जॉर्ज ऑरवेल द्वारा १९४४ में लिखा उपन्यास एनिमल फ़ार्म जब पूरा हो गया तो कोइ भी प्रकाशक इसे छापने को तैयार नहीं था.बाद में जब ये छपा तो अपने अद्भुत शिल्प के कारण इसने तहलका मचा दिया.२५ जून १९०३ को भारत में जन्मे जार्ज ऑरवेल की शिक्षा इंग्लॅण्ड में हुई और नौकरी बर्मा पुलिस में की.वह सम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ थे,पुलिस की नौकरी छोड़ के मामूली नौकरियां करते रहे.इन्होने बी बी सी में भी नौकरी की.इनका असली नाम "एरिक आर्थर ब्लयेर" था.
एनिमल फ़ार्म एक फैंटेसी से बुनी गयी रोचक काल्पनिक कथा है.कहानी का शिल्प रोचक है.कहानी कहने वाला अज्ञात है.उसकी कहानी में कोई भूमिका नहीं है फिर भी हर बात सटीक करता है. ये उपन्यास १९१७ से १९४३ तक रूस में घटित घटनायों पर आधारित समझा जाता है.खेत साम्यवादी व्यवस्था का प्रतीक है.जानवरों के माध्यम से ये बताना चाहा है सत्ता और नेतृत्व पा लेने से किस प्रकार भ्रष्टाचार फैलता है.अपने ही लोगो को मारा जाता है.(जैसे स्टालिन ने अपनी तानाशाही बनाये रखने के लिए अपने ही लोगों कई लोगों की हत्या करवा दी) बुद्धिमान जानवर झूठ और छल से सत्ता पर कब्ज़ा जमा लेते हैं.बुद्धि से कमजोर जानवरों को ठगा जाता है.धोखे से शक्ति हासिल करके हर नियम को ताक पर रखा जाता है.जानवरों पर जानवरों के राज की एक विचित्र कहानी ....
मेजर(सफेद सूअर) सभी जानवरों की एक बैठक में बताता है कि वो जल्दी ही मरने वाला है पर मरने से पहले सबको वो ज्ञान देना चाहता है जो उसने जीवन में अर्जित किया है.वो बताता है कि इंग्लैंड में कोई भी जानवर स्वतंत्र नहीं है.वह गुलामी का जीवन जीते है.उन्हें उतना ही खाने को दिया जाता है जिससे बस साँस चलती रहे.इंसान बगैर उत्पादन किये उपभोग करता है.फिर भी जानवरों पे राज करता है.मेजर कहता है कि मानव जाती को उखाड़ फैंकने के लिए विद्रोह करना होगा.
तीन दिन बाद मेजर मर जाता है.मालिक जोन्स जब रात नशे में सो जाता है तो स्नोबॉल, नेपोलियन विद्रोह की तैयारी करते हैं.बैठकें चलती रहीं और जानवरों की उम्मीद से कहीं जल्दी और आसानी से विद्रोह हो गया.एक दिन जब जानवरों को शाम तक खाना नहीं मिला तो उन्होंने अपने सींगों से भण्डार का दरवाजा तोड़ दिया.जिसे जो मिला खाने लगा.जोन्स के आदमी जानवरों को कोड़े मरने लगे तो भूखे जानवर उनपर टूट पड़े और उन्हें खदेड़ दिया.विद्रोह संपन्न हुआ .जोन्स को निकाल कर फ़ार्म पर जानवरों का अधिकार हो गया.रस्सियों,चाबुक आदि चीजों को जला दिया गया.मुख्य गेट पर "मैनर फ़ार्म" की जगह "एनिमल फ़ार्म" लिख दिया गया.स्नोबॉल ने दीवार पर सात नियम लिख दिए-
1. जो दो पैरों पर चलता है वह दुश्मन है.
2. जो चार पैरों पर चलता है या पंख है, दोस्त है.
3. कोई जानवर कपड़े नहीं पहनेगा.
4. कोई जानवर बिस्तर में नहीं सोएगा.
5. कोई जानवर शराब नहीं पिएगा.
6. कोई जानवर किसी भी दूसरे जानवर को नहीं मरेगा.
7. सभी जानवर बराबर हैं.
गायों को दुहा गया और बाल्टियाँ भर कर ढूध रख कर जानवर स्नोबॉल की अगुवाई में फसल काटने चले गये.लौट कर आये तो ढूध गायब हो गया था.जानवर मेहनत कर रहे थे,पसीना बहा रहे थे पर अपनी सफलता से खुश थे.आशा से ज्यादा परिणाम मिल रहे थे.प्रत्येक जानवर अपनी क्षमता के अनुसार काम करता था और भोजन का एक उचित हिस्सा पाता था.सूअर खुद काम नहीं करते थे,बल्कि वह जानवरों को निर्देश देते थे और काम का निरिक्षण करते थे.नेतृत्व उनके पास आ गया था.
हर रविवार स्नोबॉल, और नेपोलियन बड़े खलिहान में सभी जानवरों की एक बैठक का नेतृत्व करते थे.अगले हफ्ते के काम की रूपरेखा तैयार की जाती थी.सूअर ही प्रस्ताव रखते थे,बाकी जानवर केवल मतदान ही करते थे.स्नोबॉल और नेपोलियन बहस में सक्रिय रहते पर दोनों में कम ही सहमति हो पाती थी.एक के प्रस्ताव का दूसरा जरूर विरोध करता.
जानवर साक्षर हो रहे थे.सूअर पढ़ने लिखने में पूरी तरह सक्षम हो गये थे.कुछ अल्पबुद्दि जानवर सात नियम सीख नहीं पाए थे,स्नोबॉल ने सात नियमों को एक सूत्र वाक्य में व्यक्त किया-"चार पैर अच्छा,दो पैर बुरा"
वक़्त बीतने के साथ सूअरों के खुद को पुरस्कार, नियंत्रण में वृद्धि और अपने लिए विशेषाधिकार बढ़ते ही जा रहे थे.दूध के गायब होने का रहस्य भी जल्दी ही खुल गया.ये रोज सूअरों की सानी में मिलाया जा रहा था.सेबों के पकने पर जानवरों की राय थी की इन्हें आपस में बराबर बाँट लिया जाये लेकिन ये आदेश आया की इन्हें सूअरों के साजो सामान वाले कमरे में पहुँचा दिया जाये.जानवर भुनभुनाये पर सूअर सहमत थे यहाँ तक कि स्नोबॉल और नेपोलियन भी.जानवरों को शांत करने का काम सूअर स्क्वीलर को सौंपा गया-
"साथियों!"वह चिल्लाया,"आपको लगता है कि हम लोग ये सब अपनी सुविधा या स्वार्थ के लिए कर रहें हैं?हम में से बहुत तो ढूध और सेब पसंद भी नहीं करते.मुझे खुद ये अच्छे नहीं लगते.इन चीज़ों को हासिल करने के पीछे हमारा मकसद अपने स्वास्थ्य की रक्षा करना है.दूध और सेब(ये विज्ञान द्वारा प्रमाणित है साथियों )में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो सूअरों के लिए लाभदायक हैं.हम सूअर दिमाग़ी कार्यकर्ता हैं.इस फ़ार्म का संगठन और प्रबंधन हमारे ऊपर निर्भर है.हम लोग दिन-रात आपके कल्याण के लिए कार्य कर रहें हैं.हम लोगों का ढूध और सेब का सेवन करना आप लोगों के हित में हैं.क्या आप जानते हैं-अगर हम सूअर अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहे,तो क्या होगा?जोन्स वापिस आ जायेगा."
जानवर कभी नहीं चाहते थे मिस्टर जोन्स वापिस लौटे इसलिए वे कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह गये.नेपोलियन भी नौ नवजात puppies को एक मचान में रख के शिक्षित कर रहा था.
खेती में सुधार के लिए योजनायें बनाई जाने लगी.स्नोबॉल ने पवन चक्की बनाने की घोषणा की नेपोलियन पवन चक्की के खिलाफ था.पवन चक्की को ले कर जानवर बराबर-बराबर बँटे हुए थे.स्नोबॉल ने अपने भाषण से जानवरों को प्रभावित किया एनिमल फ़ार्म की सुखद तस्वीर पेश की.सिर्फ पवन चक्की ही नहीं बिजली से चलने वाली बहुत सी चीजों की बात की.स्नोबॉल के भाषण खत्म होते-होते कोई शंका नहीं रह गयी थी कि मतदान किसके पक्ष में होगा लेकिन तभी नेपोलियन के नौ भयंकर प्रशिक्षित कुत्तों ने खेत से स्नोबॉल को खदेड़ दिया उसके बाद वह कभी नज़र नहीं आया.स्नोबॉल की बेदखली के तीसरे रविवार जानवर नेपोलियन की ये घोषणा सुन कर दंग रह गये कि पवन चक्की बनायी जाएगी.
साल-भर जानवर खटते रहे.पर वह खुश थे कि अपने लिए काम कर रहें हैं दुष्ट और कामचोर इंसानों के लिए नहीं.पवन चक्की बनाने के कम के कारन अन्य जरूरी काम प्रभावित होने लगे थे.नेपोलियन ने पड़ोसी फ़ार्म से व्यापार की घोषणा की.सूखी घास,थोड़ा गेहूं और ज्यादा पैसे के लिए मुर्गियों के अंडे बेचने की बात भी कही.विलिंग्डन के मिस्टर विम्पर ने बिचोला बनना स्वीकार कर लिया.
सूअरों ने मिस्टर जोन्स के फ़ार्म हॉउस को अपना घर बना लिया.वह बिस्तर पर सोने लगे.कलेवर से चौथा नियम नहीं पढ़ा गया तो उसने मुरियल को पढने के लिए कहा कि मुझे बताओ कि क्या चौथे नियम में बिस्तर पे सोने को मना नहीं किया तो मुरियल ने पढ़ा-कोई जानवर बिस्तर में....चादर के ऊपर नहीं सोयेगा.कुत्तों ने उन्हें बताया कि बिस्तर पे सोने के खिलाफ नियम नहीं था बिस्तर का अर्थ है सोने की जगह,देखा जाये तो तिनको का ढेर भी बिस्तर ही है. ये नियम चादर पे सोने से मना करता है जो इंसान ने बनाई है.
एक रात, तेज हवाओं ने पवन चक्की को नष्ट कर दिया. नेपोलियन स्नोबॉल को दोष देता है.
ये बात साफ हो चुकी थी कि बाहर से अनाज की व्यवस्था करनी होगी.नेपोलियन अब शायद ही कभी बाहर आता था.वह फ़ार्म हॉउस में रहता था जिसके बाहर एक कुत्ता हमेशा तैनात रहता था.उसका बाहर निकलना भी एक समारोह की तरह होता.उसे छह कुत्ते घेरे रहते.वह अपना आदेश किसी और सूअर खासकर स्कवीलर के जरिये जारी करता.नेपोलियन ने विम्पर के माध्यम से एक समझौता किया.जिसके अनुसार हर हफ्ते फ़ार्म से ४०० अण्डों की आपूर्ति की जायेगी.
चार दिन बाद, नेपोलियन एक विधानसभा बुलायी जिसमें उसने कई कपट स्वीकार करने के लिए पशुओं को इकट्ठा किया.चार सूअरों को कुत्तों ने स्नोबॉल के संपर्क में रहने के दोष में मार दिया.तीन मुर्गियों को अंडें न देने की बगावत में मार दिया.मृत्युदंड का सिलसिला देर तक चला.कुछ जानवरों को छठा नियम याद आया.मुरियल ने नियम पढ़ा-एक जानवर दूसरे जानवर को अकारण नहीं मारेगा.यह "अकारण"शब्द जानवरों की स्मृति से निकल गया था.अब उन्हें अहसास हुआ कि नियम टूटा नहीं है.
नेपोलियन की किसानों के साथ बातचीत जारी रही और अंत में मिस्टर पिल्क्ग्टन को लकड़ी बेचने का फैसला किया.गर्मी खत्म होने तक पवन चक्की भी तैयार होने को थी.पवन चक्की की ख़ुशी में जानवर अपनी सारी थकान भूल गये पर वह ये सुन कर हैरान रह गये कि नेपोलियन ने लकड़ी पिल्क्ग्टन को नही फ्रेडरिक को बेच दी.नेपोलियन ने पिल्क्ग्टन से उपरी दोस्ती के साथ फ्रेडरिक से भी गुप्त समझोता कर रखा था पर फ्रेडरिक ने लकड़ी के बदले में नकली नकदी नेपोलियन को दी .नेपोलियन ने तत्काल बैठक बुलाई और फ्रेडरिक को मृत्युदंड देने की घोषणा की.अगली सुबह फ्रेडरिक ने लोगो साथ मिल के फ़ार्म पे हमला कर दिया.युद्ध में जानवर जीत तो गये पर बुरी तरह थके और घायल.पवनचक्की भी टूट चुकी थी.जानवरों की मेहनत की आखरी निशानी अब नहीं बची थी.
युद्ध के बाद, सूअरों को फार्म हाउस के तहखाने में व्हिस्की की पेटी मिली.उस रात फ़ार्म हॉउस से जोर-जोर से गाने की आवाज़ आयी.सुबह कोई भी सूअर बाहर नहीं निकला.दूसरे दिन नेपोलियन ने विम्पर को शराब बनाने कि विधि की पुस्तकें खरीद लाने को कहा.कुछ दिनों बाद मुरियल ने महसूस किया कि जानवरों ने एक और नियम सही से याद नहीं रखा.उनके अनुसार पांचवा नियम है-कोई भी जानवर शराब नहीं पिएगा.पर इसमें एक और शब्द वो भूल चुके है.असल में नियम है-कोई भी जानवर ज्यादा शराब नहीं पिएगा.
अप्रैल में, फ़ार्म हॉउस एक गणतंत्र घोषित किया गया और नेपोलियन राष्ट्रपति के रूप में सर्वसम्मति से चुना गया.एक दिन बॉक्सर पवन चक्की का काम करते हुए गिर गया.नेपोलियन ने उसे विलिंग्डन में पशुचिकित्सा करने के लिए भेजने का वादा किया. कुछ दिनों बाद, एक घोड़े की हत्या करनेवाला अपनी वैन में बॉक्सर को ले जाने लगता है.जानवर वैन के पीछे दौड़ते हैं.कलेवर बॉक्सर को बाहर निकलने के लिए कहती है.वैन तेज़ हो जाती है पता नहीं बॉक्सर कलेवर की बात सुन भी पाया था कि नहीं.तीन दिन बाद ये घोषणा कि गयी कि बॉक्सर का सर्वोत्तम संभव देखभाल करने के बावजूद अस्पताल में निधन हो गया.
सूअरों के पास अचानक से बहुत सा पैसा कहीं से आ गया था.
वर्षों बीत गये.कुछ ही जानवर ऐसे बचे थे जिन्हें विद्रोह के पुराने दिन याद थे.मुरियल की मौत हो चुकी थी,स्नोबॉल भुला दिया गया था.मिस्टर जोन्स भी मर चुके थे.बॉक्सर को कुछ ही जानवर याद करते हैं.कलेवर बूढी हो गयी है.फ्राम में ढेर से जानवर हैं.फ़ार्म पहले से अधिक व्यवस्थित हो गया है.पवन चक्की आखिरकार बन चुकी है.नयी बिल्डिंगे बन गयी हैं.फ़ार्म समृद्ध हो गया है पर जानवरों के जीवन में कोई तब्दीली नहीं आई सिवाय कुत्तों और सूअरों को छोड़ कर.सूअर अपने पिछले पैरों पर चलने लगे थे.भेड़ों ने गाना शुरू किया-चार पैर अच्छा,दो पैर ज्यादा अच्छा.विरोध करने की गुंजाईश खत्म हो चुकी थी.बेंजामिन ने दीवार पर अब सिर्फ एक ही लिखा हुआ नियम पढ़ के सुनाया-सारे जानवर बराबर हैं पर कुछ जानवर औरो से ज्यादा बराबर हैं.
सूअर काम कराने के लिए चाबुक ले आये.सूअरों द्वारा स्वयं को अधिक से अधिक विशेषाधिकार देने का पुराना पैटर्न जारी रहा. वे एक टेलीफोन खरीदने वाले थे और पत्रिकाओं की सदस्यता ले रहे थे.वे जोन्स के कपड़े भी पहनने लगे थे.एक रात, नेपोलियन किसानों के लिए एक समझौता भोज आयोजित करता है और ये घोषणा करता है कि फ़ार्म हॉउस को फिर से"मैनर फार्म" कहा जाएगा .बाहर खड़े जानवर सब देख रहे थे.पहले सुअरों को देखा,फिर इंसानों को,फिर सुअरों को देखा और उसके बाद इंसानों को.
....सूअर और इंसानों में अब कोई फरक नहीं रह गया था....
Wonderful !!! another masterpiece from George Orwell besides 1984.
ReplyDeleteक्लासिक कृति का एक विस्तृत विवेचन
ReplyDeleteइन साहब ने एक ओर नोवेल लिखा था जो कई बरसो बाद भी जैसे मौजूद रहा था ..वैसे इससे मिलती जुलती एक फिल्म आई थी ...फ्रेंच फिल्म ..उसे देखने पर एक्पेट में एक अजीब सा गोला उठता था.......
ReplyDeleteशुक्रिया डिम्पल इसे यहाँ बांटने के लिए !!
वाह शानदार पोस्ट .
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बड़ा सुन्दर विवरण, गाँधीजी इस पुस्तक से बहुत प्रभावित थे।
ReplyDeleteअब याद नहीं आ रहा कि पहले "1984" पढ़ी थी या "एनिमल फार्म"...साल तकरीबन 95 का था, इतना जरूर याद है। एनडीए की लाइब्रेरी से निकाल कर पढ़ी थी और बाद में सरकार जब तनख्वाह देने लगी तो आरवेल साब की ये दोनों किताबें अपनी अलमारी में शामिल हो गयीं।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट...पढ़कर दुबारा इस किताब को पढ़ने का मन हो रहा है।
कक्षा ११ या १२ में सिलेबस में पढ़ा......एक कालजयी कृति समान है.....धन्यवाद....पुनः पठन सुखदायी लगा
ReplyDeleteइस किताब का समग्र हिंदी अनुवाद कहानीकार सूरज प्रकाश ने किया है. यह समग्र अनुवाद भी हिंदी में नेट पर नमूदार हो जाए तो कितना अच्छा हो.
ReplyDeleteयह एक बेहतरीन पुस्तक है। १९८४ की भी समीक्षा हो जाय और अच्छा हो।
ReplyDeleteराजनीति विज्ञान का एक कोटेशन है, ' कोई भी शासन व्यवस्था अधिक दिनों तक सत्ता में रहने पर भ्रष्ट हो जाती है... अतः उसे बदल देना चाहिए.' अब लोकतंत्र भी भ्रष्ट हो गया है, लेकिन मुश्किल ये है कि इसका कोई विकल्प नहीं और जो विकल्प होगा भी तो कुछ दिनों बाद भ्रष्ट हो जाएगा. मतलब किसी विकल्प का कोई विकल्प नहीं. जो सत्ता में है, वो भ्रष्ट होगा ही होगा.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगा आप का ये मंच ये ब्लॉग ऐतिहासिक विशिष्ट लोगों की जानकारियां यहाँ पर पोस्ट उनकी छवि मन को रोचक लगीं नमस्कार क्या आप भी लिखते/लिखती हैं ?? आइये आप के समर्थन के इंतजार में
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