Thursday, April 21, 2011

सड़क

शहर की एक सड़क उसके ड्राइंग रूम के ठीक बीच में से निकलती थी.इस लिए उसका घर हर वक़्त बसों,ट्रकों,कारों और स्कूटरों के शोर से भरा रहता.वह अक्सर ड्राइंग रूम में पड़े सामान की धूल झाड़ता रहता पर पलक झपकते ही वह फिर से धूल से भर जाते.कोई महिमान आ जाये तो उसे बिठाने के लिए ड्राइंग रूम में जगह नहीं मिलती क्यूंकि अक्सर औरतें,बच्चें,बूढ़े सोफे पर बैठे बस का इंतज़ार करते रहते.
उसने अपने पिता से कई बार कहा -इस शहर के इन्तज़ामियों से कहा जाये कि वह सडक उनके ड्राइंग रूम से हटा के दूसरी और बना ले.पर उसके पिता यह कह के चुप कर जाते कि यह सडक उनके बाप-दादा के जमाने से ही इस ड्राइंग रूम से हो कर गुजरती है.पिता की बात सुनकर वह सोचता कि आखिर उन लोगो ने  ड्राइंग रूम के ठीक बीच में सड़क बनाने की इजाज़त क्यों दी.क्या दुनिया में कोई और भी घर है जिसके ड्राइंग रूम के ठीक बीच में से शहर की इतनी मसरूफ़ सड़क निकलती हो.
कई बार उसके जी में आया कि वह सडक खोद के उसका नामों-निशान मिटा दे.पर जब भी वह कुदाली ले के आगे जाता कोई ना कोई बस आ जाती और फिर शुरू हो जाता ट्रैफिक का सिलसिला.इतना कि वह इंतज़ार कर थक जाता और उसे नींद आ जाती.
एक दिन सड़क की खुदायी के लिए अपने दोस्तों को भी बुला लिया.बाहर एक कोने पर सुर्ख कपड़ा टांग दिया जिस पर लिखा था सडक मुरम्मत के लिए बंद है.पर ऊँट परवाह किये बिना कतार दर कतार आते गये और सुबह हो गयी.लाल कपड़ा हवा से एक तरफ गिर गया.ट्रैफिक फिर से शुरू हो गयी.
शाम को वह फिर से मुरम्मत के लिए वाला बोर्ड लगाने ही जा रहा था कि दो नौजवान स्कूटर पर रेस लगाते हुए आये.वह स्कूटरों की चपेट में आते-आते बड़ी मुश्किल से बचा.दोनों एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहे थे.वह निकले ही थे कि दो बसें एक दूसरे से आगे निकलती हुई आ पहुंची.इतने में एक ट्रक आ गया.वह सोफे पर पड़ा सब देख रहा था.आज रात सडक को खोद के रुख मोड़ देना था उसे.पर सुबह तक इंतज़ार के बाद भी ट्रैफिक नहीं थमी तो वह नाश्ते की मेज़ पर आ गया.उसके पिता ने बताया कि आज उसकी शादी का दिन है.
उसकी शादी हो गयी.महिमानों के जाने के बाद दूसरे दिन वह ड्राइंग रूम में आया तो यह देख के हैरान रह गया कि ड्राइंग रूम में लगी एक पुरानी तस्वीर वहाँ नहीं थी.उसने अपनी बीवी से तस्वीर के बारे में पूछा तो वह बोली-मैंने उतार दी,क्या कोई सड़क की तस्वीर भी ड्राइंग रूम में लगाता है?
उस दिन के बाद कोई भी गाड़ी उनके ड्राइंग रूम से नहीं निकली.
(मजहर-उल-इस्लाम की पंजाबी कहानी)


6 comments:

  1. ..बहुत अच्छी कहानी।
    ..ऊँट

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  2. @देवेन्द्र पाण्डेय.. ऊँट के लिए शुक्रिया :)

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  3. ड्राइंग रूम के बीच से सड़क...
    बहुत अच्छी कहानी !

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  4. दो गज रास्ता बनाकर दोनो तरफ़ आइने लगा दिये है
    दिखता तो यही है की मीलों का सफ़र है..!!
    खैर शुक्रिया कहानी ...!

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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