डाकिये की ओर से :प्रस्तुत उद्धरण खलील जिब्रान की क्लासिक 'सेंड एंड फोम' के अपरिपक्व हिंदी अनुवाद है:
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तुम अंधे हो, मैं बहरा और गूंगा.
तो चलो, हाथों को छूकर समझें.
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आपकी प्रासंगिकता इस बात से नहीं है कि आप क्या पाते हैं, अपितु इससे है कि आप क्या पाना चाहते हैं.
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तुम मुझे कान दो, मैं तुम्हें आवाज़ दूँगा.
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मेरा कहा, आधे से ज्यादा तो अर्थहीन ही होता है. लेकिन मैं फिर भी वो अर्थहीन कहता हूँ, जिससे कि बाकी का महत्वपूर्ण भी आप तक पहुंचे.
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‘सत्य’ जानने योग्य तो सदैव ही है, किन्तु आवश्यक्तानुसार ही कहे जाने योग्य है.
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मेरी आत्मा की आवाज़ आपके आत्मा के कानों तक कभी नहीं पहुंच सकती, लेकिन फिर भी चलो बातें करें, कि हम तन्हा न महसूस करें.
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जब दो स्त्रियाँ बात करती हैं, वो कुछ नहीं कहतीं.
जब एक स्त्री बोलती है, वो अपना सम्पूर्ण जीवन वर्णित कर चुकती है.
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केवल मूर्ख ही वाचाल से ईर्ष्या रखता है.
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आप ‘वास्तव’ में अपनी आँखें खोल के तो देखो, हर दृश्य में स्वयं को दृश्यमान पाओगे.
और हर आवाज़ में अपनी ही अंतर्ध्वनि सुनोगे, जो अपने कान ‘वास्तव’ में खुले रख के सुनोगे.
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तब जबकि शब्दों की लहरें हमेशा से ही हमारे ऊपर हैं, तो भी हमारे अंतस की गहराई सदा शांत है.
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सत्य की खोज दो के बिना संभव नहीं; एक, जो कहे; दूसरा, जो समझे.
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आओ चलो आइस-पाइस खेलें...
जो तुम मेरे दिल में छुपो तो तुम्हें ढूँढना मुश्किल कहाँ?
जो तुम अपने ही बनाये आवरण में छुप जाओ तो, क्षमा करना किन्तु, कोई
तुम्हें ढूँढना ही क्यूँ चाहेगा?
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जो एक स्त्री को समझ सके, वो जो बुद्धिजीवियों की आलोचना कर सके या सुलझा सके मौन के रहस्य की गुत्थी,
वो,वही इंसान है जो सुबह एक सुन्दर स्वप्न देख के जागे नाश्ते की मेज में बैठने के लिए.
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हमारे विचार किसी विशेष मत,व्यक्ति अथवा संस्था के प्रति झुके हुए और आरक्षित नहीं होने चाहिए. एक छिपकली की पूँछ और एक कवी की कृति, दोनों ही इसी एक जहान के प्रताप की देन हैं.
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उनकी प्रेरणा और कुछ नहीं, दरअसल, हमारे ह्रदय में अपनी कलम डुबाना ही थी.
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कविता कोई विचार नहीं, वो तो एक गीत है जो रिसते घावों से बह निकला, या एक हँसते चेहरे से.
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कविता ‘खुशी’ और ‘दर्द’ का कारोबार है, चुटकी भर शब्दकोष के साथ.
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मैंने एक लेखक मित्र से कहा, ”आपका महत्त्व आपकी मृत्यु तक नहीं पता लगना.”
लेखक बोले,”हाँ मृत्यु सदा से ही राज़ खोलती आई है. और अगर ऐसा हुआ कि आप
को मेरा महत्त्व मेरी मृत्यु के बाद लगा, तो संभवतः मेरे ह्रदय में उससे
कहीं अधिक था, जितना कि मेरी जुबां पर रहा. और मेरी इच्छाओं में उससे
कहीं अधिक था जितना कि मेरे हाथों में.”
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यदि आप, सहरा के एकांत में भी सौंदर्य-गीत गातें हैं तो आपको श्रोता मिल ही जायेगा.
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प्रेरणा हमेशा गायेगी, प्रेरणा व्याख्या नहीं करती.
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आपकी सोच ही आपकी कविता का ‘गतिरोधक’ है.
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एक महान गायक वो है जो हमारा मौन गुनगुना सके.
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आप गीत कैसे गा कैसे सकते हैं, जबकि आपके मुंह में तो गुड़ भरा है.
आप आशीर्वाद के लिए हाथ कैसे उठायेंगे अगर आपकी मुट्ठी में हीरे-जवाहरात हैं?
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हम सौंदर्य की खोज के वास्ते ही जीते हैं. बाकी सब इंतज़ार के ही रूप हैं.
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कई सारी स्त्रियाँ पुरुष का ह्रदय ‘उधार’ लेती हैं, किन्तु कुछ ही ‘अधिकार’ लेती हैं.
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यदि आप ‘इसका’ अधिकार रखते हैं तो दावा क्या करना ?
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जब पुरुष और स्त्री एक दूसरे का हाथ छूते हैं तो वे दोनों ही शाश्वतता का हृदय छूते हैं
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हर पुरुष दो स्त्रियों से प्रेम करता है, एक; जो उसकी कल्पनाओं की कृति है, दूसरी; अभी तक नहीं जन्मी.
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कितनी बार मैंने उन गलतियों का दोष भी अपने सर मढ़ा है जो कि मैंने की ही नहीं,लेकिन जिससे की अगला व्यक्ति मेरी उपस्थिति में, आरामदेह महसूस करे.
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यदि प्रेम चिर-नूतन नहीं तो आदत बन जाता है और अंततः गुलामी.
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प्रेम वो है जो दो के बीच है, न कि एक-दूसरे से.
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प्रेम प्रकाश का वो शब्द है, जो किरण के पन्नों में रोशनी के हाथों से लिखा हुआ है.
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दोस्ती एक मीठा उत्तरदायित्व है न कि अवसर.
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मेरा घर मुझसे कहता है,”मत जाओ, कि यहीं तो तुम्हारा सुनहरा अतीत है.”
और सड़क कहती है,”आ जाओ, कि मैं ही तुम्हारा भविष्य हूँ.”
और मैं, दोनों से ही कहता हूँ,”न तो मेरा कोई माज़ी है, न ही मेरा भविष्य."
यदि मैं यहाँ रुकूं, मेरे रुकने में ही मेरी गति है और यदि मैं वहाँ जाऊं, मेरे चलना ही मेरी जड़ता. केवल प्रेम और मृत्यु ही बदलाव लाते हैं.”
आश्चर्यजनक है कि खुशी की आकांशा ही मेरे दुखों का मूल है.
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यदि आप मित्र को सभी परिस्थितियों में नहीं समझ पाते तो आप कभी उसे नहीं समझ पायेंगे.
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तुम्हारा दिमाग और मेरा ह्रदय तब तक सहमत नहीं होंगे, जब तक कि तुम्हारा दिमाग ‘सांख्यिकी’ में और मेरा ह्रदय ‘धुंध’ में रहना न छोड़ दें.
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हम एक दूसरे को नहीं समझ पाएंगे जब तक कि हम भाषा को सात शब्दों तक सीमित न करे दें.
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जब आप सूरज से मुंह फेर लेते हैं, आप अपनी ही छाया देखते है.
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मेरे ह्रदय का बाँध कैसे खुलेगा, जब तक टूटेगा नहीं ?
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भेडिये ने भेड़ से अनुग्रहपूर्वक कहा,”क्या आप हमारे मेहमान बनकर हमें अनुग्रहित नहीं करना चाहेंगे ?”
भेड़ ने उत्तर दिया,”हम ज़रूर आपके घर आते यदि वो आपका पेट नहीं होता.”
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मैंने देहरी में ही मेहमान को रोककर कहा, ”नहीं जनाब ! मेहरबानी करके आते वक्त अपने पाँव मत धोइए, जब जाइयेगा तब ज़रूर धोइयेगा.”
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आप वाकई बहुत बड़े दानी हैं यदि देते वक्त आप अपना मुंह दूर फेर लेते हैं,जिससे की ग्रहण करने वाले को लज्जा का अनुभव न हो, और हो भी तो आप कम से कम उसे न देख पाएं.
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दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति और सबसे निर्धन के बीच में एक दिन की भूख और एक घंटे की प्यास भर का अंतर है.
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हम हमेशा आने वाले कल से उधार लेकर बीते हुए कल का उधार चुकाते हैं.
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मुझे भी देव और दानव मिलने आते हैं, पर मैं बड़ी आसानी से उनसे छुटकारा पा जाता हूँ.
जब देव आते हैं, मैं एक पुरानी प्रार्थना करने लगता हूँ.
और जब दानव आता है मैं एक पुराना अपराध कर देता हूँ. दोनों ही मुझे छोड़ के चल देते हैं.
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आप वास्तव में एक क्षमा देने वाला कहलाते हैं, यदि, आप क्षमा कर दें उस कातिल को जिसने खून की एक भी बूँद भी नहीं गिराई, आप क्षमा कर दें उस चोर को जिसने कभी चुराया नहीं और क्षमा कर दें उस झूठे को जिसने झूठ नहीं बोला.
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यदि आपका ह्रदय ज्वालामुखी है तो आप कैसे अपेक्षा रखते हैं कि आपके हाथों में एक फूल खिला रहेगा.
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जो आपकी कमीज़ से अपने गंदे हाथ पोछे तो उसे अपनी कमीज़ ले जाने दो,क्यूंकि उसे इसकी दोबारा आवश्यकता हो सकती है, आपको निश्चित ही नहीं.
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जो मुझसे कमतर हैं वही मुझसे घृणा एवं ईर्ष्या करते,
मुझसे कोई भी नफरत अथवा घृणा नहीं करता, मैं किसी से भी बढ़कर नहीं.
जो मुझसे बढ़कर हैं वही मेरा उत्साहवर्धन करते,
मेरा कभी भी उत्साहवर्धन नहीं हुआ, मैं किसी से भी कमतर नहीं.
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हम सभी कैद में हैं, लेकिन हम में से कुछ एक की कोठरियों में खिड़कियाँ हैं.
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यदि कभी हम एक दूसरे के सामने अपने अपराधों को स्वीकार करने लगे, तो हम
एक दूसरे के ऊपर हसेंगे,
कारण : मौलिकता का अभाव.
यदि कभी हम एक दूसरे के सामने अपने गुणों की बातें करने लगे, तो भी हम
एक दूसरे के ऊपर हसेंगे,
कारण : मौलिकता का अभाव.
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‘सरकार’ आपके और मेरे बीच एक संधि है. आप और मैं ज्यादातर गलत होते हैं.
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दूसरे की गलतियों को उकेरना क्या उससे भी ज्यादा बड़ी गलती नहीं कहलाई ?
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यदि ‘कोई दूसरा व्यक्ति’ आप पर हँसता है, तो आप उसपर दया कर सकते हैं.
(किन्तु) यदि आप उस पर हँसते हैं तो आप अपने को कभी क्षमा नहीं करे पाएंगे.
यदि ‘कोई दूसरा व्यक्ति’ आपको क्षति पहुंचाता है , तो आप उसपर दया कर सकते हैं.
(किन्तु) यदि आप उस को क्षति पहुंचाते है आप अपने को कभी क्षमा नहीं करे पाएंगे.
वास्तव में वो ‘कोई दूसरा व्यक्ति’ आपका ही सबसे सम्वेदनशील भाग है,बस शरीर आपसे अलग है.
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ये क़त्ल हो जाने वाले का सम्मान है की वो कातिल नहीं है.
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मानवता की आशा शांत मन में है, वाचाल दिमाग में नहीं.
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एक छात्र और एक लेखक में एक हरा मैदान है, छात्र उसे पार कर जाए तो वो एक बेहतर इंसान हो जाता है, लेखक उसे पार कर जाए पैगम्बर हो जाता है.
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हम अपनी खुशियाँ और क्षोभ का चुनाव उनका अनुभव करने से बहुत पहले करे लेते हैं.
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उदासी दो बगीचों के बीच कि दीवार है.
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यदि आपकी खुशियाँ अथवा आपके क्षोभ बड़े बन जाएँ तो दुनिया छोटी बन जाती है.
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जब आप अपनी ऊँचाई मैं पहुंच जाओ तो इच्छाओं कि इच्छा करो, भूख कि भूख हो और किसी और भी बड़ी प्यास कि प्यास हो.
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यदि मैं, दर्पण, आपके सामने खड़े हो जाऊं, और आप मुझसे कहें कि आप मुझसे प्रेम करते हो, तो आप उस खुद से प्रेम करते हो जिसका अक्स मुझमें है.
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आप उसे भूल सकते हो कि जिसके साथ आप हँसे, किन्तु उसे कैसे भूलोगे जिसके साथ रोये?
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नमक में कोई न कोई तो आश्चर्य जनक बात रही होगी, कोई रहस्य. वो हमारे आंसुओं में भी है और समुद्र में भी.
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अगर आप बादलों कि सवारी करें, आप देशों के बीच कोई सीमा रेखा नहीं पाएंगे, आप खेतों के बीच भी सीमाएं नहीं पाएंगे.
अफ़सोस कि आप बादलों में सवारी नहीं कर सकते .
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तुम अंधे हो, मैं बहरा और गूंगा.
तो चलो, हाथों को छूकर समझें.
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आपकी प्रासंगिकता इस बात से नहीं है कि आप क्या पाते हैं, अपितु इससे है कि आप क्या पाना चाहते हैं.
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तुम मुझे कान दो, मैं तुम्हें आवाज़ दूँगा.
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Jesus the Son of Man (Khalil Gibran)
मेरा कहा, आधे से ज्यादा तो अर्थहीन ही होता है. लेकिन मैं फिर भी वो अर्थहीन कहता हूँ, जिससे कि बाकी का महत्वपूर्ण भी आप तक पहुंचे.
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‘सत्य’ जानने योग्य तो सदैव ही है, किन्तु आवश्यक्तानुसार ही कहे जाने योग्य है.
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मेरी आत्मा की आवाज़ आपके आत्मा के कानों तक कभी नहीं पहुंच सकती, लेकिन फिर भी चलो बातें करें, कि हम तन्हा न महसूस करें.
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जब दो स्त्रियाँ बात करती हैं, वो कुछ नहीं कहतीं.
जब एक स्त्री बोलती है, वो अपना सम्पूर्ण जीवन वर्णित कर चुकती है.
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केवल मूर्ख ही वाचाल से ईर्ष्या रखता है.
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आप ‘वास्तव’ में अपनी आँखें खोल के तो देखो, हर दृश्य में स्वयं को दृश्यमान पाओगे.
और हर आवाज़ में अपनी ही अंतर्ध्वनि सुनोगे, जो अपने कान ‘वास्तव’ में खुले रख के सुनोगे.
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तब जबकि शब्दों की लहरें हमेशा से ही हमारे ऊपर हैं, तो भी हमारे अंतस की गहराई सदा शांत है.
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सत्य की खोज दो के बिना संभव नहीं; एक, जो कहे; दूसरा, जो समझे.
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आओ चलो आइस-पाइस खेलें...
जो तुम मेरे दिल में छुपो तो तुम्हें ढूँढना मुश्किल कहाँ?
जो तुम अपने ही बनाये आवरण में छुप जाओ तो, क्षमा करना किन्तु, कोई
तुम्हें ढूँढना ही क्यूँ चाहेगा?
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जो एक स्त्री को समझ सके, वो जो बुद्धिजीवियों की आलोचना कर सके या सुलझा सके मौन के रहस्य की गुत्थी,
वो,वही इंसान है जो सुबह एक सुन्दर स्वप्न देख के जागे नाश्ते की मेज में बैठने के लिए.
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हमारे विचार किसी विशेष मत,व्यक्ति अथवा संस्था के प्रति झुके हुए और आरक्षित नहीं होने चाहिए. एक छिपकली की पूँछ और एक कवी की कृति, दोनों ही इसी एक जहान के प्रताप की देन हैं.
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उनकी प्रेरणा और कुछ नहीं, दरअसल, हमारे ह्रदय में अपनी कलम डुबाना ही थी.
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कविता कोई विचार नहीं, वो तो एक गीत है जो रिसते घावों से बह निकला, या एक हँसते चेहरे से.
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कविता ‘खुशी’ और ‘दर्द’ का कारोबार है, चुटकी भर शब्दकोष के साथ.
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मैंने एक लेखक मित्र से कहा, ”आपका महत्त्व आपकी मृत्यु तक नहीं पता लगना.”
लेखक बोले,”हाँ मृत्यु सदा से ही राज़ खोलती आई है. और अगर ऐसा हुआ कि आप
को मेरा महत्त्व मेरी मृत्यु के बाद लगा, तो संभवतः मेरे ह्रदय में उससे
कहीं अधिक था, जितना कि मेरी जुबां पर रहा. और मेरी इच्छाओं में उससे
कहीं अधिक था जितना कि मेरे हाथों में.”
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यदि आप, सहरा के एकांत में भी सौंदर्य-गीत गातें हैं तो आपको श्रोता मिल ही जायेगा.
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प्रेरणा हमेशा गायेगी, प्रेरणा व्याख्या नहीं करती.
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आपकी सोच ही आपकी कविता का ‘गतिरोधक’ है.
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एक महान गायक वो है जो हमारा मौन गुनगुना सके.
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आप गीत कैसे गा कैसे सकते हैं, जबकि आपके मुंह में तो गुड़ भरा है.
आप आशीर्वाद के लिए हाथ कैसे उठायेंगे अगर आपकी मुट्ठी में हीरे-जवाहरात हैं?
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हम सौंदर्य की खोज के वास्ते ही जीते हैं. बाकी सब इंतज़ार के ही रूप हैं.
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कई सारी स्त्रियाँ पुरुष का ह्रदय ‘उधार’ लेती हैं, किन्तु कुछ ही ‘अधिकार’ लेती हैं.
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यदि आप ‘इसका’ अधिकार रखते हैं तो दावा क्या करना ?
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जब पुरुष और स्त्री एक दूसरे का हाथ छूते हैं तो वे दोनों ही शाश्वतता का हृदय छूते हैं
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हर पुरुष दो स्त्रियों से प्रेम करता है, एक; जो उसकी कल्पनाओं की कृति है, दूसरी; अभी तक नहीं जन्मी.
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कितनी बार मैंने उन गलतियों का दोष भी अपने सर मढ़ा है जो कि मैंने की ही नहीं,लेकिन जिससे की अगला व्यक्ति मेरी उपस्थिति में, आरामदेह महसूस करे.
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यदि प्रेम चिर-नूतन नहीं तो आदत बन जाता है और अंततः गुलामी.
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प्रेम वो है जो दो के बीच है, न कि एक-दूसरे से.
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प्रेम प्रकाश का वो शब्द है, जो किरण के पन्नों में रोशनी के हाथों से लिखा हुआ है.
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दोस्ती एक मीठा उत्तरदायित्व है न कि अवसर.
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मेरा घर मुझसे कहता है,”मत जाओ, कि यहीं तो तुम्हारा सुनहरा अतीत है.”
और सड़क कहती है,”आ जाओ, कि मैं ही तुम्हारा भविष्य हूँ.”
और मैं, दोनों से ही कहता हूँ,”न तो मेरा कोई माज़ी है, न ही मेरा भविष्य."
यदि मैं यहाँ रुकूं, मेरे रुकने में ही मेरी गति है और यदि मैं वहाँ जाऊं, मेरे चलना ही मेरी जड़ता. केवल प्रेम और मृत्यु ही बदलाव लाते हैं.”
आश्चर्यजनक है कि खुशी की आकांशा ही मेरे दुखों का मूल है.
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यदि आप मित्र को सभी परिस्थितियों में नहीं समझ पाते तो आप कभी उसे नहीं समझ पायेंगे.
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तुम्हारा दिमाग और मेरा ह्रदय तब तक सहमत नहीं होंगे, जब तक कि तुम्हारा दिमाग ‘सांख्यिकी’ में और मेरा ह्रदय ‘धुंध’ में रहना न छोड़ दें.
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हम एक दूसरे को नहीं समझ पाएंगे जब तक कि हम भाषा को सात शब्दों तक सीमित न करे दें.
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जब आप सूरज से मुंह फेर लेते हैं, आप अपनी ही छाया देखते है.
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मेरे ह्रदय का बाँध कैसे खुलेगा, जब तक टूटेगा नहीं ?
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भेडिये ने भेड़ से अनुग्रहपूर्वक कहा,”क्या आप हमारे मेहमान बनकर हमें अनुग्रहित नहीं करना चाहेंगे ?”
भेड़ ने उत्तर दिया,”हम ज़रूर आपके घर आते यदि वो आपका पेट नहीं होता.”
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मैंने देहरी में ही मेहमान को रोककर कहा, ”नहीं जनाब ! मेहरबानी करके आते वक्त अपने पाँव मत धोइए, जब जाइयेगा तब ज़रूर धोइयेगा.”
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आप वाकई बहुत बड़े दानी हैं यदि देते वक्त आप अपना मुंह दूर फेर लेते हैं,जिससे की ग्रहण करने वाले को लज्जा का अनुभव न हो, और हो भी तो आप कम से कम उसे न देख पाएं.
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दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति और सबसे निर्धन के बीच में एक दिन की भूख और एक घंटे की प्यास भर का अंतर है.
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हम हमेशा आने वाले कल से उधार लेकर बीते हुए कल का उधार चुकाते हैं.
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मुझे भी देव और दानव मिलने आते हैं, पर मैं बड़ी आसानी से उनसे छुटकारा पा जाता हूँ.
जब देव आते हैं, मैं एक पुरानी प्रार्थना करने लगता हूँ.
और जब दानव आता है मैं एक पुराना अपराध कर देता हूँ. दोनों ही मुझे छोड़ के चल देते हैं.
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आप वास्तव में एक क्षमा देने वाला कहलाते हैं, यदि, आप क्षमा कर दें उस कातिल को जिसने खून की एक भी बूँद भी नहीं गिराई, आप क्षमा कर दें उस चोर को जिसने कभी चुराया नहीं और क्षमा कर दें उस झूठे को जिसने झूठ नहीं बोला.
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यदि आपका ह्रदय ज्वालामुखी है तो आप कैसे अपेक्षा रखते हैं कि आपके हाथों में एक फूल खिला रहेगा.
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जो आपकी कमीज़ से अपने गंदे हाथ पोछे तो उसे अपनी कमीज़ ले जाने दो,क्यूंकि उसे इसकी दोबारा आवश्यकता हो सकती है, आपको निश्चित ही नहीं.
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जो मुझसे कमतर हैं वही मुझसे घृणा एवं ईर्ष्या करते,
मुझसे कोई भी नफरत अथवा घृणा नहीं करता, मैं किसी से भी बढ़कर नहीं.
जो मुझसे बढ़कर हैं वही मेरा उत्साहवर्धन करते,
मेरा कभी भी उत्साहवर्धन नहीं हुआ, मैं किसी से भी कमतर नहीं.
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हम सभी कैद में हैं, लेकिन हम में से कुछ एक की कोठरियों में खिड़कियाँ हैं.
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यदि कभी हम एक दूसरे के सामने अपने अपराधों को स्वीकार करने लगे, तो हम
एक दूसरे के ऊपर हसेंगे,
कारण : मौलिकता का अभाव.
यदि कभी हम एक दूसरे के सामने अपने गुणों की बातें करने लगे, तो भी हम
एक दूसरे के ऊपर हसेंगे,
कारण : मौलिकता का अभाव.
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‘सरकार’ आपके और मेरे बीच एक संधि है. आप और मैं ज्यादातर गलत होते हैं.
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दूसरे की गलतियों को उकेरना क्या उससे भी ज्यादा बड़ी गलती नहीं कहलाई ?
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यदि ‘कोई दूसरा व्यक्ति’ आप पर हँसता है, तो आप उसपर दया कर सकते हैं.
(किन्तु) यदि आप उस पर हँसते हैं तो आप अपने को कभी क्षमा नहीं करे पाएंगे.
यदि ‘कोई दूसरा व्यक्ति’ आपको क्षति पहुंचाता है , तो आप उसपर दया कर सकते हैं.
(किन्तु) यदि आप उस को क्षति पहुंचाते है आप अपने को कभी क्षमा नहीं करे पाएंगे.
वास्तव में वो ‘कोई दूसरा व्यक्ति’ आपका ही सबसे सम्वेदनशील भाग है,बस शरीर आपसे अलग है.
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ये क़त्ल हो जाने वाले का सम्मान है की वो कातिल नहीं है.
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मानवता की आशा शांत मन में है, वाचाल दिमाग में नहीं.
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एक छात्र और एक लेखक में एक हरा मैदान है, छात्र उसे पार कर जाए तो वो एक बेहतर इंसान हो जाता है, लेखक उसे पार कर जाए पैगम्बर हो जाता है.
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हम अपनी खुशियाँ और क्षोभ का चुनाव उनका अनुभव करने से बहुत पहले करे लेते हैं.
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उदासी दो बगीचों के बीच कि दीवार है.
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यदि आपकी खुशियाँ अथवा आपके क्षोभ बड़े बन जाएँ तो दुनिया छोटी बन जाती है.
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जब आप अपनी ऊँचाई मैं पहुंच जाओ तो इच्छाओं कि इच्छा करो, भूख कि भूख हो और किसी और भी बड़ी प्यास कि प्यास हो.
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यदि मैं, दर्पण, आपके सामने खड़े हो जाऊं, और आप मुझसे कहें कि आप मुझसे प्रेम करते हो, तो आप उस खुद से प्रेम करते हो जिसका अक्स मुझमें है.
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आप उसे भूल सकते हो कि जिसके साथ आप हँसे, किन्तु उसे कैसे भूलोगे जिसके साथ रोये?
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नमक में कोई न कोई तो आश्चर्य जनक बात रही होगी, कोई रहस्य. वो हमारे आंसुओं में भी है और समुद्र में भी.
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अगर आप बादलों कि सवारी करें, आप देशों के बीच कोई सीमा रेखा नहीं पाएंगे, आप खेतों के बीच भी सीमाएं नहीं पाएंगे.
अफ़सोस कि आप बादलों में सवारी नहीं कर सकते .
Beautiful translations :)
ReplyDeleteकितनी बार मैंने उन गलतियों का दोष भी अपने सर मढ़ा है जो कि मैंने की ही नहीं,लेकिन जिससे की अगला व्यक्ति मेरी उपस्थिति में, आरामदेह महसूस करे.
ReplyDeleteकितनी बड़ी बात है...
बहुत सुन्दर अनुवाद हैं... इन्हें आपने अपरिपक्व क्यूँ कहा, पता नहीं!
अनुवाद के अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी!
ReplyDeletemai dhanya hua. Life time achievement hai is post ko padhna aur us se v badi bat hai in bato ko aatmsaat krna. I'll try ma best. Thanx a lot for this valuable post
ReplyDeleteयूँ ही पढ़ते हुए सोच रहा था कि अगर खुदा के रजिस्टर मे उसके चश्मे के नम्बर की गलती से कहीं यदि आपकी और खलील साहब की बर्थ डेट्स ’अदल-बदल’ हो जातीं (बालीवुडिया पिक्चर की तरह) तो इस वक्त अपने खलील साहब पिछली सदी के महान लेखक-चित्रकार-फिलास्फर(डॉट-डॉट) दर्पण साह-ब की क्लासिक किताब ’सागर और रेत’ का अंग्रेजी मे अनुवाद कर के इसी ब्लॉग पर छाप रहे होते...और अपन पढ़ पढ़ के निहाल हो रहे होते..तारीफ़ें भी करे जा रहे होते दर्पण साहब के लेखन और खलील साहब के ट्रांसलेशन की!!..नही?..खैर कोई वक्त था जब ’सैंड एंड फॉम’ हमारे तकिये के तले परमानेंटली विराजता था...और रोज सोने से पहले दो पेज पढ़ कर रात भर उसके अब्स्ट्रैक्ट-स्पीरिचुअलिज्म मे गोता लगाते रहते थे..मगर कोई वक्त ही था ना..सारे के सारे कोट्स हमारे पसंदीदा रहे हैं..और मेरे हिसाब से तो आपने उनका बेहतरीन अनुवाद किया है..!! सो आज शाम को बाजार से बढ़िया वाले लड्डू खरीद कर हमारी ओर से अपनी पीठ ठोंकते हुए खा लेना...(वैसे इसका पार्ट-टू भी आयेगा क्या?..चलो हमें ऐतबार की आदत सही) :)
ReplyDelete:)
Deletebahut badhiya post
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनुवाद ! आभार इस प्रस्तुति के लिए !
ReplyDeleteरचना का चुनाव अदभुद...और अनुवाद लाजवाब...
ReplyDeleteआओ चलो आइस-पाइस खेलें...
जो तुम मेरे दिल में छुपो तो तुम्हें ढूँढना मुश्किल कहाँ?
जो तुम अपने ही बनाये आवरण में छुप जाओ तो, क्षमा करना किन्तु, कोई
तुम्हें ढूँढना ही क्यूँ चाहेगा?
बहुत बहुत शक्रिया...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअजीब बात है किसी ने ओशो की सत्य ओर साहस पढ़ रहा हूँ तो कुछ मिले जुले थोट्स दिमाग में घूम रहे है .
ReplyDeleteइसे पढ़कर लगा एक बुद्धिमान मनुष्य सब कुछ पढ़कर भी कभी कभी कुछ बाते उस तरह से नहीं कह सकता जिस तरह से वो महसूस करता है . लेखको को ढूंढ रहा हूँ जिनमे वो साहस है टुकड़े टुकड़े यहाँ वहां मिल रहे है
Bahut Khoob!
ReplyDeleteBahut hi badhiya.
ReplyDeleteKothrion waali baat achchi lagi.
Oscar Wilde ne bhi kaha hai "We are all in gutters but some of us are looking at the stars".
Ashish
Bahut hi badhiya.
ReplyDeleteKothrion waali baat achchi lagi.
Oscar Wilde ne bhi kaha hai "We are all in gutters but some of us are looking at the stars".
Ashish
Bhaai saab' ye bahot hi khoobsurat translation hai...
ReplyDelete