डाकिये कि ओर से: ये अजीब है कि हर युग में प्रतिभाशाली को कष्ट उठाने पड़े हैं. मातृभूमि भी कई बार छोडनी पड़ी है. इस दर्द के साथ सर्वोत्कृष्ट काम करना और फिर भी गरीबी रहना एक और भी अजीब स्थिति है.
आंद्रेई तारकोवस्की को सिनेमा का मास्टर माना जाता है. सोलारिस, आंद्रेई रुब्ल्योब, मिरर, स्टाकर, नास्टेल्जिया और द सेक्रिफाइस बनाने वाले इस महान रूसी फिल्कार को सिनेमा की नई दृश्य-भाषा देने के लिए डाकिए का सलाम।
यहां पेश है 1970 से 1986 तक की उनकी डायरी के महत्वपूर्ण अंश जो मैं यहां एडिट कर दे रहा हूं।
विभिन्न कडि़यों के तहत लंबी चलेगी और आशा है आप सब जुड़े रहेंगे।
1970
27 अगस्त
ओवचिन्निकोव द्वारा रचित जापान के शानदार शब्दचित्रों को नोवी मीर में पढ़ रहा हूं। विलक्षण! सूक्ष्म और प्रखर। मैं कितना भाग्यवान कि ओसाका जाने से पूर्व उन्हें पढ़ पाया।
14 सितंबर
दाॅस्तोएवस्की दो मोमबत्तियों की रोशनी में पढ़ते थे। उन्हें लैंप पसंद नहीं थे। काम के दौरान बेहद धूम्रपान करते। यदा कदा खूब कड़क चाय पीते। स्ताराया रूस्स्या से आरंभ हुआ उनका जीवन शुरू से ही ऊब और नीरसता से भरा था। उनका प्रिय रंग - - सागर की लहरों का था, अपनी नायिकाओं को उन्होंने प्रायः उसी रंग में सजाया है।
9 जून
किसी भी किस्म की प्रशंसा का एक लक्षण यह कि अंततः वह ग्लानि में, हताशा में, यहां तक कि किसी-न-किसी हैंग ओवर में, बल्कि अपराध - भावना में जा डुबाती है।
मैंने कहा है कि मेरा काम है कि सोवियत सिनेमा के उच्च स्तर को कायम रखूं, न कि सामयिक अथवा प्रासंगिक के पीछे भागूं।
1973
27 जनवरी
जिंदगी कितनी उदास है! मुझे उस शख्स़ होता है जो अपना काम राज्य से इज़ाज़त लिए बगैर कर सकते हैं। यों तो हर कोई, प्रायः हर जगह, आज़ादी से काम कर सकता है, केवल रंगमंच और सिनेमा को छोड़कर (मैं टेलीविज़न को शामिल नहीं कर रहा, क्योंकि मैं उसे कला नहीं मानता)। बेशक उन्हें पगार नहीं मिलती, लेकिन अपना काम तो कर सकते हैं।
सत्ताधारी कितने स्थूलबुद्धि हैं! क्या उन्हें साहित्य, कला, संगीत, चित्रकला, सिनेमा की सचमुच जरूरत महसूस होती है ? बेशक कतई नहीं। उलटे, उनके बगैर जीवन कितना आसान होगा ! (ऐसा वे सोचते होंगे)
मैं काम करना चाहता हूं, बस। और कुछ नहीं। काम ! यह बेशक बेतुका उन्माद और अपराध है, कि इतालवी समीक्षकों, समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने जिस निर्देशक को प्रतिभावान कहा उसे यहां बेरोज़गार रहने पर मज़बूर किया जा रहा है।
दरअसल, मेरे ख्याल से जैसे तैसे उच्च पदों पर जा पहुंचे औसत लोगों ही की ये करतूतें मेरे खिलाफ हो सकती हैं। बेशक, औसत दर्जे के लोग कलाकारों को झेल नहीं पाते, और अधिकारीगण तो निर्विवाद रूप से घटिया स्तर ही के हैं।
सबसे सुंदर पेड़ कौन सा है ? चिरबेल का। उसे ही पूरा विकसित होने में खूब लंबा समय लगता है। कौन जल्दी बढ़ता है ? - - बांस या पहाड़ी पीपल ? पहाड़ी पीपल बहुत सुंदर पेड़ है।
ज़रा सा और जानिये - यहाँ.
पुस्तक : अनंत में फैलते बिम्ब : तारकोवोस्की का सिनेमा
साभार : संवाद प्रकाशन, हिंदी अनुवाद.
जानकारी के लिए डाकिये का सद्-शुक्रिया. डायरी का अंश पढ़ना हमेशा एक अजीब अनुभूति होता है...इस बात का प्रमाण कि ऐसे लोग भीतरी परतों में कैसे रहे थे.
ReplyDeleteपंक्तियों के बीच दो लाइन का स्पेस अधिक लग रहा है. उसे कम कर दिया जाए तो पढ़ने में सहूलियत रहेगी.