...गतांक से जारी.
कुमाऊंनी मासिक 'पहरू' के फरवरी अंक में प्रकाशित 'महेंद्र मटियानी' रचित कहानी 'सूबेदारनी' का भावानुवाद श्री भगवान लाल साह द्वारा -भाग दो
देवेन्द्र के नामकरण होने पर एक हफ्ते की छुट्टी मिली इनको. क्या कहते थे... "कमला तूने बच्चा क्या जन्मा मेरे लिए तो... अब तुझे मेरी याद भी नहीं आएगी... दिन रात तेरे गोद में ही रहूँगा अब. तेरी बाटुली (बाट: रास्ता, बाटुली: राह देखने के सन्दर्भ में) लगाना भी भयंकर मुश्किल होगा अब. अब मैं कितना याद करूँ.. कितना निसास (निः श्वाश) लगाऊं कितना ही रोऊँ तुझे बाटुली नहीं लगेगी अब." आधे से ज़्यादा चिट्टी भी देवेंद्रे के लिए... क्या क्या स्वप्न जैसे बुनने वाले हुए एक एक आंख्न में... बच्चे को लेकर... जब तक देवेन्द्र पाँच -छह में पहुंचेगा, तब तक हम तुम साथ साथ रहेंगे यहाँ फौजी क्वार्टर में. देवेन्द्र को फौजी स्कूल में पढ़ायेंगे. कभी लिखने वाले हुए, "बीवी तू हौलदार सूबेदार की ही रहेगी मग़र इजा (माँ) तुझे मेजर कर्नल की बनाना है." सारी चिट्ठी देवेन्द्र को लेकर... मेरा नाम बस लिफ़ाफ़े में हुआ. पहले पहले कैसे बदमासी करते थे चिट्ठी में भी "तेरे बगैर हाल ये अच्छा न समझना, मरता हूँ तेरी याद में जिन्दा न समझना. भेजा है जिगर काट के चिट्टी न समझना. ए यार दिल है हाथ में मिट्टी न समझना..." ...और भी जाने क्या क्या. अब वहाँ चले गए हो हवलदार... जहाँ से चिट्ठी भी नहीं आती. जो तुम्हारी चिट्ठियां संभाल के रखी हैं उन्हें पढ़ पढ़ के ही ज़िन्दगी कटनी है बस अब.
पोस्ट मैन रमेश चन्द्र जी का "लाओ बहू ! एक ग्लास गरम गरम दूध, आज चिट्ठी लाया हूँ तुम्हारी." कहना भी स्वप्न हो गया अब. कभी सामने भी पड़ गए मुख छुपा के चले जाते हैं अब. पहले चिट्ठी लायेंगे, दो चार लिफ़ाफ़े भी साथ ही लाने वाले हुए. लो बहू ! चिट्ठी लिखना !!
शादी मेरी लांस नायक चंदर सिंह के साथ हुई. शादी के बाद पहले वो बने नायक और फ़िर हवलदार बने. हवालदार बनने के एक डेढ़ साल बाद हवालदार मेजर भी मिल गया. ब्याह के आठ-नौ सालों में बड़ी ज़ल्दी ज़ल्दी तरक्की ली उन्होनें... ब्याह की दूसरी तीसरी रात होगी... अभी शर्म झिझक भी अच्छे से नहीं खुली हुई. फ़िर भी वचन डाल दिया मैंने,"मैं तुमसे और कुछ नहीं कह रही हूँ, तुम ज़िन्दगी भर मुझे कुछ दो, न दो... कभी एक अक्षर शिकायत कर दी तो ठेकेदारनी की लड़की नहीं कहना मुझे... बस मेरी एक बिनती है की मुझे सूबेदारनी ज़रूर बना देना."
ऊँगली कब हवालदार का सर कुतरने लागी कुछ भी नहीं जाना मैंने. "देखो हो ! सूबेदारनी बनना मेरे आँखों का स्वप्न नहीं .. प्राण की अभिलाषा है." उनका हाथ जाने कितनी ज़ोर से अपने हाथ में दबा लिया मैंने."भगवान ! माफ़ करना मुझे, और तुम भी हो.. कि तुम्हारा नाम ले रही हूँ मैं.. मग़र इतना मैं साफ़ साफ़ कहना चाहती हूँ कि हो तुम लांसनायक पर मैंने ब्याह कर रखा है सूबेदार चंदर सिंह के साथ.अब मेरा लोक-परलोक, मेरा सत-धर्म सब तुम्हारे हाथों में है. अगर साथ फेरों को धर्म पूरा करना जानोगे तो मेरी ये अभिलाषा ज़रूर पूरी कर दोगे... कंधे में दो फुल्ली लगा के मेरी उम्मीद में सरकारी मोहर लगा देना... नहीं तो में प्राण रहते ही मर जाऊँगी."
मेरी चुटिया थाम के मेरा माथा कैसे चट्ट (ज़ेनटली) उठा दिया उन्होंने. आँखों में आँख ऐसे गहरी रोपी मानो गहरे ताल में डुबकी लगायी होगी... "तूने बचन डाल दिया तो तेरा ये वचन मेरे सर में तब तक क़र्ज़ रहेगा जब तक में कंधे में दो स्टार लगा के दो सैल्यूट न ठोक दूं. एक वचन... दो वचन... तीन वचन... हैं कमला, अगर प्राण रहते फौज से रिटायर होऊंगा तो सूबेदार बन के."
तब कहा ! वो दिन था और अबकी छुट्टी से वापिस जाने का तक का दिन... अकेले में मुझे सूबेदारनी कहने वाले हुए हवालदार. वो सूबेदारनी कहेंगे तो प्राण नयी चिड़िया कि तरह लोटने वाले हुए, फुर्र, फुर्र, फुर्र, फुर्र... फुर्र फुर्र. कभी कभी मजाक भी करने वाले हुए,"सूबेदार बनने के बाद एक बार फेरे और लेने हैं, तेरा ब्या सूबेदार चंदर सिंह से करने के लिए... तभी बनेगी तू पक्की सूबेदारनी." बाट मजाक में ज़रूर हुई, पर कहते कहते उम्मीद की फुलवारी हो जाने वाली हुई हवालदार कि देह काया. फ़िर तो दिन दोपहर भी पट्ट (कस के) अंग लगा लेने में भी शर्म-लाज नहीं चित्त में लाने वाले हुए.
तब शर्म की मारी थी... अब कर्म की मारी हूँ... भगवान ! साग़र का ठिकाना हिमालय, क्या कर दिया तुमने मुझे... हवलदार! तो इतनी माया तो नहीं बो जाते हृदय के साग़र में कि रात दिन आंसू का कुल सा बहते रहता है...
-क्रमशः
Kumaon Regiment: Parakramo Vijayate (Valor Triumphs)
Regimental Centre: Ranikhet, Uttarakhand
Regimental Centre: Ranikhet, Uttarakhand
2 परमवीरचक्र, 3 अशोक चक्र, 10 महावीर चक्र, 6 कीर्ति चक्र, 2 उत्तम युद्ध सेवा मेडल,78 वीर चक्र,
1 वीर चक्र, 23 शौर्य चक्र, 1 युद्ध सेवा मेडल, 127 सेना मेडल , 2 सेना मेडल,
8 परम विशिष्ट सेवा मेडल , 24 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 1 PV,
2 PB, 1 PS,1 AW और 36 विशिष्ट सेवा मेडल .
चलते चलते
कोई भी एक छोटा बच्चा ढूंढ लाइए अब कुर्सी में बैठ जाइए. बच्चे को टांगों में रख दीजिये. और उसके छोटे छोटे हाथ अपने हाथों में ले लीजिये. अब झुला झुलाइये उसे... टांग को घुटने से ऊपर नीचे मोड़ते हुए. नींद नहीं आ रही उसे? लोरी सुनाइये...
घुघूती बासूती,
को कर लो ?
बाबू कर ला,
जुगूती जागुती
को कर लो?
इजा कर ली,
म्यर इजा कर ली.
घुघूती बासूती,
जुगूती जागुती
को कर लो ?
बाबू कर ला / इजा कर ली.
भुत भूतौ पाकौ लौ,
दुद भात पाकौ लौ.
दुद भातौ / को खालो?
दुद भातौ / म्यर नानू भाऊ खालो
म्यर भाऊ खालो.
घुघूती बासूती,
जुगूती जागुती
आ निन्नी, जा भूकी
को से लौ?
भाऊ से लौ.
घुघूती बासूती,
जुगूती जागुती
जा भूकी, आ निन्नी
भाऊ से लौ/ भाऊ से लौ.
म्यर भाऊ से लो.
घुघूती बासूती (झुला झुलाना) कौन करेगा? पिताजी करेंगे. जागेगा कौन? माँ जागेगी. मेरी माँ जागेगी. मेरे पिताजी और माँ दोनों मुझे झुला झुलायेंगे और मेरे लिए जागेंगे. भूट-भूट (आवाज़ के साथ) दूध-चावल उबल रहे हैं. कौन जो खायेगा? मेरा बच्चा खायेगा. आ नींद, जा भूख ! कौन सोया है. बच्चा सोया है. मेरा बच्चा सोया है.
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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.