Saturday, February 12, 2011

देखी है कभी डाकिये के नाम भी कोई चिट्ठी?

बचपन में जब मैं अपने डाकिये को लोगों की चिट्ठियां उनतक पहुँचाते हुये देखता था तब एक बात अक्सर मुझे परेशान करती थी कि उस डाकिये की चिट्ठियां उसतक कौन पहुँचाता होगा? बढती उम्र ने जब कई चीजों के जवाब दिये, शायद तभी समझ आया कि वो भी कोई और नहीं एक डाकिया ही था।
तो आज एक चिट्ठी  डाकियों के लिये जो अबतक बैरंग चिट्ठियों को उनके पतों तक पहुँचाने का काम बडी शिद्दत से कर रहे हैं। इस चिट्ठी को लिखा है एक डाकिये ने (अपूर्व शुक्ला), पढा है एक डाकिये ने (दर्पण साह) और यहाँ तक पहुँचाने की साजिश भी एक डाकिये ने ही (डिम्पल) रची है।
…तो प्रस्तुत है ’ओ समय!’



 
प्रेषक :- दर्पण साह 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

7 comments:

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  2. एम्पीरियल दौर का एक एतिहासिक विभाग जिसने बरसात, बाढ़, तूफ़ान और पथरीले और कंटीले रास्तों की पर्वाह किए बिना, जंगलों से गुजरती हुई पगडन्डियों से गुजरते हुए हमें डाक पहुचाते रहे है...और यह सुन्दर सफ़र जारी है...अनवरत...एक नास्टेलेजिया सा है डाक से... और सलाम है हमारे डाकियों को जो हर चिठ्ठी के साथ हमारे होने का एहसास कराते हैं!..कृष्ण

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  3. अँधेरे में पढ़ी गयी एक चिट्ठी .....जिसको लिखने वाला उदास है .और पढने वाला भी.....अजीब बात है के पढने वाला इतने धीमे से पढता है जैसे वो किसी को सुना नहीं रहा है ...खुद समझने की कोशिश में है .....बिना सांस रोके वो अपनी ना -इत्तेफाकी भी नहीं दिखाता ख़त के मजमून से .......ओर ना कही उतार चडाव या गुस्सा.......जैसे ख़त लिखने वाले ओर उसने इस अँधेरे को एकसाथ देखा है ....अलग अलग जगह एक वक़्त बैठकर.........

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  4. and listing it again.. i recall another poem......
    देख रहे बच्चे
    अपनी जन्मस्थली
    बेपरदा हुई मनुष्यता
    भोग के प्रमाणपत्र बाँट रही
    खुल रही पहेली दिन-ब-दिन
    रहस्य
    झिझक रहा फुटपाथ पर पड़ा
    अपने पहचान-पत्र का अभाव में
    दरिद्रदेवता
    पूछ रहा पता
    हवालात का

    जहाँ उसने अपनी शिनाख़्त की
    अनुपस्थिति के सबूत के अभाव में
    फाँसी लगेगी...लगनी है
    असल में यह अनुपस्थिति का मेला है
    खत्म हुई चीज़ों की ख़रीद का विज्ञापन
    युवा युवतियों को बुला रहा
    कि गर्भ की गर्दिश से बचने के
    कितने नये ढंग अपना चुकी है
    मरती शताब्दी

    written by kailash vajpeyi....

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  5. अच्छा है रात को नहीं सुना इसे ..
    वर्ना
    बहुत दिनों बाद कोई सिगरेट जलानी पड़ती......
    जैसे
    पी जाती है किसी पुराने यार के मिलने पर

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  6. गलत बात है पंकज एंड आल..कुछ तो मजाक दर्पण ने ले लिया और बाकी आप लोग..!! वैसे दर्पण को कहीं एफ़ एम पे होना चाहिये था...नही?

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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