Wednesday, January 5, 2011

गोमूत्र… (पिंक स्लिप डैडी से एक कहानी!)

Pink Slip Daddy_Cover गीत चतुर्वेदी की पिंक स्लिप डैडी उनकी तीन लंबी कहानियों का संकलन है; गोमूत्र, सिमसिम और पिंक स्लिप डैडी। तीनों कहानियाँ हमारे आज के कार्पोरेट समाज में बुनी गयी हैं जो धीर धीरे उसी समाज की बुनावट को पर्त दर पर्त उधेडती हैं। गोमूत्र जहाँ एक आम किरदार की ज़िंदगी में आधुनिक बाजारों द्वारा लाये गये एक बदलाव की कहानी है, वहीं सिमसिम एक सडक और उसके आस पास रहने वाली  कंक्रीट और सीमेंट सी कुछ कच्ची-पक्की ज़िंदगियों की कहानी है। तीसरी कहानी, पिंक स्लिप डैडी एक सटायर है, इसके सारे किरदार ग्रे शेड्स के हैं और उनके ग्रे में कितना सफ़ेद है और कितना काला, पढने वाला ये अंत तक ढूढता ही रहता है।

 

“एक दिन बाबा ने टोक दिया कि इतने दिनों में तुम यह किताब पूरी नहीं पढ पाये?
मैंने बिना उसकी ओर देखे कहा, सर, दुबारा पढ रहा हूँ। पिछली बार मेरी देह ने पढी थी यह किताब, इस बार मेरी रूह पढ रही है।

 बाबा खें खें करता अपने केबिन में चला गया। मुझे सुकून हुआ, उसके रूह और देह की थ्योरी उसी को रसीद कर दी।

बाबा कहता है, जो रूह करती है, उसे देह नापसंद करती है। जो देह करती है, उसे रूह गलत मानती है। जबकि देह और रूह दोनों एक हैं। लेकिन देखा जाए, तो दोनों अलग भी हैं। जैसे पानी और बर्फ़ एक ही हैं, लेकिन दोनो अलग भी हैं। यही एक होना तो अद्वैत है। और अलग होना विशिष्ट अद्वैत है।

बहुत दिनों तक इस अद्वैत को मैं अदैत्य बोलता रहा। मुझे यह कोई बहुत बडा दैत्य लगता थ। मुझे कभी बाबा का यह भाषण समझ नहीं आया। सच कहूँ, तो वह बडा ज्ञानी है। यह भी झूठ नहीं कि बाबा चूतिया बसंत है। ज्ञानी और चूतिये दिखते अलग हैं, पर होते एक ही हैं। यही इनका अद्वैत है।”

- गोमूत्र से

 

गोमूत्र  हमारे आस पास के उन किरदारों की कहानी है जो एक बहुत लंबा सफ़र तय करके अहं ब्रह्मास्मि से अहं ब्रांडास्मि तक पहुँच चुके हैं या उन्हें चुपचाप वहाँ पहुँचा दिया गया है जब वो नींद में थे। जब वो जागे तो चारों तरफ़ सिर्फ़ एक बाजार था और अनगिनत ब्रांड, जिनके पास न जाने कितने अनोखे रंगीन सपने थे। कस्टमर इज किंग बताते हुये ये बाजार और उनके ब्रांड बेचारे आम इंसानों के सपनों में सेंध लगाते हैं और फ़िर शुरु होता है ब्रह्म और ब्रांड के बीच का अद्वैत। 

गोमूत्र का पात्र एक सीधा सादा मिडिल क्लास वर्किंग आदमी है जिसके खुद के सपने उसे खुद पता नहीं या शायद वो उन्हें भूल चुका है और एक आम पति की तरह, विवाह के बाद से उसकी बीवी के छोटे छोटे सपने ही उसके अपने सपने हैं। दुनिया के तमाम वादों-प्रतिवादों पर जाने वाले रास्तों के परे घर से ऑफ़िस और ऑफ़िस से घर ही उसकी ज़िंदगी के रास्ते है। हँसने के लिये कुछ एसएमएस हैं और लॉफ़्टर चैलेंज के कुछ गुदगुदाते फ़ूहड जोक्स। वो हमारे आस पास का एक सामान्य किरदार है जो हमें अक्सर अपने ऑफ़िसों में सुस्ताते, खिलखिलाते और अपने बॉस का हुक्म बजाते दिखता हैं। उसके सपनों की सीमायें उसके महीने के आखिर में आने वाली तन्ख्वाह तय करती है और त्योहारों में मिलने वाले छोटे मोटे बोनस उसकी मुस्कान को एक दो अंगुल और बढा देते हैं।

गोमूत्र कहानी है उस किरदार के विनाश की जो एक छोटा सा क्रेडिट कार्ड उसकी ज़िंदगी में लाता है। ये कहानी है उस छोटे से औजार की जो उस आम इंसान के सपनों को बाज़ार के सामने निर्वस्त्र ला खडा करता है। ये कहानी है उसी बाज़ार की जो अपना बडा सा मुँह बाये हम सबको धीरे धीरे लील रहा है। ये कहानी है हम सभी की, जो उसी बाजार की आग के गीत गा रहे हैं, जो कहने को चाहे कितने भी संपन्न हों, लेकिन  अपनी अपनी संपन्नता के मुताबिक उसी आग से खेल रहे हैं, बिना जाने कि वो हमें जला भी सकती है।

“मैं एक आग का गीत गा रहा था। वह आग जो शहरों को जला देती है, किताबों को फ़ूंक डालती है, प्यासे लोगों के होठों को झुलसा देती है। मैं उसी आग के गीत गा रहा था। मैं उस आग की चमक की ओर खिंचा चला गया था। अब वह आग पलटकर मेरी ओर लपट फ़ेंक रही थी। और मैं बचता बचाता यहाँ वहाँ भाग रहा हूँ।

ये कैसी बेबसी है। इस बारे में कोई कुछ बोलता क्यों नहीं? कोई कुछ सोचता क्यों नहीं? क्या ऎसा दिन आएगा एक दिन कि किसी की कोई राय न होगी। क्रोध होगा, पर कोई विरोध नहीं होगा। जब क्रोध होगा, तो हम भागकर अपने अंधियारे में छुप जाएंगे और उसके शांत होने पर दोबारा इसी रोशनी में आकर छुपमछुपाई खेलेंगे? सिर्फ़ अर्ज़ियां होंगी मेरे जैसे व्यक्ति के पास? खतरा होगा, खतरे की घंटी होगी और उसे बादशाह बजायेगा?

बाबा जैसा बादशाह?
उस सेल्स एग्जीक्यूटिव जैसा बादशाह?
पिंक पेपरों पर गहरा नीला सूट पहनकर दंतुरित पंक्तियां दिखाकर हंसता हुआ उद्योगपति बादशाह?
छाती पर बेस्टसेलर का मुहर लगाए सोच का सफ़ल जादू बताने वला लीडर मैनेजर बादशाह?
 

गोमूत्र की कहानी जैसे ही खत्म हो गयी सी लगती है, जैसे ही आप पर इसका एक हैंगओवर होना शुरु होता है, जैसे ही आपका मस्तिष्क ब्लैंक होने लगता है, कहानी में लेखक ’पोस्ट स्क्रिप्ट’ के माध्यम से आप की कॉलर पकडकर, मेज पर हथौडा बजाता हुआ अपनी उपस्थिति देता है:

“कोई नहीं मानेगा कि जो बातें मैं बता रहा हूं, वैसा कभी हुआ था। कोई नहीं मानेगा कि रेलवे स्टेशन पर इतनी हत्यायें हुयी थीं, और अखबारवालों-टीवीवालों को पता ही नहीं चला। कोई नहीं मानेगा कि एक आदमी को बीच सडक मार डाला  गया, जबकि सब देख रहे थे। कोई नहीं मानेगा कि एक पूरी नस्ल के सपनों को रोडरोलर के नीचे रखकर कुचल दिया गया, जबकि सपनों के खून के छींटे जगह-जगह दिखते हैं। कोई नहीं मानेगा कि इतिहास से सारी ठगी निकालकर मेरी इस सदी में आ गयी है, हालांकि हर किसी के बटुए चोरी होते हैं। कोई नहीं मानेगा कि वित्तमंत्री पिछले जन्म में गिरहकट था, क्योंकि हम पुनर्जन्म को बहुत पिछडी हुयी बात मानते हैं। कोई नहीं मानेगा कि मैं एक छोटे से कागज पर साइन करके, एक चिंदी बराबर कार्ड लेकर एक बहुत बडी साजिश का शिकार हुआ था, जबकि सबकी जेब में वैसे कार्ड हैं और सब कहेंगे कि ये बहुत साधारण सी बात है कि यह तो एक टूल है, जिसका सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिये कि अगर तुम्हें इस कार्ड का इस्तेमाल चालाकी से करना नहीं आया, तो यह तुम्हारी ही गलती है, किसी और की नहीं। कोई नहीं मानेगा कि अपने समय की चिंता करने वाले सैकडो संतों-महात्माओं को आत्महत्या करने पर मजबूर किया गया था, जिसे सजीवन समाधि कह दिया गया और उनकी कविता में वाद-विवाद की तफ़्तीश करते हुये उनके असली विचारों को हमेशा के लिये दबा दिया गया। कोई नहीं मानेगा कि ये सारी राजनीति भाषा में हुयी थी और मेरी भाषा में अभी भी ऎसे तमाम अक्षर हैं, जिन्हें जान-बूझकर किसी पाठशाला में नहीं पढाया जाता। कि मेरी भाषा का सारा कार्य-व्यवहार ऎसी भाषा में होता है, जिसे पढना किसी के बूते का नहीं। कोई नहीं मानेगा कि हमारे समय में हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज और हाईपरटेंशन से होने वाली लाखों मौतें सहज मृत्यु नहीं, बल्कि साफ़-साफ़ हत्या हैं और उनके हत्यारे दिन-ब-दिन फल-फूल रहे हैं और खतरनाक खतरा है, लेकिन खतरे की घंटी बादशाह के हाथ में है, जिसे बजाने में उसके स्वार्थ आडे आते हैं और बादशाहत जाने का खतरा भी। कोई नहीं मानेगा कि हर आत्महत्या दरसल एक हत्या थी, जिसके लिए मरने वाला दोषी नहीं था। कोई नहीं मानेगा कि हममें से हर किसी को चौराहे पर घेरकर रामदास की तरह पूर्वघोषणा के साथ मार दिया जाता है कि मरे हुये लोग अपनी ही शक्लोसूरत में लाश के पैरों पर खडे होते हैं और लाशों जैसा जीवन जीने लगते हैं, जिंदा होने का भ्रम देते हुये। क्रॉनिकल ऑफ़ द डेथ फ़ोरटोल्ड की तरह हर आंख ने देखी होती है वह हत्या, लेकिन फ़िर भी किसी ने स्वीकार नहीं किया आज तक कि कोई हत्या हुई भी थी। कोई नहीं मानेगा कि दुनिया बहुत खूबसूरत हो सकती थी, पर कुछ लोगों ने उसका खूबसूरत हिस्सा अपनी ओर घुमा लिया है और असंख्य लोगों को चेहरे के पीछे का घुटन- भरा अंधकार और बदसूरती दे दी है। कोई नहीं मानेगा कि इस समय भी अपनी कविता, गीतों, धुनों, फ़िल्मों, पेंटिग्स और तस्वीरों में दुनिया को खूबसूरत कहने वाले लोग दरअसल समय और सभ्यता के सबसे बडे गुनहगार हैं, जिन्हें कोई कटघरे में खडा नहीं करता क्योंकि अदालत का जज घूस में मिले पैसे, डिनर में मिला मुर्गा और विदेशी शराब छ्ककर तोंद के नीचे की ज़िप खोले चित सोया है, फ़ैसला लिखने वाली निंब को तोडकर। कोई नहीं मानेगा कि मेरे समय में बाबा जैसे लोग हैं, जिन्होंने समय देखकर पाला बदल लिया, जिनके कारण चे ग्वारा और गांधी जैसे लोग बहुत दुखी हैं आज किसी दुनिया में, बल्कि उसके जैसे लोगों को हमेशा पुरस्कृत किया जाएगा, वे हर छठे महीने मिडटर्म इंक्रीमेंट पायेंगे, प्रमोशन पाकर और सिर छांटेंगे। कोई नहीं मानेगा कि चे और गांधी लोगों के सपने में आना चाहते हैं, लेकिन सबकी नींद एक थ्री रूम फ़्लैट, एक लग्जरी कार, एक ब्लैकबेरी मोबाइल और सिलिकॉन बूब्स वाली किसी सुंदरी के सपनों से फ़ुल हाउस ठुंसी पडी है और चे व गांधी से कहा जा रहा है – सब्र कीजिए, आप कतार में हैं। कोई नहीं मानेगा कि नींद पूरी हो जाने और सूरज के सिर चढ जाने के बाद कभी इनका नंबर नहीं आ पाया। कोई नहीं मानेगा कि ये पूरी तरह मैनेजरों का समय है, जिसमें मातहतों के भीतर मैनेजर बनने के अलावा और कोई सपना नहीं बचा। कोई नहीं मानेगा कि वह आज पहले के मुकाबले ज्यादा गरीब है, भले उसके घर में सबकुछ इकट्ठा क्यों न हो गया हो। कोई नहीं मानेगा कि जो कुछ भी लिखा है मैंने, वह सच है, सहज जबान में है और ऎसा ही हो रहा है चारों तरफ़। कोई नहीं मानेगा क्योंकि यह बहुत अविश्वसनीय समय है, जिसमें सच पर विश्वास नहीं किया जाता, क्योंकि वह बहुत पकाऊ, लंबा, पेचीदा और अतिकथन वाले अतियथार्थ से भरा होता है। कोई नहीं मानेगा, क्योंकि सच जितना पुराना होता जाता है, उतना ही बास मारता है और बास मारने वाली चीजों को हम दूर कूडे के ढेर पर फ़ेंक आते हैं। अगर अभी मैं कह दूं कि इस कहानी की सात फ़ोटोकॉपी कराके सात अलग अलग लोगों को कोरियर करने या बांटने से आपको सिर्फ़ सात घंटे में सौभाग्य की प्राप्ति होगी, और ऎसा न करते हुये आपको वैष्णो देवी या साईं बाबा का कोप झेलना पडेगा, तो इसे झूठ मानते हुये भी आप इस पर यकीन कर लेंगे और सात नहीं, सत्तर को बांट देंगे, पर मेरे कहे हुये सच को प्रेमीजन एकालाप मान लेंगे, एक सनक गए आदमी की  बेरियायत भाषा वाली अपठनीय-असुननीय बडबडाहट। अतिकथन से बचते हुए किफ़ायत से भाषा का इस्तेमाल करने की सलाह देने वाले विज्ञापन फ़िल्मों के कॉपीराइटर छाप अर्धकवि-अर्धलेखकों और हिंदी साहित्य के सुर-सुरा-सुंदरी आशिक आलोचकों को इरिटेट करने वाली बडबडाहट। सुख की चकाचौंध की मुखालफ़त करती बोझिल अंधेरी ऊटपटांग बातें। न ढिबरी, न बाती। न सिर, न पैर। न अंग, न जननांग। न बाजा, न बाराती।

पर सबको कसम है अपने बचे हुए ईमान की, सच बताना, क्या आपको नहीं लगता कि जब संत ज्ञानेश्वर ने खुद को एक गुफ़ा के भीतर बंदकर बाहर से बडा पत्थर रखवा दिया था, जब हेंमिंग्वे ने कई बार अभ्यास के बाद खुद को गोली मारी थी, जब वैन गॉग ने अपना कान काटा था और अपनी छाती को छेद डाला था, जब लखनऊ की एक इमारत से कवि विजय शर्मा कूदा था, जब मानबहादुर सिंह को इसी तरह घेरकर चाकुओं से गोद डाला गया था, जब रशिया के कवि मायकोवस्की और सिर्फ़ २१ साल के बोरिस रिंज़िन्त्सकी ने खुदकुशी की थी, जब सिल्विया प्लेथ ने अपना सिर ओवन में झोंक दिया था, जब टोपी शुकला और गोंगेश पाल ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी, जब नामदेव सखाराम बांडेकर, हरजीत सिंह हन्नी और जोग्न्नाथ दाश जैसे महाराष्ट्र, पंजाब और उडीसा के सैकडो किसानों  ने सल्फ़ास खा लिया था या नहर में कूद पडे थे या फ़ंदा लगा लिया था, तब ये सारे लोग भी मेरी ही तरह बडबडाती हुई एकालापी खामोशी की किसी पतली-सी डोर पर, हुनर भूल गय नट की तरह, झूल नहीं रहे थे?“

8 comments:

  1. पंकज तुमने पूरी बुक से कुछ कुछ हिस्से उठा के धर दिए | मानता हूँ कहानी बहुत ही झंझोड़ने वाली टाइप है | तुमने गीत के ब्लॉग पे लिखा भी था कि तुम इस कहानी पर एक समीक्षा लिखोगे (शायद) लेकिन ये समीक्षा नहीं लगी | हम तुम्हारा पक्ष जानना चाहते हैं |

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  2. बढ़िया !

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  3. @ नीरज
    भाई पंकज दफ्तरी दिक्कतों से यहां कमेंट नहीं कर पा रहे हैं. सो अपना जवाबी पोस्टकार्ड मुझे डिलीवर करने को बोला है..

    "@neeraj
    Nahi yeh pustak sameeksha nahi hai aur maine geet ke blog par 'sameeksha' likhne ke liye bhi kabhi nahin kaha. Ittafakan ye pustak, pustak mele mein mili aur ittafakan hi geet ki likhai se mera parichay hua. Maine sirf us asar/hangover, jo ek pathak ke naate mujh par hua, ko shabdon mein utarne ki koshish ki . Shabd bhi kahan har baar wo kah pate hain jo hamne mehsoos kiya.
    Rahi baat apne kahe se jyada, unki pustak ke anshon ko daalne ki, to tum sahi kahte ho. Maine koshish ki thi kahani ke anshon aur mere kahe mein 70/30 ka anupaat rahe aur main un anshon ko bhi uddhat kar sakoon jo jhakajhorte hain jisse padhne walon ka ek achhi samyik kahani se parichay ho sake lekin fir ek blog post ki bhi apni seemayen hoti hain. Isse kahin achhi lekin lambi posts bairang par hi sookhi padi hain.
    Likhne ke liye shukriya. Kuch sujhaav ho to kripya kahen aur khulkar kahen. Unhi se hamein pata chalta hai ki bairang chitthyon ko unke pate mile ya unhe lautkar wapas hamare paas hi aana hoga."

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  4. किसी भी एक वाक्य को लेकर टिप्पणी करना बहुत कठिन है.न अभी कोई विरोध है न कोई क्रोध बस एक हलचल सी है,आखरी पैरा पढ़ के देह के खोल में सिमटी आत्मा बस करवट भर लेती है और फिर चिर निद्रा में खो जाती है.

    अच्छा होता अगर आप कहानी को भी थोड़ा स्पष्ट करते.आप शायद पोस्ट की बढती लम्बाई के कारन ऐसा नहीं कर पा

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  5. pankaj ji
    एक अच्छी कोशिश ,एक कामयाब रचनाकार की , रचना को खंगालने की !हालाकि दो बार पढ़ जाने के बावजूद कहीं कहीं तारतम्यता बांध नहीं पाई (हो सकता है की समझ न सकी हूँ आपके मंतव्य को )पर इसे पूरा पढ़ने के बाद मुझे ,कुछ दिनों पूर्व एक निबंध /आलेख का स्मरण हो रहा है जिसका सारांश कुछ इस तरह था की ''कोई भी समाज ऊंचे मूल्यों और आदर्शों की अवधारणा करता है ,पर पीढियां उन आदर्शों से दूर होती दिखाई देती हैं अस ''यानि किसी भी मूल्य की पूर्ण स्वीकृति किसी भी देश काल में नहीं हो पाती ,अतः मूल्य संरक्षण की चेतना पतन के बोध से आक्रांत हो जाती है !एक अच्छे प्रयास के लिए बधाई (एक सामान्य पाठक की द्रष्टि से )...गीत जी की रचनाएँ तो यूँ भी किसी कसौटी की मोहताज़ नहीं !

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  6. कहानी के बारे में 'जानना' बढ़िया रहा.और कह सकता हूँ कि इस कहानी को पढ़ना अब और भी शानदार अनुभव होगा.चूँकि फिलहाल किताब मेरे पास नहीं है इसलिए कहानी के इतने उम्दा परिचय के लिए शुक्रिया.बना रहे ये 'हेंग ओवर'.

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  7. बहुत अच्छा :कभी समय मिले तो हम्रारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.com पर भी आयें /
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  8. bahut hi shaandar kahani..
    acha laga pad kar..
    Please visit my blog..

    Lyrics Mantra
    Ghost Matter
    Music Bol

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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