बहुत पुराने समय की बात है.
भगवान जी ऊपर स्वर्ग में रहते थे.
नीचे सब धुन्धूकार(अन्धेरा)फैला था.सृष्टि की रचना का विचार उनके दिमाग में शोर मचा रहा था.अपने मन में हो रही तोड़-फोड़ पर एकागर हुए वह एक नदी के किनारे घूम रहे था.नदी भरी हुई जोबन में बह रही थी,जरूर पहाड़ों में बारिश हुई होगी.
फूल पौधों के शिखरों पे बैठे पंख फडफडा रहे थे जैसे अभी नदी पार अपने प्यारे दोस्तों को मिलने जाना हो.पंछी गर्दनें हिला के उन्हें कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे.
बादल गरजा.
भगवान की एकाग्रता टूट गयी.उन्होंने खीझ के सभी ऋतुओं को ज़मीं पर भेज दिया और कहा बारी-बारी से सृष्टि पर पहरा दें.
हुक्म में बंधी ऋतुएँ इस सृष्टि पर आ पहुंची.ऋतुएँ लोगो से छेड़खानी करती.लोग इनसे बचने के लिए गुफाओं,छ्परों,कोठियों,घरो और बंगलो तक आ पहुंचे,किसी ऋतू बारिश होती,नदियों में सैलाब आते,गाँव के गाँव बह जाते पर ऋतुओं के लिए ये सब सिर्फ मजाक था.लोगो को अब रेडियो पहले ही बता देता कब बारिश होगी.लोग पानी पे बांध बना के कैदी बना लेटे मन मर्जी से कहीं और भेज देते.
पहले अगर हवा साँस रोक के खड़ी हो जाती तो लोग कहते किसी पापी का हवा पे पहरा लगा है और तडपते रहते इस पहरे के हटाने के लिए.पर अब बिजली के पंखे बिना हवा को पूछे चलते रहते.
पहले अगर बारिश ना होती तो बनस्पती सूख जाती.लोग यज्ञ करते,हवन करते,कहाँ विघ्न पड़ा सोचते पर अब टिऊबवैल लग गये,अब कोई बारिश की परवाह नहीं करता.
ऋतुएं उदास हो गयी भगवान जी पास गयी,
"भगवान जी,धरती पर अब हमारी जरुरत नही,हमें लौट आने दें,"
"यह कैसे हो सकता है?"भगवान जी ने हैरान हो के पूछा.
"आप खुद चल के देख लो चाहे"ऋतुओं ने बिनती की.
भगवान जी एक छोटी सी चिड़िया बन के ऋतुओं की शिकायत की जाँच करने धरती पर आ गये.
शाम का वक़्त था
रुत बहार की थी.
आसमान में बादल घिरे थे.
मोरों ने पंख फैला के नाच-नाच के बादलों को धरती पे उतार आने को कहा.
जंगली फूल एक दूसरे को इशारे कर-कर के मुस्करा रहे थे.
छोटे-छोटे पंछी फूलों के पत्तियों के गीत हवा के आंचल में बांध -बांध कर अपने प्यारे मित्रों को भेज रहे थे.
"ये धरती तो बहुत सुंदर जगह है"भगवान जी ने बहार को कहा.
इतने में एक शहर आ गया.
बहुत भीड़ थी.
बहुत शोर था.
हर कोई खोया-खोया सा था.
सभी लोग जैसे आसमान से गिरे हुए था और किसी के कुछ नहीं लगते थे.कोई किसी को जानता नहीं था.लोग घड़ी बार-बार देखते थे.
"चिड़ियाँ ले लो,रंग बिरंगी चिड़ियाँ"पिंजरे में कितनी चिड़ियों को बंद कर एक आदमी आवाज़ लगा रगा था.
चिड़िया बने भगवान जी ने देखा तो घबरा गये.
जल्दी से उड़ के एक मंदिर में पहुंचे.
"ताज़े मोतियों का हार दो-दो आने"मंदिर के बाहर नंगे पांव वाला फटे कपड़े पहने एक लड़का हार बेच रहा था.
"लो डेढ़ आना,दे हार" मुश्किल से अपना पेट संभाले लाला जी ने कहा.
लड़का सोच में पड़ गया.जैसे पहले ही कम मूल्य बताया था.
"छोड़ो ये भी कोई खाने की चीज़ है,और दो घंटो में इन्होने मुरझा जाना है."उस आदमी ने दलील दी.
बात लड़के को समझ आ गयी.उसने बेबस हो कर डेढ़ आने में हार दे दिया.
लाला जी मन्दिर में जा पहुंचे.
मूर्ती के सामने खड़े हो के आँखे मीचे अंतरध्यान हो के कुछ लेन-देन की बात की.नमस्कार किया और फूलों का हार चरणों में रख दिया.
भगवान जी मंदिर से बाहर आ गये.
एक औरत बालों में सुंदर फूल लगाये जा रही थी.खुद भी वह बहुत सुंदर थी.
"सर ढक लो जमाना ठीक नहीं."औरत के पीछे आ रही बुढ़िया जो शायद उसकी सास थी ने कहा.
औरत ने सर ढक लिया.
भगवान जी फूल के बारे में सोचने लगे,जरूर उसका दम घुट गया होगा.
इतने में रिमझिम शुरू हो गयी.
चिड़िया बने भगवान जी एक खम्बे के ऊपर बैठने ही लगे थे कि करंट का ऐसा झटका लगा कि पल भर के लिए होश उड़ गये,कच्चा सा हस के एक घर की छत्त पर बैठ गये,
उन्हें फ़िक्र हो रही थी शहर में कहीं पेड़ ही नहीं,पंछी कहाँ बैठते होंगे,घोंसलें कहाँ बनाते होंगे,कहाँ सोते होंगे.
भगवान जी हैरान थे कि किसी ने रिमझिम मौसम की छेड़खानी महसूस नहीं की.ना किसी की आँखों में बादलों की परछाईं नाची.ना कोई नंगे पांव धरा की ख़ुश्बू महसूस करने आया.ना बाल खोल किसी ने मोती पकडे.
भगवान जी अब बहार से नज़रे नहीं मिला पा रहे थे.
वह शहर की तरफ मुँह मोड़ चल पड़े,शहर अब पीछे छूट गया था.
टेढ़ी-मेढ़ी राह पर एक आदमी गुनगुनाता जा रहा था.
सामने गाँव से आते डाकिये ने उसे पहचान के साइक्ल धीरे कर लिया
"बारिश हो रही है,कहो तो में साइक्ल पर छोड़ दूँ.जाना कहाँ है?"डाकिये ने ऐनक ऊपर कर धरती पर एक पैर रख साइक्ल रोक कर पूछा.
"जाना....जाना तो कहीं भी नही"उसने बिना रुके कहा.
"बारिश आ रही है कपड़े भीग जायेंगे"यह बात उसको कम और अपने खुद के घिसे मैले कपड़ो को ध्यान में रख कर ज्यादा कही.
"आप चलो,अपने ठिकाने पहुँचो"आदमी ने हंस कर कहा.
जाते हुए डाकिया सोच रहा था,भला इसमें हंसने की क्या बात है मैंने तो उसके भले की बात ही कही.
गाँव से दूर कब्रिस्तान की तरफ वो आदमी मुड़ गया.
"क्यों?" चिड़िया बने भगवान जी ने बहार से पूछा.
"शायद सोचता हो कि मरने वालो के बीच में कोई ज़िंदा आदमी हो."
भगवान जी हंस पड़े,
"यहा लोगों को मर कर ही पता चलता है कि कभी वो ज़िंदा भी थे?"भगवान जी ने हैरान हो के पूछा.
वह आदमी तलाब के किनारे पहुंचा
तलाब में निलोफर के फूल खिले हुए थे.
कितना कुछ उस आदमी के मन में खिल गया.कांपते-कांपते उसने मन की अथाह गहराई से कोई गीत गाया.
तलाब में बगुले टहल रहे थे.कुछ बोल भी रहे थे उसे लगा कह रहे है 'अच्छा,'अच्छा'अच्छा'
तलाब में गिरती बारिश की बूंदे पानी को जैसे गुदगुदी कर रही थी.
फिर उसने किनारे पड़ी मिट्टी हाथों में लगाई हाथ हिला-हिला कर तलाब के पानी में परछाईयाँ देखता रहा.हैरान होता रहा जैसे हाथ मिट्टी के बने नृत्य कर रहे थे.जैसे सच ही हो.
फिर हाथ में पानी भर निलोफ़र के फूलों पर फेंका.वह नाच उठे..गाने लगे..
"खूबसूरती में जान मेरी,
बादलों में जान मेरी,
पंछियों में जान मेरी,
पत्तों में जान मेरी,
हवाओं में जान मेरी"
फिर उसने हाथ धो लिए.
तलाब के किनारे खड़े पेड़ से आँखों ही आँखों में जैसे कोई बात की.
तेज़ हवा में पेड़ के पत्ते खड़-खड़ करते कहीं भागे से जा रहे हो जैसे.
चिड़िया बने भगवान जी की तरफ देख के उस आदमी ने सीटी मारी..
भगवान जी हस पड़े
"उन सब के लिए ना सही ऐसे एक के लिए ही ऋतुएं आती रहेंगी,बादल बरसते रह्नेंगे,फूल खिलते रहेंगे,सूरज चढ़ते रहेंगे"
बहार ने"जो आज्ञा"कह कर सर झुका दिया.
चिड़िया बने भगवान जी सोच रहे थे कि स्वर्ग जाये कि ना...
("रब्ब ते रुत्ता"ड़ा.दलीप कौर टिवाणा की कहानी)
भगवान जी ऊपर स्वर्ग में रहते थे.
नीचे सब धुन्धूकार(अन्धेरा)फैला था.सृष्टि की रचना का विचार उनके दिमाग में शोर मचा रहा था.अपने मन में हो रही तोड़-फोड़ पर एकागर हुए वह एक नदी के किनारे घूम रहे था.नदी भरी हुई जोबन में बह रही थी,जरूर पहाड़ों में बारिश हुई होगी.
फूल पौधों के शिखरों पे बैठे पंख फडफडा रहे थे जैसे अभी नदी पार अपने प्यारे दोस्तों को मिलने जाना हो.पंछी गर्दनें हिला के उन्हें कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे.
बादल गरजा.
भगवान की एकाग्रता टूट गयी.उन्होंने खीझ के सभी ऋतुओं को ज़मीं पर भेज दिया और कहा बारी-बारी से सृष्टि पर पहरा दें.
हुक्म में बंधी ऋतुएँ इस सृष्टि पर आ पहुंची.ऋतुएँ लोगो से छेड़खानी करती.लोग इनसे बचने के लिए गुफाओं,छ्परों,कोठियों,घरो और बंगलो तक आ पहुंचे,किसी ऋतू बारिश होती,नदियों में सैलाब आते,गाँव के गाँव बह जाते पर ऋतुओं के लिए ये सब सिर्फ मजाक था.लोगो को अब रेडियो पहले ही बता देता कब बारिश होगी.लोग पानी पे बांध बना के कैदी बना लेटे मन मर्जी से कहीं और भेज देते.
पहले अगर हवा साँस रोक के खड़ी हो जाती तो लोग कहते किसी पापी का हवा पे पहरा लगा है और तडपते रहते इस पहरे के हटाने के लिए.पर अब बिजली के पंखे बिना हवा को पूछे चलते रहते.
पहले अगर बारिश ना होती तो बनस्पती सूख जाती.लोग यज्ञ करते,हवन करते,कहाँ विघ्न पड़ा सोचते पर अब टिऊबवैल लग गये,अब कोई बारिश की परवाह नहीं करता.
ऋतुएं उदास हो गयी भगवान जी पास गयी,
"भगवान जी,धरती पर अब हमारी जरुरत नही,हमें लौट आने दें,"
"यह कैसे हो सकता है?"भगवान जी ने हैरान हो के पूछा.
"आप खुद चल के देख लो चाहे"ऋतुओं ने बिनती की.
भगवान जी एक छोटी सी चिड़िया बन के ऋतुओं की शिकायत की जाँच करने धरती पर आ गये.
शाम का वक़्त था
रुत बहार की थी.
आसमान में बादल घिरे थे.
मोरों ने पंख फैला के नाच-नाच के बादलों को धरती पे उतार आने को कहा.
जंगली फूल एक दूसरे को इशारे कर-कर के मुस्करा रहे थे.
छोटे-छोटे पंछी फूलों के पत्तियों के गीत हवा के आंचल में बांध -बांध कर अपने प्यारे मित्रों को भेज रहे थे.
"ये धरती तो बहुत सुंदर जगह है"भगवान जी ने बहार को कहा.
इतने में एक शहर आ गया.
बहुत भीड़ थी.
बहुत शोर था.
हर कोई खोया-खोया सा था.
सभी लोग जैसे आसमान से गिरे हुए था और किसी के कुछ नहीं लगते थे.कोई किसी को जानता नहीं था.लोग घड़ी बार-बार देखते थे.
"चिड़ियाँ ले लो,रंग बिरंगी चिड़ियाँ"पिंजरे में कितनी चिड़ियों को बंद कर एक आदमी आवाज़ लगा रगा था.
चिड़िया बने भगवान जी ने देखा तो घबरा गये.
जल्दी से उड़ के एक मंदिर में पहुंचे.
"ताज़े मोतियों का हार दो-दो आने"मंदिर के बाहर नंगे पांव वाला फटे कपड़े पहने एक लड़का हार बेच रहा था.
"लो डेढ़ आना,दे हार" मुश्किल से अपना पेट संभाले लाला जी ने कहा.
लड़का सोच में पड़ गया.जैसे पहले ही कम मूल्य बताया था.
"छोड़ो ये भी कोई खाने की चीज़ है,और दो घंटो में इन्होने मुरझा जाना है."उस आदमी ने दलील दी.
बात लड़के को समझ आ गयी.उसने बेबस हो कर डेढ़ आने में हार दे दिया.
लाला जी मन्दिर में जा पहुंचे.
मूर्ती के सामने खड़े हो के आँखे मीचे अंतरध्यान हो के कुछ लेन-देन की बात की.नमस्कार किया और फूलों का हार चरणों में रख दिया.
भगवान जी मंदिर से बाहर आ गये.
एक औरत बालों में सुंदर फूल लगाये जा रही थी.खुद भी वह बहुत सुंदर थी.
"सर ढक लो जमाना ठीक नहीं."औरत के पीछे आ रही बुढ़िया जो शायद उसकी सास थी ने कहा.
औरत ने सर ढक लिया.
भगवान जी फूल के बारे में सोचने लगे,जरूर उसका दम घुट गया होगा.
इतने में रिमझिम शुरू हो गयी.
चिड़िया बने भगवान जी एक खम्बे के ऊपर बैठने ही लगे थे कि करंट का ऐसा झटका लगा कि पल भर के लिए होश उड़ गये,कच्चा सा हस के एक घर की छत्त पर बैठ गये,
उन्हें फ़िक्र हो रही थी शहर में कहीं पेड़ ही नहीं,पंछी कहाँ बैठते होंगे,घोंसलें कहाँ बनाते होंगे,कहाँ सोते होंगे.
भगवान जी हैरान थे कि किसी ने रिमझिम मौसम की छेड़खानी महसूस नहीं की.ना किसी की आँखों में बादलों की परछाईं नाची.ना कोई नंगे पांव धरा की ख़ुश्बू महसूस करने आया.ना बाल खोल किसी ने मोती पकडे.
भगवान जी अब बहार से नज़रे नहीं मिला पा रहे थे.
वह शहर की तरफ मुँह मोड़ चल पड़े,शहर अब पीछे छूट गया था.
टेढ़ी-मेढ़ी राह पर एक आदमी गुनगुनाता जा रहा था.
सामने गाँव से आते डाकिये ने उसे पहचान के साइक्ल धीरे कर लिया
"बारिश हो रही है,कहो तो में साइक्ल पर छोड़ दूँ.जाना कहाँ है?"डाकिये ने ऐनक ऊपर कर धरती पर एक पैर रख साइक्ल रोक कर पूछा.
"जाना....जाना तो कहीं भी नही"उसने बिना रुके कहा.
"बारिश आ रही है कपड़े भीग जायेंगे"यह बात उसको कम और अपने खुद के घिसे मैले कपड़ो को ध्यान में रख कर ज्यादा कही.
"आप चलो,अपने ठिकाने पहुँचो"आदमी ने हंस कर कहा.
जाते हुए डाकिया सोच रहा था,भला इसमें हंसने की क्या बात है मैंने तो उसके भले की बात ही कही.
गाँव से दूर कब्रिस्तान की तरफ वो आदमी मुड़ गया.
"क्यों?" चिड़िया बने भगवान जी ने बहार से पूछा.
"शायद सोचता हो कि मरने वालो के बीच में कोई ज़िंदा आदमी हो."
भगवान जी हंस पड़े,
"यहा लोगों को मर कर ही पता चलता है कि कभी वो ज़िंदा भी थे?"भगवान जी ने हैरान हो के पूछा.
वह आदमी तलाब के किनारे पहुंचा
तलाब में निलोफर के फूल खिले हुए थे.
कितना कुछ उस आदमी के मन में खिल गया.कांपते-कांपते उसने मन की अथाह गहराई से कोई गीत गाया.
तलाब में बगुले टहल रहे थे.कुछ बोल भी रहे थे उसे लगा कह रहे है 'अच्छा,'अच्छा'अच्छा'
तलाब में गिरती बारिश की बूंदे पानी को जैसे गुदगुदी कर रही थी.
फिर उसने किनारे पड़ी मिट्टी हाथों में लगाई हाथ हिला-हिला कर तलाब के पानी में परछाईयाँ देखता रहा.हैरान होता रहा जैसे हाथ मिट्टी के बने नृत्य कर रहे थे.जैसे सच ही हो.
फिर हाथ में पानी भर निलोफ़र के फूलों पर फेंका.वह नाच उठे..गाने लगे..
"खूबसूरती में जान मेरी,
बादलों में जान मेरी,
पंछियों में जान मेरी,
पत्तों में जान मेरी,
हवाओं में जान मेरी"
फिर उसने हाथ धो लिए.
तलाब के किनारे खड़े पेड़ से आँखों ही आँखों में जैसे कोई बात की.
तेज़ हवा में पेड़ के पत्ते खड़-खड़ करते कहीं भागे से जा रहे हो जैसे.
चिड़िया बने भगवान जी की तरफ देख के उस आदमी ने सीटी मारी..
भगवान जी हस पड़े
"उन सब के लिए ना सही ऐसे एक के लिए ही ऋतुएं आती रहेंगी,बादल बरसते रह्नेंगे,फूल खिलते रहेंगे,सूरज चढ़ते रहेंगे"
बहार ने"जो आज्ञा"कह कर सर झुका दिया.
चिड़िया बने भगवान जी सोच रहे थे कि स्वर्ग जाये कि ना...
("रब्ब ते रुत्ता"ड़ा.दलीप कौर टिवाणा की कहानी)
"यहा लोगों को मर कर ही पता चलता है कि कभी वो ज़िंदा भी थे?"भगवान जी ने हैरान हो के पूछा..
ReplyDelete...महीन कटाक्ष, गहन दर्शन।
...बैरंग की यह पोस्ट तो अनमोल है।
mujhe bahut purana main yaad aa gaya.... acchi lagi ye kahani.... shukriya dimple jee... :)
ReplyDeleteबादलों में जान मेरी
ReplyDeleteपंछियों में जान मरी बहुत खूब ...................