।
इस दोगाने को राशिद और नीति दोनों ने ठीक उसी तरह गाया है जैसे गाया जाना चाहिए। लड़की को ज़्यादा अच्छे बोल मिले हैं पर सुनने में लड़के के बोल ज़्यादा स्नुथिंग लगते हैं।
गाने को साढ़े चार अंक। गाना भी जो प्रोमिस करता है वो डिलीवर करता है। न कम न ज़्यादा।

"काजल-टीका पीछे कानों के, नजरों को रोके रे।
दुनियां देती लाखों ही धोखे मीठी सी होके रे।"


PS: ध्यान से सुनने पर गाने के शुरुआत में बैकग्राउंड की एक टोन/आवाज़ काफ़ी इरिटेट करती है। लगता है कि आपके प्लेयर या रिकोर्डिंग में कोई ग्लीच है। ये आवाज़ ऐसी है जैसे झूले से उतरने के बाद उसकी चीं चीं करती आवाज़ या चड़ाई में साइकिल चलाते वक्त पेडल की आवाज़। मुझे इस आवाज़ की प्रासंगिकता समझ नहीं आई।

PPS: नज़र और बद्दुआ दोनों अस्तित्वहीन होती हैं। अच्छे लोग लगाते/देते नहीं, बुरों की लगती नहीं।
TBC....

3 comments:

  1. "नज़र और बद्दुआ दोनों अस्तित्वहीन होती हैं। अच्छे लोग लगाते नहीं, बुरों की लगती नहीं।"

    haay... jaanleva...

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  2. वाह! बढ़िया रिव्यु

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  3. पूरी तरह सहमत सिर्फ इस वाक्य से असहमत " ऐसा लगता है कि महेश भट्ट या करण जौहर की किसी मूवी से सीधे उठा लिया गया हो।"

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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