Tuesday, March 29, 2011

नवाब काश्मीरी






समाज की एक बाइज्जत शख्सियत ने कहा: "दुनिया के हर सभ्य देश और हर सभ्य समाज में यह नियम प्रचलित है कि मरने के बाद, ख्वाह दुश्मन ही क्यों न हो, उसे अच्छे अल्फाज़ के साथ याद किया जाता है। उसके सिर्फ गुण बयान किए जाते हैं और दोषों पर पर्दा डाला जाता है।"

मंटो न जवाब दिया: "मैं ऐसी दुनिया पर, ऐसे मुहज़्ज़ब मुल्क पर, ऐसे मुहज्जब समाज पर हज़ार लानत भेजता हूं जहां यह उसूल मुरव्वज हो कि मरने के बाद हर शख्स का किरदार और तखख़्खुस लांडरी में भेज दिया जाए, जहां से वह धुल-धुलाकर आए और रहमतुल्लाह अलैह की खूंटी पर लटका दिया जाए। मेरे इसलाहखाने में कोई शाना नहीं, कोई शैम्पू नहीं, कोई घूंघर पैदा करने वाली मशीन नहीं। मैं बनाव-सिंगार करना नहीं जानता। इस किताब (गंजे फरिश्ते) में जो फरिश्ता भी आया है, उसका मुंडन हुआ है और यह रस्म मैंने बड़े सलीके से अदा की है।"

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डाकिए की ओर से: जब यह प्रस्तावना पढ़ी तो ऐज यूजअल कोई असर न हुआ कि यह काम मंटो ही करेगा और सचमुच सलीके से करेगा। फिर जब नवाब काश्मीरी के बारे में दो पन्ने तक तारीफ ही तारीफ पढ़ी तो लग गया था कोई गड़बड़ है। मंटो किसी की भी इतनी तारीफ नहीं करता। गंजे फरिश्ते में उसने बताया है कि किसी को याद करने का तरीका क्या होता है और कैसे किसी की भी यथासंभव खोल खोल खोली जाती है। मिशन बड़ा होता है उसके सामने शख्सियत छोटी हो जाती है। यह अंश सम्पादित कर पेश कर रहा हूँ, चाहता तो था की इस्मत चुगताई वाला पाठ दूँ लेकिन उतना टाइप कर पाना काफी वक़्त लेगा. इसलिए सबसे छोटा किस्सा.

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यूं तो तो कहने को वह एक एक्टर था जिसकी इज्जत अक्सर लोगों की नज़ में कुछ नहीं होती, जिस तरह मुझे महज़ अफसानानिगार समझा जाता है यानि एक फुजूल सा आदमी, पर यह फुजूल सा आदमी उस फुजूल से आदमी का जितना एहतिराम करता था, उतना एहतिराम कोई बेफुजूल सी शख्सीयत किसी बेफुजूल सी शख्सीयत का नहीं कर सकती।

वह अपने फन का बादशाह था। उस फन के मुताल्लिक आपको यहां का कोई वज़ीर कुछ न बता सकेगा। आप किसी चीथड़े पहने हुए मजदूर से पूछ देखिए, जिसने चवन्नी देकर नवाब काश्मीरी को किसी फिल्म में देखा है तो वह उसके गुण गाने लगेगा और वह अपनी ख़ाम ज़बान में आपको बताएगा कि नवाब काश्मीरी ने क्या-क्या कमाल दिखाए हैं। इंगलिस्तान की यह रस्म है कि जब उनका कोई बादशाह मरता है तो फौरन ऐलान किया जाता है ‘बादशाह मर गया है, बादशाह की उम्र दराज़ हो।‘

नवाब काश्मीरी मर गया है - मैं किस नवाब काश्मीरी की दराज़ी-ए-उम्र के लिए दुआ मांगू। मुझे तो उसके मुकाबले में तमाम किरदार निगार प्यादे मालूम होते हैं।

नवाब काश्मीरी से मेरी मुलाकात बंबई में हुई। खान काश्मीरी, जो उसका करीबी रिश्तेदार है, साथ था। बंबई के एक स्टूडियो में हम देर तक बैठे और बातें करते रहे। इसके बाद मैंने उसको अपनी एक कहानी सुनाई। उस पर कुछ असर न हुआ। उसने मुझसे बिला तकल्लुफ कह दिया: ठीक है, लेकिन मुझे पसंद नहीं।

मैं उसकी इस बेबाक तन्कीद से बहुत मुत्तासिर हुआ। 

दूसरे रोज़ मैंने उसे फिर एक कहानी सुनाई। सुनने के दौरान में उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे - जब मैंने कहानी खत्म की तो उसने रूमाल से आंसू खुश्क करके मुझसे कहा: यह कहानी आप किस कंपनी को दे रहे हैं ? भड़वे का रोल मुझे बहुत पंसद है।

नवाब मर्हूम को पहली बार मैंने ‘यहूदी की लड़की‘ में देखा था, जिसमें रतनबाई हीरोइन थी। नवाब, अज़रा यहूदी का पार्ट अदा कर रहा था - मैंने इससे पहले यहूदियों की शक्ल तक नहीं देखी थी। जब मै। बंबई गया तो यहूदियों को देखकर मैंने महसूस किया कि नवाब ने उनका सही, सौ फीसदी चरबा उतारा है। जब नवाब मरहूम से बंबई में मुलाकात हुई तो उसने मुझे बताया कि अज़रा यहूदी का पार्ट अदा करने के लिए उसने कलकत्त में पार्ट अदा करने से पहले कई यहूदियों के साथ मुलाकात की, उनके साथ घंटों बैठा रहा। जब उसने महसूस किया कि वह अज़रा यहूदी का रोल अदा करने के काबिल हो गया है तो उसने मिस्टर बी.एन. सरकार, मालिक ‘न्यू थियेटर्ज‘ से हामी भर ली।

जिन अस्हाब ने यहूदी की लड़की फिल्म देखा हे, वह नवाब काश्मीरी को कभी नहीं भूल सकते। उसने बूढ़ा बनने के लिए और पोपले मुंह से बातें करने के लिए अपने सारे दांत निकलवा दिए थे ताकि किरदार निगाारी पर कोई हर्फ न आए। 

नवाब बहुत बड़ा किरदारनिगार था। वह किसी फिल्म में हिस्सा लेने के लिए तैयार न था जिसमें कोई ऐसा रोल न हो, जिसमें वह समा न सकता हो। चुनांचे वह किसी फिल्म कंपनी से मुआहिदा करने से पहले पूरी कहानी सुनता था। फिर घर जाकर उस पर कई दिन गौर करता था। आइने के सामने खड़ा होकर अपने चेहरे पर मुख्तलिफ जज्बात पैदा करता था - ज बवह अपनी तरफ से मुतमईन हो जाता तो मुआहिदे पर दस्तखत कर देता।

वह खेल देखकर घर आता तो घंटों उसे ड्रामे के याद रहे हुए मुकालमे अपने अंदाज में बोलता।
मुझे याद नहीं, कौन-सा सन था। गालिबन यह वह ज़माना था, जब बंबई की इंपीरियल फिल्म कंपनी ने हिंदुस्तान का पहला बोलता फिल्म -आलम आरा बनाया था। जब बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ तो मिस्टर बी एन सरकार ने, जो बड़े तालीमयाफ्ता और सूझबूझ के मालिक थे, ‘न्यू थियेटर्' की बुनियाद रखी। वह नवाब काश्मीरी से अक्सर मिलते रहते थे। उन्होंने नवाब को इस बात पर आमादा कर लिया था कि वह थियेटर छोड़कर फिल्मी दुनिया में आ जाए।

बी एन सरकार, नवाब को अपना मुलाजिम नहीं, महबूस समझते थे। उनका ज़ौक बहुत अरफा व आला था। वह आर्ट के गरवीदा थे। नवाब मरहूम का पहला फिल्म यहूदी की लड़की था। उस फिल्म के डायरेक्टर एक बंगाली मिस्टर अठार्थी थे जो अब दुनिया त्याग चुके हैं। उस टीम में हाफिज जी और म्यूजिक डायरेक्टर बाली थे - उस तिगड़म में क्या कुछ होता था, मेरा ख्याल है, इस मज्मून में जाइज़ नहीं।

मिस्टर अठार्थी ने, जो बहुत पढ़े लिखे और काबिल आदमी थे, मुझसे कहा था - नवाब जैसा एक्टर फिर कभी पैदा नहीं होगा। वह अपने रोल में ऐसे धंस जाता है जैसे दस्ताने में हाथ। वह अपने फन का मास्टर है।

मरहूम की जिंदगी बड़ी पाक साफ थी, उसका एक अज़ीज़ ए एम अम्माद है। उसने मुझे बताया कि नवाब बड़ा तहारत पंसद था। शिया था। कोई काम बग़ैर इस्तिखारे के नहीं करता था। सुन्नी और शिया होने में क्या फर्क है, इसे जाने दीजिए। जब इन दो फिर्कों में लड़ाई झगड़े होते हैं तो इतना समझ में आता है कि उनके दिमागों में मजहबी फुतूर है।

मैं ज्यादा तफ्सील में नहीं जाना चाहता, लेकिन आपको यह इत्तिला देना चाहता हूं जो अभी तक किसी पर्चे में शाया नहीं हुई। उसकी पहली बीवी उसके अपने वतन की थी। उस लड़की से उसकी शादी कब हुई, इसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। उस बीवी से उसकी कोई औलाद न हुई। जब उस तरफ से नाउम्मीदी हुई तो नवाब ने इधर-उधर किसी दूसरे रिश्ते को टटोलना शुरू किया। आखिर उसने प्रिंस महर कद्र बादशाहे अवध के बड़े लड़के की बेटी से निकाह कर लिया।

जब यह शादी हुई तो घर में कोहराम मच गया। नवाब ने कोई परवा न की। नतीजा इसका यह हुआ कि उसकी पहली बीवी ने खुदकुशी कर ली- अब आप उसे खुदकुशी का मुख्तसर हाल सुन लीजिए:

जब उसकी पहली बीवी को मालूम हुआ कि उसके खाबिंद ने दूसरी शादी कर ली है तो उसने नौकरानी से तोशक मंगवाई। उस पर मिट्टी का तेल छिड़का। इसके बाद अपने तनबदन पर भी यही तेल मला। अपने   कपड़ों को भी उससे मानूस किया। फिर आराम से चारपाई पर लेटी, दियासलाई जलाई और खुद को आग लगा ली और मर गई। नवाब को मालूम ही नहीं था कि उसकी बीवी कोयला बन गई है। वह अपनी दूसरी बीवी के साथ दूसरे घर में था। 

जब नवाब को मालूम हुआ कि वो मर गई है तो उसने उसकी तज्हीज़ो-तकफ़ीन का इंतिजाम किया- बाद में उसे मालूम हुआ कि आखिरी वक्त वह यह वसीयत कर गई थी: मैं अपनी दस हज़ार की इन्शोरेन्स पालिसी अपने खाविंद के नाम करती हूं। इसके अलावा एक सौ साठ तोले सोना भी उनकी तहवील में देती हूं।

नवाब सुनकर बहुत मुताज्जिब हुआ - उसे देर तक मिट्टी के तेल की बू आती रही। 

मैं जब कभी सोचता हूं तो मुझे यूं महसूस होता है कि मैं मिट्टी का तेल हूं, कैरोसीन हूं, नवाब काश्मीरी हूं - काश्मीरी मैं भी हूं लेकिन इतना ज़ालिम नहीं, जितना कि वह था, इसलिए कि उसने सिर्फ औलाद की खातिर अपनी पहली बीवी को खुदकुशी करने पर मजबूर कर दिया। 

मैं भी काश्मीरी हूं। मुझे काश्मीरियों से बहुत मुहब्बत है, लेकिन मैं ऐसे काश्मीरियों से नफरत करता हूं जो अपने बीवियों से बुरा सुलूक करते हैं।

मैं नवाब मर्हूम के फन का काइल हूं। मैं उसे बहुत बड़ा फनकार मानता हूं लेकिन जब भी मैंने उसे स्क्रीन पर देखा, मुझे घासलेट यानि मिट्टी के तेल की बू आई। 

खुदा करे, उसे दोज़ख (नरक) नसीब हो कि वहां वह ज्यादा खुश रहेगा।

2 comments:

  1. खुदा करे, उसे दोज़ख (नरक) नसीब हो कि वहां वह ज्यादा खुश रहेगा।

    vallah!
    मुआ मंटो ही ऐसी लाइन लिख सकता है

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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